पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/९८

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उखदौसी हस्ताक्षर करना मजूर किया, मिर्फ पैगूको प्रान्तसोमा था. नकि पधीन राज्य, इमलिये डिस्करी करोलो. मिद नामक स्थान निर्दिष्ट न करके प्रोमके पासना कछ राज्यका अस्तित्व लोप नहीं किया। नीचेक कोई स्थान निर्धारित करना नाहा । डलडोमोके कुछ भी हो, डलहौसी देशोयराज्योंका ग्राम करनेसे पास पावेदन भेजा गया, वे मम्मत हो गये। पानागज-प्रति- निवत्तन हुए, वे अवसर ढहने लगे। बकी बार निधियोंने कहा कि, जिस पर प्रदेश अर्पण करनेको बात झांसी गज्यमें सुभोता मिला। १५३५१ में भी मौके लिखी है. ऐसे मन्धिपत्र में राजा हस्ताक्षर नहीं कर राजा बाबा गङ्गाधरराव देवलोक सिधारे। उन्होंने सकते । दम पर उनको चले जाने के लिए कहा गया; तथा मृत्युसे १ दिन पहले एक दसकपुर ग्रहण किया था। पुनः प्रचगडतर युद्ध होगा ऐसा अनुमान होने लगा। किन्तु डलहौसोने झांसी-राज्य अङ्गारेज साम्राज्य-भुन किन्तु ब्रह्मगनने सब कुछ स्वीकार करके डलहौसौके हुआ तथा राजन तिक नियम अनुसार उता साम्राज्य पाम एक पत्रमें भेज दिया। डलीमोने इस मुक्त ही रहेगा, ऐसा निश्चय कर १८५५ में निन· पत्रको ही मन्धिपत्रक रूपमै ग्रहण कर मन्तुष्ट हुए। लिखित मन्तव्य डिरेकरों के पास भेजा- १८५३ ई.की ३० जूनको साधारण विज्ञापन हास सन्धिः वृटिभगवर्म टके करद और अधीन राज्य झामोक पत्र प्रचारित राजाने मृत्य के एक दिन पहले एक पोथपुत्र ग्रहण डलहौमी सावभौमक्षमताके अत्यन्त पक्षपाती थे। किया था। इस राज्य में पहले ओ एक बटना हुई थी. उन्होंने हटिय-गवर्मेण्टको भारतका सर्वेसर्वा तथा भार उसके प्रमुमार हममे निचय किया है कि, यह पोष्यपुख सके छोटे छोटे राजीको क्रमशः हटिश-मामाज्यमें शामिल प्रहण सङ्गत नहीं है-इसके द्वारा दत्तक पुत्र को राज्य करनेका निश्चय कर लिया था। इस उद्देश्यको कार्य में शासनका अधिकार नहीं हो सकता तथा इस राज्यक परिणत करनेके लिए उन्होंने १८४८ में मतारा राजाको वा पूर्ववर्ती राजाओंकी सन्सानादि न होनेसे राज्यको दृटिशासनमें शामिल कर लिया। समाराका यह सज्य हटिश-साम्राज्यमें शामिल किया जाता है। राजा पपुवक थे। किन्तु मृत्य के पहले उन्होंने शास्त्रानु। विधवा रानीने युति दिखा कर उसहोमोके पदिशक सार एक पोथपुत्र ग्रहण किया था। नियमानुसार वह विरुख पावेदन किया। किन्तु उसमे कुछ भी नतोजा पोष्यपुत्र ही राज्यका उत्तराधिकारी था, किन्तु डल. न निकला, ससागकी भाँति झाँसोका नाम भो देशोय हौसीने कहा . "सतारा हटिश साम्राज्यका प्रधान राज्य राज्य गोसे विलुम हो गया। है, सताराके राजा वृटिश गवर्मेण्टके बिना अनुमोदन डलहौसीकी सयोजन नोतिको जब कर्व पक्षियोन किये पोथपुत्र ग्रहण नहीं कर सकते, करनेसे वह हितोय बार अनुमोदन किया, तब उन्हें बड़ो खुशी हुई। प्रयाध है। टिश गवर्मेण्टकी अनुमति बिना हो पोय- पबकी बार उन्होने महाराष्ट्र प्रदशका वृहत्तर राज्य पुत्र महण किया गया है, इसलिए यह बासक राज्यका बिलुश कर दिया। नागपुर के राजा रघुजी भोसलेको अधिकारी नहीं हो सकता। अतएव सतारा देशीय १८५३ ३० के ११ दिसम्बरको मच दुई। उनका कोई राजत्वका अन्त हुआ। पुव वा निकटसम्बन्धो नहीं था पोर न सकोने कोई १८५२ में कोलोके राजाको मृत्यु हुई। इस दत्तसपुतही ग्रहण किया था। इस राज्य को प्राण करते राणाको विलुप्त करने के लिये डलहौमीको इच्छा हुई; समय डलहौसोने निलिखित मन्तव्य प्रकट किया था,- परन्तु डिरकरनि उनके दम प्रस्तावको मार न किया। इस राज्य (भागपुरक) राजा उत्तराधिकारी ने परीलोके राजाको भी नि:सन्तान अवस्थामै मृत्यु हुई रख कर मर गये, मलिए यह राज्य पुनः टिपगवड बी और उन्हीम बिमा उम्नोसोको पाला लिये ही योप्या के सामत एमा, जो अधिकार सर्गत , पुत्र पाप किया था। सताराको तरस रस राज्यको उसको हस्तान्तरित करना उचित नहीं, क्योंकि भी ससोबास करना चाहा, पर यह मित्र राज्य रितीय बार एस योजना बाय चौर विचारा.