पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१०

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प्रताशौच शौच अङ्गास्पृशत्वयुक्त हो कर केवल पितामाताके रहेगा, सपिण्डोंके सद्यःशौच, दो वर्षके पद वाग्दान पयन्त एक दुसरेके नहीं । मभी वर्गों के लिये इसमें एक मी व्यवस्था दिन, वाग्दानके दा भिवाह पर्यन्त भन कुलमें तथा पितृ- दी गई है। ब्राह्मणकं पक्षमें जात बालक यदि छः महीनेके (कुलमें तीन दिन आसार होता है । विवाहके बाद भर्तृ. भीतर, दन्तोद्गम न हुआ हो, मर जाय, तो पितामाता कुलमें पूर्णाशौच होता है, नकुल अशौच नहीं रहता। और निर्गुण महोदरके एक दिन अशौच और सपिण्डके परन्तु यहा पर सहोदर भाईके लिये विशेषता यही है, कि मद्यशौच होता है। छः मासके भीतर यदि दांत निकल अज्ञातदन्ता मरनेसे सद्यःशीच, जातदन्ता हो कर चूड़ा आये हों, तो पितामाताके तीन दिन और सपिण्डके एक पर्यन्त मरनेसे एक दिन, चूडाके बाद विवाह पर्यन्त मरने- दिन अशौच होता है। छः माससे ले कर दो वर्षके भीतर से तीन दिन अशौच होता है। विवाहिता कन्या पिताके यदि जातबालकको बिना चूडाकरणके ही मृत्यु हो जाय, घरमें दि सन्तान प्रसव करे, वा मरे, तो पिता माताके तो पितामाताके तीन दिन तथा सपिण्डके एक दिन और तीन दिन और सहोदर शात्यादि बन्धुवर्गके एक दिन यदि चूड़ाकरण हो गया हो, तो सपिण्डोंके भी तीन दिन अशौच होता है। उस कन्याका यदि पिताके घर वा अशौच होगा। दो वर्षसे ले कर छः वर्ष तीन मासके अन्यस्थलमें प्रसव वा मरण हो, तो सहोदर माता और मध्य मृत्यु होनेसे पित्रादि सपिण्डवर्गके तीन दिन और उसके पुत्रके पक्षिणी अशौच होता है। उस कन्याके उसके बाद होने से पूर्णाशीच होता है । छः घर्ष और तीन श्राद्धाधिकारी यदि पितामाता हों, तो उस कन्याको कहीं मासके मध्य उपनीत हो कर मरनेसे सम्पूर्णाशौच भी मृत्यु क्यों न हो, पितामाताके तीन दिन अशौच होता होता है। है। क्षत्रियजातिके जननाशीचकालके बाद ६ मामके ! असपियड शौच-6 वस्था । ---गायत्रोदाता और मन्त्र भीतर जातबालकको मृत्यु होनेसे सद्यःशौच, उसके दाता, गुरु तथा मातामहके मरने पर तीन दिन अशौच बाद दो वर्ष के भीतर होनेसे तीन दिन, ६ वर्षके भीतर : होता है। भगिनी, मातुलानी, मातुल, पितृण्वसा, मातृ- होनेसे छः दिन अशौच होता है। यदि छः वर्षके बाद वसा, गुरुपत्नी, मातामही, मातृष्वस्त्रीय, पितृवस्त्रीय, उसकी मृत्यु हो, ती पूर्णाशीच होगा। . पितामहो, भगिनीपुत्र, पिताके मातुलपुत्र, पितामह- वैश्यजातिके जननाशौचकालके बाद छः मामके : के भगिनीपुत्र, मातुल पुत्र, भागिनेय और दौहित्र भीतर जातबालकको मृत्यु होनेसे सद्यःशौच, उसके इन सबकी मृत्यु होनेसे पक्षिणी अशीच होता है। बाद २ वर्णके मध्य होनेसे ५ दिन, दो वर्णके बाद छः . श्वश्रू और श्वशुरके भिन्न ग्राममें मरनेसे तीन दिन अशौच वर्षके मध्य होनेसे पूर्णाशौच होता है। रहेगा। आचार्य-पत्नी, आचार्यपुत्र, अध्यापक, माताके शूद्रोंके जननाशौचके वाद ६ मासके मध्य अजातदन्त वैमात्रेय भाई, श्यालक, सहाध्यायी, शिष्य, मातामहीके बालकको मृत्यु होनेमे पित्रादि मषिएडवर्गके लिये तीन भगिनीपुल, मातामहके सगिनीपुत्र, मातामहीके भ्रातृपुत्र दिन अशौच और ६ मामके मध्य जातदन्त हो कर तथा और एक मामवासी सगोत्रज व्यक्तिके मरनेसे एक दिन मामफे बादसे ले कर २ वर्षके मध्य मरनेसे सपिण्ड-1 अशीच होता है। मातृवसा, पितृवसा, मातुल और वर्गके लिये ५ दिन अशौच, दो वर्णके मध्य कृतचूड हो भागिनेय, ये सब एक घरमें रह कर यदि मरें, ता तोन दिन कर तथा दो वर्णके बादमे ले कर छः वर्षके मध्य मरनेसे अशौच माना जाता है। विवाहिता कन्याके पितृमरणमें पित्रादि मपिण्डके लिये १२ दिन अशौच होता है। ६. तीन दिन और अशीच सम्बन्धि भिन्न कुलज अर्थात् वर्षके मध्य विवाहित हो कर वा ६ वर्ष के बाद मरनेसे । मृता मातुलादिको दहन या वहन करनेसे तीन दिन सम्पूर्णशौच होता है। अशौच होता है। सर्वजानीय स्त्रागौच उपवस्था । --जन्मकालसे ले कर मृत्युविशेषशौच व्यवस्था-- अवैध आत्मघातीका अशौच दो वर्षके मध्य कन्याकी मृत्यु होनेसे पिता, माता और : नहीं होता। शास्त्रीय अनशनादि द्वारा मृत्यु होनेसे