पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७३१

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UR पीकमा (स.सी.) वय निर्मिता कादरनिर्मित परिवर्तः यन पाते। का समय जब स सुनका . .. घास कसका घर। . . . . . तीय पर्व पखित ... . . ' होवध (स.की.) हृणाल पौषध। एलवालुक हतोबसवन ( लो०) सवत सोमोऽस्मिन् हतोय मामक गन्धद्रय, एलुका। भवन यामधा । यजमेह, पबिटोम पाटि योंका हमान(स'• वि.) हायुद्ध।. तीसग सवन। या पत्र प्रातः, मबापोर मायंकाल. दखा (स.बी.) बवाना समाः तण-य। सबसम में बना होता है। बाबायन-बौतसूत्र में इस प्रकार ..चास संका ढेर।.. . लिखा-प्रात:कालके में जो सब कर्म बखर द्वतीय ( वि.) बयाणां पूरब: वि-तोय सम्प्रसारका हरा हरनेको ३, उन्हें स्वखरसे नहीं करने प्रथम तोनका पूरण, तोसरा। ... . खरम मचा जो मब काम मोर और सरसे द्वतीयक ( पुं० ) ढतोय-कन् । विषम ज्वरविशेष, करनेके १. उन्हें मधामसरने घोर सायं कालमें जो तीसरे दिन पानेदाला वर तिजारा । पामायय, पाइय, नोच और मध्यमस्वरसे करने, उन्हें प्रथमसरसे कण्ड, शिर, और सन्धि से पास काफके स्थान माने भये करना चाहिए। । दिन और रात ये दो हो दोषके प्रकोपकास ।। बतीयांश (सं• पु० ) तोयः पश। वतीय भाग, तीसरा समेत एक एक प्रकोप समय दोष उदयमें लीन हो रिचा। कर दूसरे प्रकोपकालमें व्यर उत्पब कर देता है।दोष बतीया (मखो०) हतोय टाप, ।१ तिथिविशेष, प्रत्येक यदि कण्ड में स्थित हो, तो परदिवस में सवार पक्षका तीसरा दिन, तीन । तिपि देखो। व्याकरण करणं सोमी दिनमें भामाशय पाच्छादन करता और व्या पेक्षा पाता है।सोको हतोयक व्यर करते हैं। यह व्वर बमोयात ( वि० ) हतीय डा--। वारसय एक दिनके बाद पाता है। (सुश्रुत) कर्षितदेव, बात जो तीन बार जोता गया हो। .भावप्रकाशमें भो लिखा , कि जो व्यर एक दिन बाद बतोयाप्रति (मो .) तीया प्रातिः। मा पूरण्याचः । पाता है, उमे टतीयक ज्वर कहते है। जो वतीयक - __पा ३२३८ । इति न पुंकाः । नपुंसक हिजड़ा। ज्वर कफपित्तसे उत्पन्न होता है, उससे विकस्थानम, बतीयांचम ( म० ए० को.) वतीय सत्रम। कानप्रस्था- वावु पौर कपसे सत्यव होनेसे पोठ में तथा वाय पित्तमे श्रम । मास्थाश्रम के बाद यहो पायम अवलम्बन करना पड़ता। इत्पब होनेसे पाले. मिरमें दर्द होता है। हतीयक ' द्वतीयासमास ( स० पु. ) हतीया सासमासः। समाम ज्वरके यही तीन मैद है। (भावप्रज्वर देगे। । विशेष, वतीया तत्य रुष समास । हतीया विभक्ति के साथ वतोयबविपर्यय ( पु.) तोयक ज्वरविशेष । जो : . यह समास होतारसोलिए इसका नाम.सोया समास पर बीच में एक दिन होकर, पादि.और अन्तिम दिनमें रखा गया । समास रखो। विमुक्त हो जाता है, उसे ततोनकविपर्यय कहते है। तीयो (स.वि.) तृतीय स्थर्थे पनि । वतीय भागाई, "मध्ये एक दिन ज्वर जनयति आदावन्त्ये च दिने मुचतीति तीसरे शिक्षका हकदार । .. . तृतीयकविपर्ययः।" (भावप्रकाश ) तृम (स वि) हद बासकात् सब ।सिक, कतल तृतीयता ( स. खो०) दृतीय भाव तस । वतीयत्व, पारनेवाला। सोनका.माव। . . .. दिल ( स० वि०) बद-वाहु इस भेदका, मट द्वतीयप्रति ( स० ली.) हतीया प्रतिः प्रकारः। करानेवाला। २.भिव, पलग । . , . पुरुष और जीके अतिरित एक तीसरी प्रतिवाला, बपत् (स'• पु०) प्रोति प्रीपयति बप-पति। संवत गसक कीव, हिजड़ा। . . . पदहत । उम राति सूत्रोषः निपातनात् साधः । कतोययुगपर्यय ( पु.) तीयख युगस हापरवयर १ चन्द्र, चन्द्रमा २ , तरी... '