पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बनेलीराज १८५ शासक थे। वर्तमान बरारीके ठाकुर-वंशके आदिपुरुष ' ई०में देहान्त हुआ। कुमार सूर्यानन्दको भी इहलोकमें मदनठाकुरने बहुत दिनों तक इनके यहां नौकरी की थी। बहुत दिन ठहरना न था, वे भी चौदह वर्षको अव- कहते हैं, कि राजा व दानन्दकी ही उदारता और अनुग्रह- स्थामें अर्थात् १९१६ ई०के सितम्बर मासमें इस धराधाम से बाबू मदन ठाकुरने प्रचुर सम्पत्ति इकट्ठी कर ली को छोड़ सुरधामको सिधार गये। इस प्रकार राजा जिसका उपभोग आज भी उनके वंशधरगण करते आ . पदमानन्दसिंहका चिराग सदाके लिये बुझ गया । रहे हैं। बरारी देखो। राजा घेदानन्दमिह १८५१ . पीछे रानी चन्द्रावतीने अपना सात आना हिस्सा ईमें इस धराधामको छोड़ सुरधामको सिधारे। येच कर स्वामीका ऋण परिशोध करना चाहा, पर बेदानन्दकी मृत्युके बाद कुमार लीलानन्द मिह राज- कृत्यानन्द सिंह बहादुर और रानी पद्मासुन्दरीने इसे सिंहासनके उत्तराधिकारी हुए। ये भी योग्य पिताके रोका। कुछ समय तक आपसमें यह विषय ले कर योग्य पुत्र थे। विद्वान् और कवि भी थे। १८५३ ई में विवाद चलता रहा । आखिर राजा कृत्यानन्दसिह बहा- इन्हें भी बृटिश सरकारसे 'राजा-बहादुर' का खिताब दुरके ही तत्त्वाधानमें सात आनेका हिस्सा रहा। बाद मिला था। राजा लीलानन्दका जीवन उदारता, सदा-' चन्द्रावतीको मृत्युके वे ही इसके प्रकृत उत्तराधिकारी शयता और समवेदना आदि सद्गुण-सम्पदका ' होंगे। आधार था। चरित्र और व्यवहारके गुणसे वे ____ राज कालानन्दसिंहका १८८० ई०के सितम्बर मासमें उच्च नीच सभी श्रेणियों के अति प्रियपात्र थे। . जन्म हुआ था। आप अति धीर, शान्त, मश्चरित्र और उनके जैसे जनवत्सल सहृदय मनुष्य धनीकुलमें : विद्यानुरागी सजन पुरुष थे । सङ्गीतविद्या और मृगयामें बहुत कम देखे जाते हैं। भागलपुरके सन्थाल परगनेके भी अनुराग था । व्यहार-शिल्पके अनेक विषयों में आपका जनसाधारण सम्मान और श्रद्धाके साथ उनकी स्मृतिका असाधारण अधिकार और व्युत्पत्ति देखी जाती थी। पोषण करते हैं। लीलानन्दके प्रथम स्त्रीसे पद्मानन्द- दोनों भाइयोंमें रामलक्ष्मण-सी प्रीति और सद्भाव था। सिंह और द्वितीय सीतावतीसे कालानन्दसिंह और . आप छोटे भाईकी मलाह लिये बिना किसी गुरुतर कार्यमें कृत्यानन्दसिंह नामक तीन सुपुत्र थे । १८८३ ई०की ३री : हाथ नहीं डालते थे। १६२३ ई के मार्च मे आप रामा- जूनको राजा लीलानन्दसिंहने अपनी जीवनलीला नन्दसिंह और कृष्णानन्द सिंह दो सुपुत्र छोड़ परलोक शेष की। सिधारे। ____राजा लीलानन्द सिंहकी मृत्युके बाद राजा परमा- : ___अनन्तर राजा कृत्यानन्द सिंह बहादुरने कुल राजा नन्दसिंह राजसिंहासन पर अधिरूढ़ हुए । पिताके जीते- भार अपने हाथ लिया। आपका जन्म १८७३ ई०की जी वे उनकी पदमर्यादाके अधिकारी हुए थे। कुछ समय २३वीं दिसम्बरको हुआ था। पूर्णिया जिला स्कूलमें विद्या- बाद सारा राजा नौ आने और सात आनेमें विभक्त रम्भ करके आपने इलाहाबाद मेयर सेण्ट्रल कालेज (Aluir हुआ। सात आनेके अधिकारी हुए राजा परमानन्दः . central college ) से तत्रत्य विश्वविद्यालयकी प्रवेशिका सिंह बहादुर और नौ आनेके ये दोनों भाई । राजा पदमा और बि, ए, परीक्षा पास की है। आप बिहारके नन्द सिंहकी प्रथमा स्त्री पद्मावतीसे कुमार चन्द्रानन्द- अभिजात्य-गौरवसे गौरवान्वित उच्च धनी भूस्वामी- सिंहने जम्मग्रहण किया। १९०४ ई० में राजा पदमानन्द- के मधा सर्व प्रथम वा एकमात्र प्रैजुएट हैं। सिंहने चौथा विवाह रानी पद्मासुन्दरीसे किया। ये आज : आप सव्यसाची सर्व विद्या पारदर्शी हैं। क्या भी जीती जागती हैं। १९०६ ६०के जनवरीमासमें पद्मा- : क्रीड़ा कौतुक, क्या लक्ष्यसाधन, क्या मृगया, क्या सुन्दरीके एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिनका नाम कुमार सूर्या-: सङ्गोतचर्चा, क्या प्रन्थरचना, क्या विज्ञान-सेवा, क्या नन्द रखा गया। कुमार चन्द्रानन्द सिंह अकाल हो कराल शिल्प-नैपुण्य-सब प्रकारके शारीरिक और मानसिक कालके गालमें पतित हुए। राजा पदमानन्दका १९१२ : शक्तिका परिचय प्रदान करनेमें आप अप्रणी हैं। सचमुच v , xv. 46