पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६१०

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तिल पाप जो इसका कार्य मम्हालले गई। पांचवें अधिवेशन चन्दा एमा, जिसमे रामगढ़ में शिवाजोक समाधिमन्दिर भबसे पधिक मफलता प्राप्त हुई। १८८२९ में इसका का मस्कार हो गया. सभोमे यह प्रति वर्ष शिवाजो- एक अधिवेशन हुा । इमके दूसरे वर्ष लाड डफरिन पूजाका अनुष्ठान चिरस्थायी हो गया। को भेदनोसिके कारण हिन्दू-मुमलमानों में बड़ा भारी १८५६ ई० में महाराष्ट्र प्रदेश में भाषण दुर्भिक्ष पौर टंगा हो गया । तिलकने अपने थाख्यान में भेदनोतिको प्लग फल गई। लोकहितमें प्राण विसर्जन देनेवाले बात प्रकट कर दी ; जिमसे सरकार भातर हो भीतर महामति तिलकका सदय क्रन्दन करने लगा पापने कम तिनक महाराजमे जम्न मे लगो । यहोंमे तिलक पर मर ममय स्वार्थ-यागका ऐमा अपूर्व दृष्टान्त दिखलाया कारको कडो निगाह रहो, उनके प्रत्येक कार्य पर सरकार कि उसोसे भापका नाम अक्षय हो सकता था। लक्ष्य रत्तो थो। तिलक महागन कुछ मरकारो कर्म दुर्भिक्षके समय विपश्व नरनारियोको सहायता पहुंचानक चारियोंको अनुसृत नोति के विरोधो हो गये। कम लिए जो मरकारो श्यवस्था है, उनको काम में लाने के चारियों को इमो सम्पर्क मे, जनमाधारण पर निलकके लिए पापने बम्बई सरकारले विशेष लिखो-पढ़ो की थी। असाधारण प्रभावकी बात मान्नम हो गई । “केशरी" को परन्तु तिलकका अनुरोध व्ययं गया सरकारने कुछ भी सहायतासे हो तिलकने अपना प्रभाव समग्र मराठा- सुनाई न को। पाखिर तिलक विपबोंके को श-निवा- समाज में फैला दिया था। तिलक के प्रभावसे मराठा जाति रणाय स्वय' हो अग्रसर हुए । अापने पूनामें स्वल्पमूल्य में में इस समय एक नवीन भाव जाग्रत् हा थो । शिक्षिन खायशस्य बेचने और पनवितरण को व्यवस्था कर दी। समाजमें भी तिलकका काफी प्रभाव था, इसी बीचमें इस समय यदि ऐसी व्यवस्था न होतो, तो दंगा फसाद पाप दो बार बम्बईको व्यवस्थापक-प्रभाके सभ्य निर्वाह विना कभी न रहता। शोलापुर और नागरके चित हुए थे पोर बम्बई विश्वविद्यालय के 'फेलो' हुए थे। जुम्लाहोंकी दुर्व्यवस्था विषयमें संवाद पात हो पाप वहा. १८८५६०में पापको पूनाको म्युनिसिपालिष्टीने सदस्य के लिए रवाना हो गए। आपमे स्थानीय नेता प्रोंसे परा. चुना। इसी साल पूनामें कांग्रेसका ग्यारहवां अधिवेशन म किया और सरकारी कर्मचारियों के साथ मिल कर होना निश्चित एषा और पाप उसको अभ्यर्थना समिति- विपन नरनारियोको सहायता पहुंचानको व्यवस्था कर को मन्त्री निर्वाचित हुए। तिलकने मेलेम्बर मास तक दो। युक्तप्रदेश के दुर्भिक्षके समय वहांके मदानोन्तन इसके लिए बहुत परिचम किया। उपरान्त कांग्रेसके शेटे लाट महोदयमे जिम व्यवस्थाके अनुसार काम कर पण्डाम्नमें समाज-संस्कारक विषयमें पालोचना हुई, सुयश प्राप्त किया था, तिलक महाराजने शोलापुर प्रान्त जिमका तिलक महाराजने विरोध किया और पाखिरको के लिए भो वैसो हो वावस्था की थी। परन्तु तिलक इसी कारणवश पापने मन्वि-पदसे इस्तीफा दे दिया। महाराज के कार्य-कलापोंसे उस ममय बम्ब-सरकारको परन्तु कांग्रेसको सफलताके लिए पापने एक दिन भी सहानुभूति न होने के कारण, वह उस वावस्थाके अनुसार परिश्रम करना न छोड़ा था। कार्य करनेको तैयार नहीं हुई। तिसकके अन्यान्य १८८५१०में पापने मराठा जातिमें खटेश-प्रेम लाने- प्रस्ताव भी इसी तरह सरकारकं हारा उपेक्षित हुए थे। के अभिप्रायसे शिवाजीको पूजाका प्रवर्तन किया। पूनामें प्रेग उपस्थित होते हो महाप्राण तिलकने वहाँ जातोय देशनायकोंके जोवनचरित्रको पालोचना करनेमे हिन्दग-अस्पतालको स्थापना कर दो। इस अस्पतालके जातीयताको वृद्धि होती है, ऐसा समझ कर हो तिलक वायके लिए मापन पावश्यक प्रर्य संग्रह करने में महाराजन इस पनुष्ठानका प्रचार किया था। भी यथेष्ट परिश्रम किया था ! प्रेगक भयसे पूनाक शिवाजीको स्मृति-रक्षा भान्दोलनमें योग देने के बाद प्रायः सभी नेता बाहर ससक दिए। यह देख तिलक सिलक महाराजन 'केसरी' में इस विषयका लेख दूने उत्साहसे कार्य करने लगे। प्रेगके रोगियों को मेवा लिया। इस लेखक परिमाणस्वरूप २० जारवा पाप उसी तरह करने लगे, जिस तरह एक योग्य स्वयं