पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७०४

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सीपासलाई एकागो , उममे यही प्रतीत होता है कि उन पर तुला पुरुष. पर, मानांव, ममे, उपखंभावं, परिम- और तुलसोबार पर शोध हो पापत्ति पागवाली है। यह दिशाका स्वामी वायु पश्चति. चिक्षण, वरशून्य, वमचारो, 'विचार कर उन्होंने ब्रिटिश-पक्ष मिलने के लिए दूत भेज दि.! पल्पस्त्रोमङ्गप्रिय, अल्पसन्तान मख्या, शूदवर्ष, उपा- या। १८१७ ई०, तारोख २० दिसम्बरको प्रातः काल के ममय भाव, दिनवलो, विपद, समान पोर शिधिलाग बालक मल्हारराव तम्बूके बाहर खेल रहा था, समी (नीलकण्ठताज.) समय शत लोग कुमारको पकड़ कर ले गौ और एक यवनेश्वरके मनमे-पुण्यधा, पुरुष, उच्चाङ्ग, नाभि, , दन्न मैनिकों ने पाकर तुलसीबाईको घेर लिया। तुलसी कटि, वस्ति देग, वोथि विजयस्थान, मगर, पेषण- आईने पासव विपद देख उन लोगोंमे मावधान रहने के शिलादि, पथ, प्रलपर्ण, धनागार, अर्थाधिवास पर्थात् लिए कहा और तिरस्कार भी किया। परन्तु किसोने भो सिन्द्रका प्रादिके ऊपर, वाटरके अपर, एवं शखको उनको बामपर ध्यान नहीं दिया। अन्त में रक्षक लोग भूमि, पहाड़का पावं, पर्वको चूड़ा: वृष, मृगया तुममोवाईको पारकोंमें बिठा कर शिप्रा नदीके किनारे खान, उत्तम वायु प्रादि तुला शब्दमें है। ले गये पौर उसका शिर काट कर नदोमें फेंक दिया। । यवनेश्वर ।) तुलमोवाम ( हि पु०) अगहन में होनेवाला एक प्रकार- ममब मामि नामा प्रकारको गणनाएं को जा कामही सकता। जिस तरह त वस्तुको प्रगणनामें वह बोर कर साल तक रह सकता है। राशि किस स्थानमें अवस्थित है. उसका ज्ञान हो जाता तुलोमाता (सस्त्री० ) तुलस्याः माला । तुम्नसोको है एव उस राथि हांग जिस तरह रोरका विभाग, माला। तुलसी देगे। उस उस स्थानमें ग्रहोंके रहने से व्रणादिके चित्र तथा तुलसोवन (म.पु.) १ तुलसीके वृक्षों का समूह, ग्रहों वलालसे उस उ अङ्ग प्रत्यको हानि वा दोवस्थ तुलसोका जाल । २ वृन्दावन । इत्यादि जाना जाता है। तुलसोविवाह (सं० पु. ) तुलस्याः विवाहः । तुलसोका स राधिका पाकार राजू लिए हुए मनुष्यका सा विवाह । तुलसी देखा। है। इसके अधिपति देवताका भी प्राकार शस्य-दहन सुलमोखाम-ज मागढ़के अन्तर्गत उना वा उतनगरसे तुलावान् पुरुष जैसा माना जाता है। यह राशि मण प्राय: ११ कोस उत्तरमें अवस्थित एक पुण्यस्थान । यहाँ वर्ण और क्षत्रिय है। .. विण, शिव और हनुमानके अनेक मन्दिर तथा उष्ण तुलाराशिम जिसका जन्म होता है, वह देवमा, प्रस्रवण है। यहाँ गाकर वैष्णव लोग हाध विण के बाह्मण और साधुषोंको पर्वनाम रम, बुद्धिमान, पवित्र. शा और ननका छाप देते हैं। श्रीविजित, अवतदेह और उग्रत नासिकायुक्त, कोश, तुला (स. स्त्री० ) सोल्यतेऽनया तुल-पक्ष । १ सादृश्य. चश्चलगान विशिष्ट, पटनयोल, अर्थ युक्ता, होनाज, क्रय- टुसना, मिलाना। २ टनका दारबन्ध काठ, घरका विक्रय कार्य कुशल, रोगो, बन्धुषोंका उपकारो, क्रोधो, .योम । ३ मान, तौल। ४ शत पख परिमाण, प्राचीन बन्धुहाग निन्दित एवं बन्धुमे परिवत होता है। कालको एक तौल जो १०० पल या पाच मेरके लगभग हातक) होतो वो। ५ भाण्ड, अनाज आदि नापनेका बरतना कोष्ठोपदीपक मतसे तुलाराशिम जिसका जंग होता राथि विशेष, ज्योतिषको बारह राधियों मेसे सातौं है, वह प्रतिपय दोधताविहीन, शिथिल गावविशिष्ठ राणि । मोटे हिमाबसे दो नक्षत्र और एक नक्षतके चतु. पर्यादि बारा बान्धका परितोषकारक, पत्चन्त बहु बर्थात् संवा दो नक्षत्रको एक राशि होती है। भावो, ज्योतिः या और भयोका अनुरंत होता है। चिवागमन शेष ३० दण्ड और स्वाती तथा विशाखाके . कोष्टीप्र०) राशि देखें। पाय ४५ र तुसाराशि होतामकी सो 'भा तुला (हि.स.) से परिपूर्ण दोर कापा.