पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५९०

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विरुणयहतुरै-तिरुवन्नमलव तिरुवण्य तुरे-तोर जिन्न के मबार गुड़ि शहरमे ३ पड़ता है। यहां एक प्राचीन विष्णु मन्दिर है, जिसके कोस दक्षिण-पूर्व में अवस्थित एक ग्राम। यहाँ एक नाना स्थानो में भित्र प्रक्षनमें खुने हुए बहुतसे शिलालेख प्राचीन शिवमन्दिर है जिसमें १३५३ का खुदा हा पाये जाते हैं। मन्दिरके भीतरको दोधारमें भी एक एक शिलान्ने ख है उममें मन्दिरक विषय का पूग पता शिलालिपि है। इसके पास हो तिनमणिकलि नामक चलता है। ग्राम है, यहां हरत् ययेष्ट कार कार्य विशिष्ट एक तिरुत्तियुर-मन्द्राज प्रदेशके चेङ्गलाट, जिले के अन्तः शिवमन्दिर है। प्रवाद है कि यह मन्दिर १३वों शता- र्गत मंदापेट सास्लुकका एक शहर । यह प्रक्षा० १३१० . ब्दीमें निर्माण किया गया है। इसमें भी बहुतसे शिला- उ० प्रौर देशा०८०१८ पृ० मेंट जार्ज किलासे ६ मील लेख है। पूर्व की ओर प्रवेणहार पर १८ इञ्च चौड़ी उत्तर पवस्थित है। यहाँको जनसंख्या प्रायः १५८१८ और १५ गजलबी एक लिपि है। हारके दोनों बगल है। यहाँ एक पति प्राचीन शिवमन्दिर है । मन्दिरके दोवारों में बहुतमे शिलालेख खुदे हुए है। बाहर और भीतर ग्रन्यअक्षरमै खुदा हुषा शिलालेय तिरुववमलय-प्रन्द्राज के दक्षिण पार्कट जिग्न का उत्तर- पाया जाता है । १६७३ ईमें फ्रायर सारुच इस मन्दिर पश्चिमोय तालुक । यह अक्षा ११५८ मे १२.३५° उ० और शिलालेखको देख गये हैं। देशा० ७८३८से ७८.१७ पू. में अवस्थित है। भूपरि. तिरुवतूर-मन्द्राजके उत्तर अरूकाड़, (प्राकट) जिले का एक माण १००० वर्ग मील और लोक ख्या प्राय: २४४७०८५ शहर । यह पार्कट शरम ११ कोम दक्षिण-पूर्व चेयार है। बारामहलसे चेङ्गामगिरिपतको राहमें यहो नदी के उत्तरकूल पर अवस्थित है। पहले यह नियोका मबसे पहला शहर पड़ता है, इसोसे घाट पर्वतके उप एक प्रधान शहर था । यहाँका देवमन्दिर पहले स्थानीय रिस्थित स्थानममूहका व्यवभाय दम शहरमें चलता है। पौराणिक मताचारियांक हाथ था। इस मामने नदोके पर्वतके अपर स्कन्धावार है। १७५३ ई०से १७८१ ई०के के दूमरे पार, पूर्णावत्तो नामका स्थानमें एक जैन मन्दिरका मध्य एस पर दश बार धावा मारा गया था। १७६० तलभाग अवशिष्ट है। कहा जाता है, कि उस मदिरको ईमें यहां अगर जौंका एक स्कन्धावार था। १७६७ सहम नहम कर उसके द्रव्यादिसे तिरुवत्तरका मन्दिर में कल स्मिथ, इंदापनी और निजामके साथ निर्मित हया है। पूर्णाक्तीके मन्दिरको जैन प्रतिमा प्रभा यह समय चङ्गामगिरिपथ हो कर पाते हुए इस पृथ्वी पर पडी हुई है। उसके पाम हो ए नहर है। सुना थानमें उनके सहयोगियोको एक एक करके परास्त जाता है कि उस नहरमें मंदिग्के पोतलका किवाड़ किया; किन्तु १७८१६ में यह टोपूके हाथ लगा। टीपूके पोर धनरत्न रखा हुआ है। मदिरके वंमके समय अध:पतन के बाद यह फिर अगरेजोंके दखलमें आया। बहतम जेन फांसी पर बस्त्राघात तथा कौलहमें पैर विश्ववमलय दक्षिण प्रदेगमें मन्द्राजके मध्य एक कर मारे गये थे । मदिरमें खुदे हुए चित्रसे इसका पूरा प्रधान तीर्थ है। यहां एक रेलवे स्टेशन भी है जो गह- प्रमाण झलकता है। मदिरको एक खुदी हुई समवोर रसे: मोलको दूरी पर पड़ता है। स्टेशन अरुणाचल एक ताडका पड है। वहाँ के लोगोंका विश्वाम लोगो.. . म पहाड़ के पूर्व को ओर है। यह तो मस्कत शास्त्रों में . है कि महादेवको अनारोखर मूर्ति के प्रतिमा स्वरूप अरुणाचल नाममे प्रमिल है। यहां महादेवको पञ्च- यह पेड़ खुदा हुमा है।इम तसबोरका लेख अत्यन्त भौतिक मूर्ति को तेजोमृत्ति विराजित हैं। अरुणाचल विख्यात है। यह एक मगडप पर अवस्थित है और इम गिरिराङ्ग समुद्रपृष्ठ से २६६४ फुट पोर शहरमे २०१५ की ऊंचाई लगभग ८ फुटको होगी। मदिरको दोवार फुट ऊंचा है। में बहुत पस्पष्ट उत्कोण शिन्नालेख देखे जाते हैं। महादेवको तेजोमूर्ति के आविर्भाव विषयमें एक तिरुवन्दिपुरम दक्षिण-पारकाड़, पार्क ट) जिलेका एक रोचक कहानी इस प्रकार है-किसो समय हर पौर मार। यह कुण्डल र शहरसे २३ कोस उत्तर-पखिममें पावंतो कलासके पुष्पोद्यानमें भ्रमण कर रहे थे