पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२७५

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बलोल लोदी, सुलतान सिंधु (हिन्ध ) प्रदेश भिन्न भिन्न राजाओंके शासना- सम्पत्तिका कुछ अंश अपना लिया। पीछे सुलतान धिकारमें था, तो भी लोदी-वंशका स्थान सबसे ऊंचा अलाउद्दीनके आत्मीय मालिका जहानके उसकानेसे मह- ही था। मूद शर्कीने बहोल पर धावा बोल दिया। बचावका कोई बहोलने फिरसे दलबलके साथ दिल्ली पर धावा रास्ता न देख बह्रोलको उनसे सन्धि करनी पड़ी। संधि बोल दिया। किन्तु इस बार भी भग्नमनोरथ हो इन्हें को शोंके अनुसार बह्रोल केवल दिल्लीके अधिपति वापिस जाना पड़ा। अलाउद्दीन जब वजीर हामिद : मुवारकशाहकी अधिकृत सम्पत्तिके सस्वाधिकारी हुए, खांका काम तमाम करनेका षड़यन्त्र कर रहे थे, उस पर बलपूर्वक छीनी हुई अन्य लोगोंको सम्पत्ति उन्हें समय बहोल फिरसे दिल्ली पर चढ़ आये। इस बार वापिस देनी पड़ी। कुछ दिनों बाद बहोलने शामसा- हामिद खांकी सहायतासे बहोलने दिल्लीमें प्रवेश किया। बादके शासनकर्ता जूना खांको हराया आर कर्णरायको हामिदके घर पर बहोलके प्रतिदिन जाने आनेसे दोनों में वहांको गद्दोका मालिक बनाया। खासा प्रेम हो गया। किन्तु बहोलके मनसे राज्य- सुलतान बहोलके शासनसे विरक्त हो जौनपुरके पिपासा और हामिदका उच्छेद-संकल्प कब दूर होने-! राजा महमूदने उनके विरुद्ध युद्धयात्रा की । शमसाबादके वाला था ! छलसे बहोलने हामिदको कैद कर लिया निकट फिर दोनोंमें गहरी मुठभेड़ हुई। कुतुबखों लोदी और दिल्लीके राजसिंहासन पर अपना दखल जमाया। कैद कर जौनपुर लाया गया। सुलतान महमूदके मरने अब ८५५ हि० (१४५१ ई०की १९वीं अप्रिल)को भारतके बाद उनके लड़के महम्मतशाह राजा हुए और सिंहासन पर बैठ उन्होंने अपने नामसे खुतवापाठ दोनोंके बीच सन्धि हो गई । लेकिन कुतुबखाको वापिस और सिक्का चलानेका हुकुम दे दिया। वे पुत्रकी तरह आये न देख बहोलने फिर महम्मदसे लड़ाई ठाम दो। प्रजा-पालन करते हुए तथा मन्त्री और सेनाओं को वश इस युद्ध में महम्मदकी ही जीत हुई। उन्होंने कर्णरायको कर निष्कण्टक राज्य करने लगे। राजगहीसे उतार कर पुनः जूना खाँको शमसाबादकी राजा हो कर बहोलने दिल्लोके समीपवत्तीं तथा अपने | राजगद्दी पर बिठाया अधिकृत स्थानों और मुलतानमें अच्छा शासन कर इस समय महम्मदको आज्ञासे उसका छोटा भाई अपनी कीर्ति कौमुदी फैलाई। इनके अच्छे शासनसे हसनखां मारा गया जिससे जौनपुरमें बड़ी हलचल मची। विरक्त हो कितने ही अल्लाउद्दीन-पक्षके अमीरों ने लोदी राजमाता बीबी राजीने छोटे पुत्रके वियोगसे दुखित वंशका सत्ता मिटाने के लिये जौनपुरके शासनकर्ता सुल हो जेष्ठ महम्मदको दबानेके लिये कितने ही अमीर भेजे। तान महमूदसे सहायता मांगी। तदनुसार महमूदने ! उन लोगोंके हाथसे महम्मद यमपुरके मेहमान बने। ६११ हिजरीमें दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। बहोल अपने बीबी राजोको आज्ञासे महम्मदका सबसे छोटा भाई पुत्र ख्वाजा बयाजिदको अनेक अमीरों के साथ किलेकी हुसेन खाँ जौनपुरकी राजगद्दी पर बैठा। उसने बहोलके रक्षा पर नियुक्त किया और आप लड़नेको मुस्तैद हुए। साथ मित्रता की। किंतु बहोलके शमसाबाद आक्रमण संधिकी बहुत कोशिश करने पर जब कोई फल न और जूना खाँकी राज्यच्युतिसे विरक्त हो उसने दिल्ली निकला, तब उन्होंने लड़ाई ठान दी। दोनोंमें घमसान | पर चढ़ायी कर दी। कुछ दिनों तक परस्परमें खूब युद्ध युद्ध हुआ। अन्तमें जौनपुरका सेनापति फते खां वा चलता रहा। व्यर्थ दोनों तरफको सेनाका विनाश देख हिरवी बहोलकी सेनाके सामने न ठहर सका और कैद दोनोंने आपसमें मेल कर लिया और अपने अपने देशको कर लिया गया। सुलतान महमूद पीठ दिखा कर भागे। लौटे । इसके बाद बडोलने जौनपुर राजाके प्रधान अहमद इस समयसे बहोलकी राज्यपिपासा बलवती और भी हो| खाँ मेवातीको हरा कर अपने वश कर लिया। गई। उन्होंने अपने बलसे पाश्ववत्ती हिन्दू और मुसलमान इस समय बयानाके शासनकर्ता युसुफ खां थे। राजाओंको हरा कर वहां अपनी धाक जमाई और उनकी उन्होंने विद्रोही हो वहोलको अधीनता छोड़ दी और Vol. xv. 68