पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६४८

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तीसी तोसो अन्य तेम्मान बोजके साथ मिलकर खराब हो पोर सूत निकालनमे सब धरबाद हो जाती है। जातो है तथा इसके तेल में सुखानिका गुण कम स ज ता ! १८४१ ई० में मुङ्गारमें इसका प्रशन किया गया । तीन वर्ष है। इस देश का तेल एक दफा विलायतमें बेचने के लिये परिश्रम करने के बाद १८४४ ई में मत कुछ कुछ परिकार भेजा गया था, किन्तु वहाँ जब यह सेल जांचा गया, भार कोमल होमे लगा: किन्तु गवन मेण्ट को ओरसे किसों तब बाजारका दरले दश पन्दह रुपये भमें बिका। प्रकारको सहायता नहीं मिलने में कुछ समय के बाद कार- तभासे इसको रफतनो बहुत कुछ बन्द हो गई है। बार बन्द हो गया। अन्समें नम टाक किनार जबलपुर में मिजीपुरको लाल तोमोका सेन विनायत के रम विषयको पोर लोगों का अच्छा ध्यान था। यहाँके सलमे बन्ला और अच्छा होता है। किन्तु कोल्डप पर तोपोके पौधेसे उत्कृष्ट मृत त्यार होता है । शाहाबाद में जाने के कारण उतना आदर नहीं है। धानामे तेन १८३७ ई० को इसको पर!क्षा प्रारम्भ हुई। यहां जो निकालने में वर्च भो ज्यादे पडते है। १०० प्रन तेल में मत तैयार होता है वह बहुत कड़ा होता है। रुसियाके प्रायः ८०, रु. खर्च होसे है। विनायतो वाचाय कालमें सूत मरोखा यह भो विलायतमें कम दरमें बिकता है। १०० मन तेल निकालने में लगभग १८, रुखच पड़ते एक समय बङ्गाल देशमें भो रसको पवन अबति हुई। चट्टग्राममें जो सूत तैयार होता था, वह लम्बाईम म तीसीका सूता अभी यूरोपोय विद्वानों के यत्न और होने पर भो कम्पनीको परोक्षा हारा बहुत उत्सष्ट प्रमा. चष्टासे भारतवर्ष में कई जगह तोसोका सूना तयार गितहपा था। वर्षमानमें चार प्रकारके सूत प्रस्तुत होने लगा है। १७ मे २०६८ में पहले पहल इस हुए; जिनमें मे तोसरा प्रकारका सुत मबसे उमदा ममझा जाता था। विषयमचेष्टा की गई। इस देश के किसान लोग पहले सोमोसे रेशा निकालन किमी तर महमत न हए। म तरह नाना क्यानों में सोमो के सूतके लिये जब म लोगोंका विश्वाम था, कि जो काम बाप-दादाने नहीं खेतो प्रारम्भ हुई, तब धागे धारे किमान लोग अपने में हो बहुत कुछ रमे उपनाने लगे। किया है वह काम करने में विशेष अनिष्ट होगा। इन १८५५ ई० को पञ्जाबमें लानौर के निकटवर्ती मियाल- सब प्रधान मनुष्याक दृढ़ विश्वासको घटानमें साहको कोट पोर दोननगरमें इममे जो सून बनता वह चार जितना कष्ट झेलना पड़ा था वह पकथनीय है। लाभ- पाई पादिको रस्सोंके काममें प्राने लगा। काङ्गड़ा को कथा उदाहरण वा उपदेश किसोसे भी हम लोगों- उपत्यकासे १८५८ ई में जो सूते का नमूना विलायत का ध्यान इम और पाकर्षित न हुआ। डा. रावर्गने भेजा गया, उसका वहां खब पादर हुअा और जची सबसे पहले इष्टइण्डिया कम्पनोके राज्यमें रिसड़ाके सनको दरमें विक गया । प्रत: भारतवर्ष में रोतिमतसे कोठी में म त तैयार करनेको व्यवस्था कर दो । उनका व्यवसाय चलाने की इच्छासे बेलफाष्ट शहरमें १८६१ प्रस्तुत सूता बहुत उमदा होता था। १८३८ में लगड.. ई०को बेलफाष्ट भारतीय तोमो-सूतको कम्पनो नामक नमें एजाम नामक एक व्यक्तिक पधीन एक कम्पनी एक दल अंगरेज इस काममें प्रवृत्त हुए। मगठित हुई। ग्गिा और बोलन्दाजी बीजके साथ एक सियालकोटमें इन लोगोंका एजराट-माफिम स्थापित बेलजियमका कषक और एक बेलजियमवासो तोमोमे हुमा। पहले इनदो इतनी क्षति हुई कि कारवार सूत प्रस्तुत करनेवाला यूरोपोय यन्त्रादि लेकर इम प्रायः उठने उठने पर हो गया था। अन्त में होम-गवर्म- देशमैं पाया। यहां उन्हें इसके लिये खेतो नहीं करनो मेण्टके वार्षिक साहाय्यसे इन लोगों का प्रस्सन सून आर पड़ी। क्योंकि उनके उपदेशसे हो यहाक मनुष्य इस रिश-सूतैसे मिलता-जुलता था; कित्तु पधिक जमीन विषयमें पेष्टा करने लगे। काशोके निकट वलिया और वषर्क नहीं मिलने से उता कारबार बन्द हो नामक स्थानमे १४० १०को जो खेतो की गई, वह गया। १८६८ ई० में एक दूसरी कम्पनोने इस काममें सन्तोषजनकम यो। क्योंकि असमबमें खेतोकारने हाथ डाला।