पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/९२

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८. डलहौसी एमिटमाशयकोमबहान लिग्ब भेजा तथा मूलराजको साहब पारजी सेना मजने लिये राजीनोमये। उन्हों उनको निषिता प्रमाण और दोषियों को पावर करमेक ने सिमलामें प्रधानसेनापति लाई गाफकोसपासका लिखा। मूलराजने जबाब दिया कि, "हम इस एक पत्र भेजा कि-"बटिय-शासित भारती सुनामको पत्रके अनुमार कार्य करनेमें सम्पूर्ण पक्षम " रक्षा और राजनीतिक स्वार्थ साधनोहेशम साहोर-दरबार मूमराजका प्रथम उहेश्य कुछ भी हो, पर पब वे को सेनाके प्रभाव में भी जिससे पारेजो सेना मुलतानके प्रकाश्यरूपमे विद्रोहो हो गये। ता०१८ को मूलराजने दुर्ग और नगर पर पधिकार कर सके, ऐसो एक दल 'ग्रेजोंक यानवारमादि सब छीन लिये । बज-पक्षने सेना शीघ्र ही भेज देना उचित है।" किन्तु सार्ड- भागनेका कोई उपाय न देख कर एडगामें ही पाश्रय गाफ्ने उस समय सेना न भेजो। मन्धिसमाधिष्ठित ग्रहण किया। उनको भरोसा था कि. २४ दिममें हो गवर्नरजनरल साहबको भी यहो राय घो। इसलिए लाहोरसे सेना पा कर उनकी रक्षा करगो। किन्तु युझ्यावामें विलम्ब हो गया। उनकी या पाशा मुकम्समें ही सूख गई। लाहोरके धर भग निठ माहबने मुस्थ हो कर साहोरका गोलन्दाजोंने युद्ध करमा प्रखोकार किया। सा०२० को विद्रोह-संवाद पौर लेप्नाट एडवर्डस् सावको महा. मायकालके समय बॉसिर, ८।१० मैनिक कुछ मुन्मी यतार्थ शीघ्र पानेके लिये लिख भेजा। एडवडम् साहब और पंजीके कुछ नौकरी तथा कर्मचारियों के सिवा उस पत्रको पा कर अधीनस्थ सैन्य संग्रह करके मुलतान- पन्यान्य सभी लोगोंने अंग्रेजोका पक्ष छोड़ दिया। उन को सरफ अग्रसर हुए। उन्होंने लिसपा नामक स्थानमें लोगोंने जीवनको कुछ पाशा न देख कर मूलराजकी पहुँच कर शिविर स्थापित किया। इस स्थानमें एक सारामा मल- पत्र पाकर उनके मन में सिखोकी विखस्तता पर सन्द। राजने उनको चले जाने के लिये कहलवा भेजा, किन्तु हुआ। इस समय उन्हान सम्वाद पाया कि, मूलराज एमकी सेना पतनी उत्तेजित थी कि. वर रलपातके चन्द्रभागा नदी पार हो कर लिरपाको तरफ अग्रसर मिवा किसी तरह भी सन्तुष्ट न थी। जब खामिल हो रहे हैं। एडवर्डस साहबने उस समय सिन्धुनद पार पादि चले जा रहे थे, तब मुलतानके मैनिकगण घोर । प्रसार होकर गिरिश-दुर्ग में पाश्रय लिया। इम स्थान पर रवसे उन पर टूट पडे । खोमिहको वेद पौर अग्रेज-कर्मः सेनापति कटलेण्डने कुछ मुसलमान-सेनाके साथ पा चारियोंका मार डाला। मूलराजने सैनिकोंको पर कर उनका साथ दिया। क्रमशः पारेजोको सेमा बढ़ने स्कार दिया। लगी। रेसिडेण्ट मारवको दो दिन बाद विद्रोह-संवाद मालम बावलपुरके नवाव शतद, नदी पार हो कर मुलतान हुपा। उन्होंने पहले सोचा था कि, मूलराज इस पानामग्य करनेको उबत हुए। पारेजी सेनाने प्रा कर विद्रोहमें शामिल नहीं है। इसलिये उन्होंने कुछ सैनि- देरागाजोखों घेर लिया। मूलराजने जलालखों पर इस कोको भेज दिया। ता. २१ को समस्त संवाद पवगत प्रदेशका सामन भार छोड दिया था। जलालके प्रधान होकर वे समझ गये कि, यह युद्ध सहज में नहीं शव बराखाने पहरेजों के साथ मिल कर जलाल पर निवटेगा। लाहोर-दरबारको सेनामे प्रेजोंके साथ पाक्रमण किया। जलालखाँ पराजित हो कर भाग विश्वासपातकता को है, यह संवाद पा कर रेसिडेण्ट गये। देगगाजोखा पारेजोंके हस्तगत हो गया। इसके कारौं साहव मुलतानमें ग्रेजी मेना भेजनेके लिये राजी बाद केमेरी नामक स्थान पर युबमा, उस युपमें भो महुए। विन्तु पहरेजीको महायताके बिना सिख- पारस पक्षाने विजय पाई । किरीके बुरके बाद बहुतसे सरगणा मूलराजको किसी तरह भी वश न कर सकेरी, मिण सर पारिजोका पच पाण करने लगे, मूलराजने म धारणासे लाहोर-दरबारके अगरेजी सेना भेजने अत्यन्त भीत हो कर दुर्गमे पात्रय लिया। पडवर्ड लिये रसिद्धिको बार बार अनुरोध करने पर बार्ग पुनः पुनः विजय काम करने कारण परवन्त उत्साप ।