पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६५०

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३ तुदेखा-तुकाराम तुदैना ( वि.) लम्बोदर, वर्ष पेटवाला, तोंद है। हिन्दीमें तुलसीदास, बङ्गामा रामप्रसाद, तामिल में वाला। तिरुवल्लुवर तथा मराठीमें तुकाराम प्रत्येक नरनारी- तु बड़ो (स्त्रिो०) एक प्रकारका छोटा पड़ । इमकी के उदयमें विराजित है। हिन्दुस्तानमें ऐमो कोई लकड़ो मकानों में लगती है जो सफेद, नर्म और चिकनी हिन्दू-मन्तान नहीं है, जिसने तुलसोदामके कवित्तों को मास म पड़ता है। मवेगी इसके पत्ते बई चावसे खाते न सुना हो । राजपधर्म, नगर में, ग्राममें ऐसा कोई स्थान नहीं, जहां तुम्नसोदासको कविता न सुनो जाती सुपर (हि.पु.) परहर, मादकी। हो। तुलसोदामने युवाप्रान्तमें जैमा स्थान पाया है, त (हि.स्त्रो०) एक प्रकारको बेन जो कपड़े पर तुकारामने भो महाराष्ट्रदेशमें भो वैसा हो गौरवका बुनी हुई रहती है। वामन प्राप्त किया है। ये भतामहापुरुष अपनो जन्म- तुक (संपु.) तुज-क्तिप । अपत्य, सन्तान। भूमिमें देवांश या देवानुग्रहीतके समान प्रतिष्ठामाजन तुक (हि.सी.) १ किमो पद्य या गोतका कोई खण्ड, इए हैं। इनके समस्त पद प्रभा नाममे परिचित है। कड़ी। २ वरपक्षर जो किमो पदके तमें रहता है। ये सब प्रभक्त महाराष्ट्र जातिके हृदयके रत्नस्वरूप है। ३ अचरमैत्री, पद्य के दोनों चरणों के अन्तिम पक्षरोंका भिक्षुकसे लेकर राजचक्रवर्ती सम्राट तक इनके प्रभङ्गा- परस्पर मेल। को पादरसे गाते पोर सुनते हैं। बहुतमे धर्म मन्दिर तकज्योतिविदे-एक प्राचीन हिन्दू ज्योतिर्विद । में यह देवोमाहात्मा या गोमाको नाई पादरसे पढ़ा तुकाबंदी f. स्त्रो.) १ भहो कविता करनेको क्रिया। जाता है। २ ऐमा पद्य जिममें काव्य के गुण नहो. भदावध। महाराष्ट्रको राजधानो पूनासे पाठ कोस पश्चिमोत्तर तकमा (फा• पु० ) घुडो फमानेका फदा। में इन्द्रायलो नामक एक छोटी नदो है। के किनारे तुकान्त ( हि स्त्री० ) पत्यानुप्राम, काफिया। देर नामका एक ग्राम पवस्थित है। इस ग्राममें तुका (फा० पु. ) बिना गांमोका तोर, वह तौर जिममें “मोरे" उपाधिधारो शूद्र जातिका एक महाराष्ट्र परिवार गांसोको जगह डीसी बनी हो। वाम करता था। वाणिज्य हो उनका प्रधान व्यवसाय तुकानोरी ( स० स्त्रो. ) सुगाचीरो पृषोदरादित्वात था। यह वंश अत्यन्त धम पगयण था। तुकाराम "सानुः । वंशलोचन। के पूर्व पुरुष भक्ति और वैराग्य में उस समय सबसे श्रेष्ठ त कार (हि.सी.) अशिष्ट सम्बोधन, 'तू' का प्रयोग जो थे। तुकारामके अवं मलम पुरुषका नाम विश्वम्भर अपमान-जनक ममझा जाता है। था। ये बाणिज्य-व्यवसायो थे किन्तु माधारण बणिक- तुकारना ( हि कि.) पशिष्ठ सम्बोधन करना, तू तू को नाई अन्यायाचारो न थे। जब कभी अतिथि और करके पुकारना। सन्यासीसे मुलाकात हो जातो, तो ये बहत यत्मसे उन- तुकाराम महाराष्ट्र देशके एक प्रसिद्ध भत्ता कवि। भारत- की सेवा करते थे और रातको भक्ताहन्दों के माय मिल कर वर्ष धर्म विद तथा महापुरुषोंको लोनाभूमि है। प्रति बहुत पानन्दसे सहीर्तन करते थे। भुगमें और देश देशमें भगवत महापुरुष जन्मग्रहण पढरपुरके बिठायादेवको पूजा करना पून लोगों को करके रस देशका गौरव बढ़ाते हैं। कोई भति, कोई कोलिक रोति थी। उसोके अनुसार प्रत्येक एकादशी. जान, कोई वैराग्य, इत्यादि सदगुणों धारा खदेश- को वे पण्डरपुर जाकर विठोबा देवकी पूजा करते थे। वासियोका बहुत उपकार साधन कर गये है। वैदिक किन्तु एक दिन उन्होंने स्वप्रम देखा कि विठोबा देव स्वयं मन्नास लगाकर वर्तमान समय के धर्म सङ्गीत तक सभी । उपस्थित होकर उनसे कह रहे कि "वत्स ! मैं तुम्हारो धर्म भावमें पनुपाणित है। हमारे देशको पाधुनिक भलिसे बहुत प्रसव हुमार, पब तुम पल्हरपुर जानेको • भाषायोंमें धर्म-भावोद्दीपक पदावलियोंका प्रभाव नहीं कोई पावश्यकता नहीं। तुम अपने ग्राम.देहुत ही