टकसाल किमीको तौलमें 2 ग्रेनसे ज्यादा तारतम्य हो, तो पूरी गिरता है, तब वह भी चारों पोरसे दाव पर दॉत बना पत्तो नाकाम हो जाता है। देतो है। इस तरह एक एक करके सिक्के बनाये जाते इम पत्तियोंसे छेनोसे गोल गोन्न चकतियों काटो है। कहना फजल है कि, सांची टकड़ोंका धरना जाती है। एक वृहत् वाष्योय चक्र दाग परिचालित भो मशानशेसे होता है। इसके बाद उन सिकोको छेनीके जरिये इस कामको प्राय: लड़केही किया करते थेनिया में भरा जता है, तथा उसमेसे दो चार सिकोको हैं। इस तरह एक लड़का प्रत्येक मिनट में ६० । ७० परीक्षा की जाती है। चकतियों काट सकते है। चकतियोंके कट जाने पर १६०१ में इष्ट इण्डिया कम्पनो टकसालमें सिक उनको फिर गलानेको जगह भेजा जाता है। मना कर भारतमें लायो थो। १६६०-६११०में मद्राज में सके बाद एक एक चकती तौली जाती है। यदि एक टकसाल स्थापित हई थो। किसी तरह किसीका वजन कम हो, तो उनको अलग १७५८-६० में इष्ट इण्डिया कम्पनीको टकसाल रख कर फिरसे गलाया जाता है। जिनका वजन ज्यादा बनाने के लिए परवाना मिलने पर उसने कलकत्ते में एक होता है, उनको घस कर ठीक कर लिया जाता है। टकमाल बनाई थी। १७८० ई० में बङ्गालमें रतने तरहके इससे पहले प्रत्यं क ट कड़े को लोहे पर पटक कर बजाया मिक्के चलते थे और उनका मूल्य हर साल इतना बढ़ जाता है। यदि किमीको अावाज ठीक न हो, तो उसको जाता था कि, सुदक्ष सर्राफी के सिवा दूसरा कोई भी निकाल दिया जाता है। उनके मूल्यका निरूपण नहीं कर सकता था। इन सब सिक्कों के किनारीको ऊँचा करने के लिए पहले उनको कारणीसे टकमालके अध्यक्षाने सर्वत्र एकसे सिके चला- यन्त्र हारा दो गोलाकार ईस्यातमें रख कर चारों तरफसे नेका प्रस्ताव किया । एक तरहका रुपया ( सिका) चलने दाब दी जाती है। इससे किनारे बीचको अपेक्षा मोटे लगा, बाको सब गला दिये गये। शे जाते हैं और आकार भी ठोक गोल हो जाता है। १७८२ ई० में गवर्नरजनरलने टकसालके अध्यक्षको इसके बाद पागमें दे कर नरम करनेमे ही वे मिक्के बना. आदेश दिया कि, यीघ्रतासे समस्त पुरातन मुद्रापोको नेके योग्य हो जाते हैं । किन्तु उपरोक्त प्रणालीको सम्मा- नये सिकों में परिणत करने के लिए पटना और मुर्शिदा- दित करते करते वे अमुद्रित खण्ड प्रायः मैले हो जाया बादमें भी टकसाले स्थापित की जाय । करते हैं। उस मैलको दूर करने के लिए उनको गन्धक इससे पहले मुसलमानी सिको' पर पुरी छाप नहीं द्रावकमिश्रित खोलते हुए पानोमें छोड़ कर धो लिया जाता उकरती थी, क्यों कि सिके से साँचे बड़े होते थे। उस है। उन धौत खण्डोंको काष्ठके चरेसे अच्छी तरह पछि पर मुद्रित पक्षरादि भो बहुत अँचे होते थे, इसलिए कर सामान्य तापसे राज किया जाता है। इस प्रकारको दुष्ट लोग मुहरके किनारेको घम कर पा खुरच कर सावधानी के बिना सिक्कोंमें चमकीलापन महौं पाता। सोना चाँदी निकाल लिया करते थे। इस तरहसे मुह- अनम्सर उन टुकड़ोंको मुद्रित करने के लिए मुद्रण रोका वजन बहुत घट जाता था। अब इस चालाकोसे गृहमें भेजा जाता है। एक बड़े भारो मजब त यन्त्र के बचने के लिए किनारेमें दॉत बनाये जाते है और छाप भो दोनों तरफके दोनों साँचे ठोक तरजपर हत्या होते हैं। कम ऊँची कर दो गई है। इस सरहके सिकों में सब छाप पहले नोचेके सांचेमें एक टकड़ा रखा जाता है, फिर बराबर पड़ती है और किनारियों में दाँत रहने के कारण वाष्पीय तेजसे अपरका साँचा समस्त यन्त्रसहित पा कर किसी तरफसे घिसे जानसे मालूम पड़ जाता है। : दाबता है : इमसे दोनों पोर एक साथ छाप उत वर्षे अगस्त महीने में गबन रजनरलके पादेशसे पड़ता है। किनारके दोत भी मौके साथ बन जाते है। ढाका, पटना और मुर्शिदाबादमें भी कलकत्तेको भॉति नीचे के साँचिक चारों तरफ वलयानति एक रस्सासको रुपये बनाने लगे। इन रुपयों में सनकी जगह सम्राटके मजबूत बेड़ी रहती है। जब अपरका साँचा पाकर राजत्वका १८वा वर्ष मुद्रित होता था । यह पया Vol. Ix.2
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।