पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६९५

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पोरस और उनको स्त्रो माधवोके गर्भसे कार्तिक पूर्णिमा- कवर पपने खानको पल दिये। तुलसी भी संपला के दिन उत्पन्न हुई। उसके आपको तुलना किसोसे नहीं को समाज पर खिर चित्तो । ए समय बाद हो सकतो थो, इसोसे इसका नाम तुम्लमो पड़ा। पोहे बघा कायमानुसार मापूर नामक राक्षससे इसका तुलसो वनमें जा कर कठोर तपस्या करने लगी । उसको विवाहापा। भाडको पर मिला था कि बिना सस- मोरनर तपस्यासे सभी उहिन्न हो गये। जिसनो कठोर को खोका मतोव भए उसकी मात्व न होगी। तपस्या हो सकतो थो, तुलमोने एक भो न छोड़ो। इस शापूडने खराब जोत वर देवतापोवा अधिकार तपस्यासे ब्रह्मा भी स्थिर न रह सके और तुलसी के निकट छीन लिया था। जब देवता लोग हर भी उसका करम पा कर बोले, 'तुलमो ! तुम अपना प्रभोष्ट वर मांगो।' सके, तब वे सबवे सब नापास मये। ममा उन तुलसोने ब्रह्मासे कहा, 'प्रभो ! यदि पाप मुभा पर पपने माय लेकर शिवके पास पावे, शिवजो उन प्रसन्न है, तो जिस वर के लिये प्रार्थना करतोई सो बैकुण्ठ में विसुके निकट ले गए। विशुने करा, पाप लोग सुनिये। पाप सर्वच है, पापसे कोई बात हिणे नहीं मिल कर शाके साथ बुद्ध कोनिये, हम माया है। मेरा नाम तुलमी गोपो है, मैं पहले गोखोकम रूप धारण कर तुम्तमोका सतोल भा करेंगे। पोई रहतो यो। एक दिन मैं गोविन्द के साथ विहार करते गाइ पाप लोगों द्वारा मारा भायमा। बहकानारा. करते मूच्छित हो गई थी, तिस पर भो मेरी पका पूरो याने तुलसोका सतोव नष्ट किया। जब तुलसोको न हई। समो समय रामेश्वरी राधा वहां पहुंच गई' मात्र म पड़ा कि ये नारायण है, तब उसने उ याप और ऐसो अवस्था में हम दोनोको देख आणणको तो पतंक दिया कि "तम पत्थर हो जायो।" स्वामीको मत्यु के बाद कटु वचन कहे और मुझे शाप दिया। बाद मणने । तुलसो नारायण पर पर गिर कर रोने लगो, सब नारा- मुझसे कहा कि तू तपस्या करके मेरा चतुभुज श याने बहा, 'तुम यह रोरो कर लचोके समान पायेगी। पब मैं उन्हींको पति स्वरूपसे पाना चाहतो।" मेरो मिया होपोगो। तुमार बरसे गहलो नदी इस पर ब्रह्मा बोले, 'श्रीक्षणके असे उत्पन सुदाम भोर केयसे तुलसो वक्ष होगा।' सो समय सातो नामक गोपने गधिका शापमे दानवमहमें जन्म लिया गया। तबसे बराबर यालपामको पूजा होने लगी और है। शाचर उसका नाम है, गोलोकमें तुम उसे देख तुलसोदश उनके अपर चढ़ने लगा। बिना दुससौके कर मोहित हो गई थी, पर राधिकांक भयसे कुछ कर उनकी पूजा नहीं होती। न सकी। पभी उसोको तुम पति के रूपसे ग्रहण करो, . (प्र० प्रतिव०१५-२१०) पोछे क्लष्ण मिल जायगे । नारायणके शापसे तुम एक हाधर्मपुराणके मतस-पाचोन बालम कैलास- वृक्ष में परिणत हो कर सभोसे पूज्या पोर विखपावनो पुरमें धर्म देव नामक विण मणिपरायण एक साधुपौल होमोगो एवं सब पुष्पों के प्रधान पोर नारायणको प्राण प्राण रहते थे। उनकी खोका नाम इन्दा था।हन्दा धिका होमोगो । बिना तुम्हारे सभी पूजा निष्फल होंगी।' धर्मचारिणी पौर पतिव्रता थी। तुलसीने ब्रह्माकं मुखसे यह सुन कर कहा, 'पापने जो एक दिन धर्म देव बायको सभामें जा करणका कुछ कहा, वह सत्य हो । किन्तु जणको रतिसे मैं गुण गाम कर रहे थे। घर भोजनका समय बीत गया, वल नहीं हुई, अतः श्यामसुन्दर बिभुज माणसे मिलने उन्दा अपने घरमें अभ्यागत पतिथिको पूजा करके मनो. को पछा करती। पापक प्रसादसे उनका मिलना हर कलामशिखर पर प्रतिवासियोंके घर घूमने रखो दुलभ नहीं है। किन्तु पभो सबसे पाले मेरे जो राधा- गई। इसी बीचमै धर्म देव अपने घर पाये और पानीको का भय है, उमे हो मोचन कीजिये।' ' सुधाग तथा पाला जान कर बहत बिगड़े। बन्दा ब्रह्मान षोड़शाक्षर राधिकामन्त्र, स्तव, कवच, श्रादि पर नजर पड़नके साथ ही उन्होंने पाप दिया कि, 'तू ससे दे दिये और 'तम राधाको तरह सुभगा होषो ऐसा धार्मा को कर अपना घर छोड़ धर उधर