पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७०७

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तुलापुमदान-तुलाराम सेनापति एकत: वर्षसस्यानि तथा भूतशतानि च। बह-रोगो पादि महापातसयत मनुष भो तामको धर्मी धर्मकता मध्ये स्थापितासि बगड़िते ॥ तुला बना परनिष्पाप होत गंतोषम वास स्वं तुले सर्वभूतानां प्रमाणमिह कीर्तिता। करते हैं। मां तोलयन्ती संसागा दुरस्त्र नमोऽतु ते ॥ करिकी तुला बनामसे रन्द्रका पद, लोडेसे उत्तम नमो नमस्ते गे विन्द ! सुसापुरुषसजक। स्थान लाभ, पोतन वर्ग, सौससे गन्धर्वलोकमि कास एवं हरे तारयस्वास्मानस्मात् संसारसागपत् ॥ . गंगसे चन्द्रका सायुज्य लाभ, घोने सेगसी पोर तिनको पुण्य कालप्रवासाय कृत्याधिवासन पुनः । तुला बनानसे घरोगो और मुखो होते। पुन: प्रदक्षिण कृत्वा तां तुलामाहेबुधः । जितने प्रकार के दाम', उनमेंसे तुलादान हो सब. सखजचर्मः बची सर्वाभरणभूषितः । प्रधान है। जोवन धारण कर प्रत्येक मनुषको यह धर्म राजमादाय है सूर्येण संयुत।" दान करना उचित है। विभवके अनुसार अर्यादि इस मन्त्र पाठके बाद ब्राह्मणगण दान द्रव्यको तुलादान अवश्य विधेय है। ( दानसागर) २ व्रतभेद, एक प्रकारका व्रत जो १५ या २१ सराज के पलड़े पर रखते पौर फिर निबलिखित मन्च दिनों तक करना होता है। पढ़ते हैं। १५ दिन माध्यवतमें पिन्याव.मांड, महा, जल और "नमस्ते साक्षी भूतानां साक्षीभूते सनातनि । . सन प्रत्येक सोन तीन दिन खा कर रहना पड़ता है। पितामहेनदैवि व निर्मिता परमेधिनः ।। २. दिन माध्यत्रतमें पूर्वोत ५ द्रव्य तोमदिन करके १५ स्वया धृतं जगत् सर्व सहस्थावरजङ्गमम् । और शेष ६ दिन तक वायुभक्षण पर्थात उपवास कामा सर्वभूतात्मभूतस्थे नमस्ते विश्वधारिणि ।।" पड़ता है। यह मन्त्र पढ़ कर तराज परमे दाम-द्रश्यको नोचे तुलाप्रपा ( पु.) तुला प्र प्रापप । तुलादंगड, उतारते और उसमें पाधा गुरुको देते, प्राधिमें दूसरे दूसरे- तराल में बंधी हुई डोरी। को बांट देते हैं। तुनास्थित द्रव्यको अधिक काल तक लाप्रगाह (म. पु० ) तुला-प्रग्रह घज । तुलादण्ड, घरमें नहीं रखना चाहिये। तराज को डोरो। तुलादानमें सराज के एक पलड़े पर दान करनेवाला तुलाबोज ( स० क्लो. ) तुलायाः तोलनस्य बीज तत्। बैठता है और दूसरे पलड़े पर उमो को तोल के बराबर गुन्ना, धुंधचा बोज जो तौलके काममें पात। मोना-चाँदो पादि द्रय रखे जाते है। तुलाभवानो ( म० रो०) शारदिग्विजय के मतानुसार ___ द्रष्यविशेषमे तुला बनानेसे ये सब फल मिलता एक मदो और नगरोका नाम । तुलजापुर देखो जो मनुष्य अष्टधातुको तुना बनाते, वे मानसिक, वाचिक तुलामान ( स० लो०) तुलार्थ सोलनार्थ मान मोयत. और कायिक ममो पापासे मुक्त होत र एवं जितने दिन नन मा करण ल्युट । १ तुलादड, तराजकी होगे। वे मम धातु रहेंगो, उतने सौ कोटि वर्ष स्वर्गलोको २ वा अंदाज वा मान जो तोल कर लिया जाय। वास करते है । पोहे पुस्खक्षय होने पर वे सच ३ बाट, बटग्वरा । कुल में जन्म लेते एवं धन-धान्य द्वारा समूह होते हैं। तुलायन्त्र ( स. पु.) तुलायाः यन्त्र तत्। तुलादण्ड, जो मोनेको तुला बनाते, उनके पूर्व के दम पुरुष एवं सराज । पोरिके दश पुरुष सहार पाते हैं तथा पाप भी स्वर्ग गामो तुलायष्टि ( स. स्त्री. ) तुलाया: यष्टिः एतत् । तुलादण्ड होत र भोर कभी भी दरिद्रताको प्रान नहीं होते। जो तराज में बंधी हुई डोरो। 'चांदोकी तुला बनात, वे स्वर्ग गामो होत. पौर पृष्यो तुलागम सेनापति-पहले ये कहारके पन्तिम पर राजा हो कर जब पार करते हैं। सुवर्षारो, हिन्दू-राजा गोविन्दचन्द्र के एक सिपाही वा राणे