२४ मोम निम्न पगानमें राजधानी बसा कर रहने लगे। त-गौङ्ग- आबा नगरमें इस द्वितीय राजवंशने प्रायः पचास वंशीय किसी राजकुमारने विपद्म तथा राज्य बसानेमें : वर्ष तक राज्य किया। इसके बाद पेगूराजके बार बार काफी मदद पहुंचाई थी। इस प्रत्युपकारमें वे अपनी आक्रमणसे ये सम्पूर्णरूप्से परास्त हुए। आबाराजकी कन्या और सारा राज्य उन्हीं को अर्पण कर गये। तरफसे भेजे हुए कर्मचारियोंके अत्याचारसे उत्पीडित ____१४वीं शताब्दीके मध्यभागसे ले कर १६वीं शताब्दी- हो तलैङ्ग लोग विद्रोही हो गये। उन्होंने स्वाधीनताकी के आरम्भ तक यहां षान् जातिका आधिपत्य रहा । पर घोषणा करते हुए अपने द्वितीय राजा, व्यि-ल्य-दलकी पोछे १३६५ ई०में त-गौङ्ग राजवंशधरोंने स्वराज्यका सहायतासे ब्रह्मराज्यको लूटा और आवा नगर जीत कर पुनरुद्धार किया; किन्तु इस बार वे अधिक काल तक : ते वहांके राजाको बन्दीभावमें पेगू नगर लाये। सभी राज्य-सुखभोग न कर सके। सामन्तोंने तलैङ्गकी वश्यता स्वीकार तो की, पर मुत्-सो- १४०४ ई०में पेगूके तलैङ्गराज रजा-दि-रिन्ने ब्रह्म पर वोके अधिपतिने पेगूराजके मातहत होना न चाहा । आक्रमण कर दिया जिससे प्रोमराज्य बहुत कुछ उजाड़- उन्होंने अपने शौर्य और वीर्यसे सभी ब्रह्मवासियोंको सा हो गया। १५३० ई०में षान-सरदार मिन तारा-श्वेती उभाड़ा और तलैङ्गोंको आवा नगर तथा समग्र उत्तरब्रह्म- तौङ्ग-ग्नूके सिंहासन पर बैठे। उन्होंने चारवर्षके बाद से खदेड़ भगाया। इस समय वे अलोङ्ग-मिन-तारा-ग्यि ( १५३४ ई०में ) उपर्युपरि दो बारके आक्रमणसे पेगू- वा अलौङ्ग पाया नाम धारण कर राज्यशासन करने राजको तंग तंग कर डाला और आखिर उन्हें सिंहासन- लगे। च्युत भी कर दिया । तलैङ्गराज प्रोमको भाग आये। यहां १७५३ ई०में पुनः तृतीयवंशकी प्रतिष्ठा हुई। १७५८ उन्होंने आवा और आराकनपतिसे मिल कर उसके ईमें वे पेगूराज्यको जीत कर राजाको कैद कर लाये। विरुद्ध युद्ध ठान दिया। परन्तु १५४२ ई०में वे आत्म- । इस समयसे ले कर १८५३ ई० में इराज ब्रह्मयुद्धके समर्पण करनेको वाध्य हुए। मिनतारा पगीज- बाद लार्ड डलहौसी कर्तृक पेगूके अधिकार पर्यन्त प्रोम - ब्रह्मराज्यके अन्तर्भुत रहा। के हाथसे १५५० ई०में मारे गये। बोस वर्षके भीतर वे जिलेमें ३५ शहर और १७६१ ग्राम हैं। जनसंख्या एक सामान्य सरदारसे एक छत्राधिपति हो गये थे। चार लाखके करीब है। जिलेके मध्य प्रोम मगरका श्वे- पेगू, तेनमेरिम और पगान तक समस्त उत्तर ब्रह्म उनके .. सन- और उससे ७ कोस दक्षिण श्वे नाट्-द्ध पागोदा अधिकारमें आ गया था। श्या । और ब्रह्मपनि उन्हें कर ही सर्वोत्कृष्ट है। पहला पर्वतके ऊपर ११०२५ वर्गफुट दिया करते थे। तक फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई प्रायः ८० फुट है। उस ___ मिन-ताराके मरनेके बाद उनके सेनापति बुरिन् पागोदाके चारों ओर ८३ मन्दिर हैं। प्रत्येकामन्दिर में एक नौन-सोनप्य-म्य-सिन राज्याधिकारी हुए। अब वे अपना एक गौतमबुद्धकी मूर्ति प्रतिष्ठित हैं। पूर्वापर राजा और आधिपत्य और भी अधिक दूर तक फैलानेको चेष्टा करने शासनकर्ताओंके यत्नसे इस पागोदाका संस्कार हुमा लगे। प्रोम, तौङ्ग-ग्नू आदि शासनकर्ता जब स्वाधीन है। श्वे-ना-पागोदा भोट् करीब करीब ऊँचाईमें उसीके होनेका षड़ यन्त्र कर रहे थे, तब उन्होंने जा कर उनका समान है। उक्त दो मन्दिरोंके सामने प्रतिवर्ष एक एक बड़ी बुरी तरहसे दमन किया। पीछे अपने भाई और मेला लगता है। यहां रेशम और चावलकी फसल अच्छी पुत्रको वहांके शासनकर्ता बना कर आप चल दिये। लगती है। १५८१ ईमें बुरिन्की मृत्यु होनेके बाद राज्य भरमें जिले भरमें १६ सेकण्डी , १३० प्राइमरी और ४३० अराजकता फैल गई। सबोंने अपनेको स्वाधीन बतला कर एलिमेण्ट्री स्कूल हैं। प्रोम और पौगन्देमें जो स्कूल हैं घोषणा कर दी । राजधानी तौङ्गग्नूमें उठा कर लाई गई। वही सबसे बड़े और प्रसिद्ध हैं। स्कूल के अलावा यहां न्यौ-रण-मिन्-तारा नामक उनके एक पुत्रने आवा नगरीमें अस्पताल भी हैं जहाँ रोगीयोंकी अच्छा सेवा श्रुश्रूषा राज्य बसाया। होती है।
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