पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१७०

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बदरपुर-बदरिका परित्याग करके तुम स्वर्ग में मेरे साथ एकत्र बास करोगी पड़ता है। इसका दूसरा नाम बदरीनाथक्षेत्र भी है। और यह स्थान बदरपाचन तीर्थ नामसे प्रसिद्ध होगा। इस पुण्य क्षेत्रका व्यास प्रायः ३ योजन और दैर्ध्य १२ इस तीर्थ में मर्वदा पड़ऋतु विराजमान रहेंगी।' (भारत योजन है। गन्धमादन, बदरी, नग्नारायण और कुबेर- शल्यपर्व ४८-४६०) शृङ्ग इसके अन्तर्गत हैं। यहां बहुतसे उष्ण प्रस्रवण बदरपुर-आसाम प्रदेशके श्रीहट्ट जिलान्तर्गत एक गण्ड- भी हैं। प्राम। यह अक्षा० २४.५१° उ० और देशा० ६२३३ हिमालयतीर्थ के मध्य केदारनाथ जिस प्रकार शैव पू०के मध्य अवस्थित है। १८२६ ई०में ब्रह्मसेनाने जब गणको प्रियतर है, वैष्णवों में बदरिकाक्षेत्र भी उसी कछार पर आक्रमण किया, तब इसी स्थान पर अंगरेजों प्रकार परम स्थान समझा जाता है। (१) तीर्थ यात्रिगण प्रकार परम स्थान मा के साथ उनका युद्ध हुआ था। यहां पर्वतके ऊपर एक अलकनन्दा ( गगा )-को उपत्यका परके तीर्थोके दर्शन दुर्ग है। करत करते ज्योतिर्धाम (२) पहुंचते हैं। ज्योतिर्धाम बदरपुर-पञ्जावके अन्तर्गत एक गण्ड प्राम । यह शाल पार करके ही वे धौली और अलकनन्दाके सङ्गम तट पर बेरीसे २ कोस उत्तर-पूर्व में अवस्थित है। यहां एक गन्धमादन और बदरी-क्षेत्र देख पाते हैं। यहां ब्रह्मा, बहुत बड़ा बौद्ध-स्तूप है जो मनिकल और शाहपुरके विष्णु, शिव, गणेश, भृगि, ऋषि, सूर्य दुर्गा, धनद और स्तूपसे किसी अशमें कम नहीं। ध्वंसावशेषमें परि- प्रहलाद आदि कुण्ड हैं। यह स्थान विष्णुप्रयाग नामसे णत हो जाने पर भी अभी इसकी ऊंचाई ४० फुट रह प्रसिद्ध है। इसीके उत्तर धटोद्भवाश्रम पड़ता है। इस गई है। इस स्तूपके मध्य जेनरल भेजुराने एक मृत ! आश्रमके पास ही मुनीश्वर शिव और घण्टाकर्ण-मन्दिर मनुष्यकी हड्डी पाई थी। अवस्थित है। विष्णु प्रयागके उत्तर पाण्डस्थान है। (३) बदरफली (सं० स्त्री०) बदरस्येव फलमस्य बदरफल- बदरीनाथके समीप जो नदी बहती है उसके दाहिनी ङीष् । भूबदरी। किनारे परके नरशिखर पर सैकड़ों लिङ्गतीर्थ और नारा- बदरबली ( स० स्त्री० ) भूबदरी । यण कुण्ड देखनेमें आते हैं: विन्दुमती नदीमे दो कोस बदरबोज ( स० क्ली० ) बदरास्थि, बेरकी गुठली। उत्तर वैखानस नामक स्थान है। संन्यासिगण यहां बदरा (स. स्त्री०) १ आदित्यभक्ता, हुरहुर । २ कार्पासी, होम याग किया करते हैं । इसके भी उत्तर चड़ा कपास । ३ बराहक्रान्ता, बाराही नामका पौधा । ४ एला- कुवेर पर्वत और योगेश्वर-भैरव नामक तीर्थ है । पणीं । ५ बाराहीकन्द । ६ श्वेतविदारी ' ७ विष्णुक्रान्ता। इसके बाद प्रवरा नामक सरिद्वरा और बदरिमन्दिरके बदरामलक ( स० क्ली० ) पानीयामलक, पानी आमला । सामने कर्मधारा नामक नदी है। इसके पास ही इसके पौधे जलाशयोंके पास होते हैं। पत्ते लबे लंबे नारदीयशिला, वराहोशिला, नारसि हशिला, मार्कण्डेय- और फल लाल बेरके समान होते हैं। टहनियोंमें छोटे शिला, गारुडीशिला और उन्हीं सब नामोंकी पुष्क- छोटे कांटे भी होते हैं। रिणियां भी हैं । उक्त पर्वत परिधिके मध्यस्थलमें विष्णु. बंदरास्थि ( स० क्ली० ) बदरवीज, बेरकी गुठली। बंदरास्थिमजा (सं० स्त्री० ) बेरकी गुठलीका गूदा। (१) इस स्थानका दूपरा माम विशालपुर है। स्थानीय बंदराह (फा० वि० १ कुमागीं, बुरी राह पर चलने- प्रवादसे जाना जाता है, कि वदरी वृक्षसे ही इस स्थानका वाला। २ दुष्ट, बुरा। नामकरण हुआ है। बदार ( स० स्त्री० ) वद-वाहुलकादरि । कोलिवृक्ष, बेरका (२) जोषीमठ-यहाँके नरसिह मन्दिर के समीप प्रहलादने पौधा या फल। विष्णुको आराधना की थी। दरिका-हिमालय पर्वस्थ प्रसिद्ध वैष्णव तीर्थ। यह (३) पापडकेश्वर-यहाँ पाण्डेश्वर शिवमन्दिर आज भी विस्तीर्ण भूभाग कण्वाश्रम और नन्द पर्वतके बोच विद्यमान है।