पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रेम-पचाँद श्रीदामने श्रीकृष्णसे कहा, 'ऐ कठोर ! तू अकस्मात् । नूतन नील कमलसदश श्मामवर्ण, कोमलाङ्ग, विचा- हम लोगोंका परित्याग कर यमुनाके किनारे क्यों चला' लित चूर्ण कुन्तरूप भृङ्गद्वारा नयन-कमलके प्रान्तभाग गया था ? अश्वशतः यदि फिरसे तुम्हारे दर्शन हुए, ! आक्रान्त ऐसे श्रीकृष्णको व्रजभूमिमें बिहार करते देख तो आओ, हमें दृढ़ आलिङ्गन करके सन्तुष्ट करो। सच नन्दगेहिणी स्वयं-स्नुत दुग्ध द्वारा लिप्ताङ्गी हुई थी। कहता हूं, क्षण भरके लिये भी जब तुम अलग हो जाते हो, श्यामाङ्ग, रुचिर, सर्वसलक्षणयुक्त, मृदु, प्रियवाक, सरल, तो क्या धेनुगुण, क्या सखागुण, क्या गोष्ठ, क्या अभीष्ट , बुद्धिमान, विनयी, मान्यव्यक्तियों के सम्बन्धमें मानद तथा थोड़े ही समयमें विपर्यस्त हो जाता है। दाता ये सब इसके विभाव है। यशोदा, नन्द, रोहिणी, ___ प्रिय-नर्मख ।--सुहृत्, सखा और प्रियसखासे जो जिनके पुत्रोंको ब्रह्माने हर लिया था, घे सब गोपियां, श्रेष्ठ, विशेष भावशाली और अतिशय रहस्य कार्यमें ' देवकी और उनकी सपत्नीगण, कुन्ती, वसुदेव, सान्दीपन नियुक्त हैं, उन्हें प्रिय-नर्मसखा कहते हैं। सुवल, अर्जुन, ' मुनि और श्रीकृष्णकी पितृव्यपत्नी आदि आश्रयालम्बन गन्धर्व, वसन्तक और उज्ज्वल नामक सखा प्रियनर्म- गुरुगण हैं । इनमेंसे यशोदा और नन्द श्रेष्ठ हैं। सखा थे। इनमेंसे सुवल और उज्ज्वल ही सर्वप्रधान थे। मधुरप्रेम। श्रीकृष्णका वयस, रूप, शृङ्ग, वेणु, शङ्क, विनोद, नर्म, नायक-नायिका-सम्बन्धीय प्रेमको मधुर प्रेम कहते विक्रम, गुण, प्रेष्ठजन और राजा, देवता तथा अवतारोंकी हैं। श्रीकृष्ण और गोपियों में जो प्रेम था, वही प्रेम श्रेष्ठ चेष्टाके अनुकरण प्रभृति सख्यरसके उद्दीपन हैं । बाहुयुग, है। साधारण नायक-नायिकाका जो प्रेम है, वह कामज कन्दुकक्रीड़ा, द्य नक्रोड़ा, स्कन्ध पर आरोहण, स्कन्ध द्वारा मोहमात्र है। इस मधुर रसमें मुरलीध्वनि आदि उद्दीपन बहन, परस्पर यष्टिकोड़ा, पर्यङ्क, आसन, एक साथ शयन विभाव है। कटाक्ष और ईषद्धास्य प्रभृति अनुभाव है। और उपवेशन, परिहास और जलाशयमें विहारादि ये सब स्तम्भ, स्वेद, रोमाञ्च, स्वरभेद, कम्प, वैवर्ण्य, अश्रु और रमके अनुभाव हैं । स्तम्भ, खद, रोमाञ्च, स्वरभेद, अश्रु | प्रलय पे सब सात्विकभाव हैं। आदि सात्त्विक भाव है। निर्वेद, विषाद, दैन्य, ग्लानि, २स्त्री-जाति और पुरुषजातिके ऐसे जीवोंका पारस्प श्रम, मद, गर्व, शङ्का, आवेग, उन्माद, अपस्मृति, ध्याधि, रिक स्नेह जो बहुधा रूप, गुण, स्वभाव, सान्निध्य अथवा मोह, मृति, जाड्य, व्रीड़ा, अवहिथ्या, स्मृति, वितर्क, कामवासनाके कारण होता है। ३माया और लोभ । चिन्ता, मति, धृति, हर्ष, औत्सुक्य, अमर्ष, असूया, ४ केशवके अनुसार एक अलङ्कार । चापल्य, निद्रा, सुनि और बोध ये तोस इस रसके व्यभि-प्रेमकर्ता (सं० पु० ) प्रीति करनेवाला, प्रेमी । चारी भाव होते हैं। इनमेंसे मद, हर्ष, गर्व, निद्रा, और प्रेमकलह ( सं० पु० ) प्रेमके कारण इसी दिल्लगी या धृति अमिलनावस्थामें तथा मृति, क्लम, व्याधि, अप-1 झगड़ा करना। स्मृति और दैन्य मिलन अवस्थामें प्रकाश नहीं पाता। प्रेमकिशोरदास-युक्तप्रदेशवासी एक कवि । माप इस सख्यरसमें रति, प्रणय, प्रेम, स्नेह और राग तककी भागवतपुराणके द्वादश स्कन्धका हिन्दी-भाषामें अनुः पृद्धि होती है। वाद कर गये हैं। वात्सल्य-प्रेम। प्रेमगर्विता (सं० स्त्री० ) १ साहित्यमें वह नायिका जो इस वात्सल्य-रसमें द्विभुज श्रीकृष्ण विषयावलम्बन अपने पतिके अनुरागका अहङ्कार रखती है। २ वह स्त्री और उनके गुरुगण आश्रयालम्बन हैं । श्रीकृष्णका रूप जिसे इस बातका अभिमान हो, कि मेरा पति मुझे बात "नवकुवलयदामश्यामलं कोमलाङ्ग। चाहता है। विचलदलकभृङ्ग-क्रान्तनेताम्बुजान्त ॥ प्रेमचांद तर्कवागीश-बङ्गदेशके एक नानाशास्त्रवित् व्रजभुवि विहरन्त पुत्रमालोकयन्ती। पण्डित और प्रसिद्ध कवि । ख्यातनामा ईश्वरचन्द्र- प्रजपतिदयितासीत् प्रस्नवोत्पीड़दिग्धा ॥” विद्यासागर आदि अनेक महानुभाव इनके छान थे। Vol. xv. 6