पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बाणगनापाणभट्ट स्वप्नदृष्ट पुरुषके लिये नितान्त व्याकुल हो उसने सखी बाणपति (सं० पु० ) बाणासुरके स्वामी, महादेव । चित्रलेखाके समीप अपना अभिप्राय प्रकट किया। चित्र- बाणपत्र (सं० स्त्री०) कङ्कपक्षी। लेखा उस पुरुषको श्रीकृष्णका पौत्र जान कर योगवलसे वाणपथ (सं० पु०) शरमार्ग, उतनी दूर जहां तक वाण आकाश मार्ग होती हुई द्वारका पहुंची और वहांसे अनि- जा कर गिरे। रुद्धको हरण कर ऊषाके निकट ले आई। अनिरुद्ध बाणपात (सं० पु०) शरनिक्षेप । कुछ दिन तक गुप्तभावसे वहीं रहे । पीछे बाणको मालूम बाणपुड्डा (सं० स्त्री० ) बाणस्य पुरा । शरपुङ्खा । होने पर उन्होंने अनिरुद्धको कैद कर रखा। बाणपुर ( स० क्ली०) बाणस्य राशः पुरम् नगरम् । वाण- इधर चार वर्ष तक जब अनिरुद्धका कहीं पता न | राजनगर । पय-देवीकोट, कोटीवर्ष, ऊषाबन, चला, तब एक दिन नारद श्रीकृष्णके यहां गये और कुल | शोणितपुर, आग्नेय, उमावन, कोट्टवीपुर । । । बातें कह सुनाई। 'अनिरुद्ध वाणके निकट आवद्ध है' बाणभट्ट-एक प्रसिद्ध कवि। ये कन्नौजके अधिपति नारदके मुखसे यह संवाद पा कर श्रीकृष्ण आगबबूले हो श्रीहर्षवर्द्धनके सभापण्डित थे। इन्होंने अपने बनापे गये और उसी समय उन्होंने बाण पुरीको यात्रा कर हुए 'हर्षचरित' नामक ग्रन्थमें अपने जीवनकी दो। यहां पहुंच कर श्रीकृष्णने बाणके साथ युद्ध ठान | कुछ घटनाओंका उल्लेख किया है। ये शोणतीरवासी दिया । इस युद्ध में महादेव स्वयं आ कर श्रीकृष्णसे लड़े। सारस्वतवंशी ब्राह्मण थे। बचपनमें ही पिता मातासे थे। युद्ध में श्रीकृष्णने जब बाणकी सब भुजाएँ काट वियोग होनेके कारण ये उच्छृङ्खल प्रकृतिके हो गये थे। डाली, तब शिवजी श्रीकृष्णका स्तव करने लगे। स्तवसे नागरिकोंके साथ रहनेके कारण इनके आचारमें सन्देह श्रीकृष्णने युद्ध बंद कर दिया । इस समय चाणकी केवल किया जा सकता है जो नितान्त निमूल भी नहीं है। चार भुजाएँ बच रही थीं। बाणने ऊषा समेत अनि- यद्यपि दुव्यसनों में फस जानेके कारण इनका अध्ययन रुद्धको श्रीकृष्णके हाथ प्रत्यर्पण किया। श्रीकृष्ण बड़ी धूम- छूट गया, तथापि इस समयके नागरिकोंके समान ये धामसे पुत्र और पुत्रवधूको द्वारका ले आये। ( भागवत भारतके नागरिक नहीं थे। बाणभट्ट यद्यपि उच्छङ्कल ६२-६४ अ० ) हरिवंशमें १७२वें अध्यायसे आरम्भ करके प्रकृतिके हो गये थे तथापि उनका चरित्र नीच नहीं इसका विस्तृत विवरण लिखा है। विस्तार हो जानेके | हुआ। बाणभट्टका मन जब अपने साथियोंसे ऊब गया, भयसे यहां उसका उल्लेख नहीं किया गया। तब वे उनका परित्याग कर श्रीहर्षवद्धनकी सभामें बाणगङ्गा (स० स्त्री०) बाणेन प्रकटिता गङ्गा नदीविशेषः।। उपस्थित हुए। विद्याव्यसनीराजाने इनको उचित आश्रय हिमालयके सोमेश्वर गिरिसे निःसृत एक प्रसिद्ध नदी। दिया। कहते हैं, कि यह रावणके बाण चलानेसे निकली थी इन्होंने 'हर्षचरित' 'कादम्बरीका पूर्वभाग' 'चण्डिका इसीसे इसका यह नाम पड़ा। इसमें स्नान करनेसे | शतक' और 'पार्वतीपरिणय' नामक ग्रन्थ बनाये हैं। सभी पाप दूर होते हैं। यहां बाणेश्वर नामका एक | अनेक विद्वानोंका मत है, कि पार्वती-परिणयके कर्ता पे

लिङ्गो है जिनके दर्शन करनेसे भी अशेष पुण्यलाभ | बाणभट्ट नहीं हैं। हर्षचरित और कादम्बरी ये दोनों

होता है। गद्यकाव्य हैं। चण्डिकाशतकमें सौ श्लोकोंसे भगवती- वाणदण्ड (स० पु०) बाणस्य दण्डः । बाधादण्ड । इसका की स्तुति की गई है। पार्वतीपरिणय नाटक है। पर्याय बेमा है। कहते हैं, कि इन प्रन्योंके अतिरिक्त पद्य कादम्बरी वाणधि (सं० पु०) बाणा धीयन्तेऽस्मिन् या आधारे-कि। भी बाणभट्टने बनाई थी परन्तु वह प्रन्थ अभी तक न इषुधि, तूण, तरकश। तो कहीं प्रकाशित हुआ है और न उसका कहीं पता पाणनाशा (सं० स्त्री०) नदीभेद । ही लगा है। वाणपञ्चानन (सं० पु० ) एक प्रन्थकार । ऊपर कहा गया है, कि बाणभट्ट देवके सभा