अधिकार न था। राजकीय टकसालों में शिल्पिगरी गड़ (रणस्तम्भपुर)-इन उनतीस नगरीको टकसालोंमें हाथमे एक एक सिक्का बनाते थे। कहना फिज़ल है ताँब के सिके बनते थे। कि, प्राचीन हिन्दू राजापों के समयके जितने भी सिर्फ इन टकमालों में जितने कर्मचारी, शिल्पी पोर मज- पाये गए हैं, उनका सोना वा चाँदो अति विशुद्ध होने दूर आदि रहते थे, उनके नाम पर काम सक्षेपसे कहे पर भी उनको बनावट उतनो उमदा नहीं है क्योंकि वह जाते है। हाथमे बनाया जाता था । सम्भवतः स्खूबसूरतीकी १। दरोगा-टकसालके कार्याध्यक्ष खरूप प्रत्येबके तरफ उनका मच्च हो नहीं था, ऐसा मालम कार्यका परिदर्शन करनेवाला । सब विषयों में निपुण और पड़ता है। तोवदृष्टि तथा न्यायपर व्यक्तिही ऐसे पद पर नियुक्त अखेकसन्दरके पागमनके बाद पञ्जाब और अफगानि- किये जाते थे। स्तानमें, उनके द्वारा स्थापित नगरोके शामनकर्ता २। सर्राफ-स्वर्ण परीक्षक, ये स्वर्ण रोप्यादिको ग्रीक-पक्षरों में सिक्के अशिस करवाते थे । परवर्ती शामन- विशुहताको परीक्षा किया करते थे। इन पर सिकेका कर्तागण ग्रोक और देशीय दोनों ही भाषाएं व्यवहार उत्कर्षापकर्ष निर्भर करता था, इसलिए इम पद पर करते थे। सनिपुण और न्यायपर व्यक्ति हो नियुक्त किये जाते थे । मुगल सम्राटोंने मिकोंको ख बसूरतोके विषय । पामिन-दरोगाका महकारी। काफी उबति को थो । भारतवर्ष से लूटी हुई सुवर्णगशि । मुशरिफ-दैनन्दिन व्ययका हिसाब रखनेवाला। दिल्ली और आगरेको राजकीय टकसालोंमें मुमलमानी ५। महाजन-मोना, चाँदो और सोबा खरीद कर मिकोंमें परिणत हो कर देश देशमें प्रचलित हुई। टकसालमें देनेवाला। कहना फजल है कि, मुगल सम्राटों के ममयमें हो । कोषाध्यक्ष-पाय व्यय और लाभका हिसाब भारतवर्ष के बहुविस्टत स्थानमें दिल्लीको टकमाल के रखनेवाला। सिक प्रचलित हुए थे। ५वे (महाजन) को छोड़ कर उपरोता मभी कम- बादशाह अकबरके समयमें मुगल साम्राज्यकै ४२ चारो पादौ पर्थात् श्म श्रेणोके कर्मचारियों में गिने नगरी में टकसाले थौं । उन टकमालों में जिन जिन जाते थे । स्थानों के लिये जैसे जैसे सिक्के बनाए जाते थे, उनका ७। तौला-मिक को बारीकों के साथ तौलनेवाला। नीचे उल्लेख किया जाता है। ८। धातु गलानेवाला-मित्र स्वर्ण, रौप्य और नाम- म। दिल्ली, बङ्गाल, गुजरातस्थ अहमदाबाद को गला गला कर चहर बनानेवाला। और काबुल, इन चार स्थानोंको टकसालों में स्वर्ण रौप्य । मिथ स्वर्ण-रौप्यादिकी चकतिया बनानेवाला- भोर ताम इन तीन प्रकारको धातुओंके मिक बनत थे। सराफको इनकी बनाई चकतियों को पछा ममझ- २। पलहाबाद, बागरा, उज्जम, सूरत, पटना, नेमे विशोधन करानेका अनुमति देता था । मिश्रित उन काश्मीर, लाहोर, मुलतान और ताण्डा रन दश स्थानों. चकतियों को सोडा और रेटके चूरमें कणीको आगमें की टकसाल में सिर्फ चाँदी पौर ताव के सिक जला कर शुद्ध किया जाता था। बनते थे। १०। विशुद्ध धातु गलामेवाला-यह प्रादमो उपरोक्त श्य । अजमेर, अयोध्या, भाटक./ पलवर, बदाज, विशोधित चकतियोको गला कर चहर बनाताई। बनारस, भाकर, बहिरा, पाटम, जौनपुर, जालन्धर, ११। जराब-चहरको काट कर सिके के पाकार और हरिद्वार, हिस्साह फिरुजा, कालपी, ग्वालियर, गोरखपुर, मापका टुकड़े बनानेवाला। कलामूर, लखनौ, माल, मागर, सरहिन्द, सियालकोट, १२ । खोदकार-सात लोहे पर चित्र और अक्षर सरोंज, सहारनपुर, सारजापुर, सम्बकापोज पोर रन्तम्- भादि खोद कर सिके लिये ढाँचा बनामेवाला।
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