पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५६९

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बिरहुत ४०५०४. पौर देशा० ८५ १४ २४" पू.में अवस्थित पुरके गढ़को जीतनेवाभास किया। हाजोपुरके जमी. है। यह इसी नाम के उपविभागका सदर थाना है। दार गजपति मेनापति हो कर बढ़ने लगे। दुर्गाधिपति लोकसंख्या प्रायः २२॥ हजार है। य। पटना शहरसे अफगान फतेखी तथा पोर भो बहुतसे मैनिक मारे गये। विपरीत दिशा में पड़ता है और इसमें सोनों ओर नदो सभोके मस्तक दाजद के निकट भेजे गये, जिसका उद्देश्य रहने के कारण जिलेमें यह एक विशेष प्रयोजनोय यह था कि वे इससे अपना परिणाम समझ सकेंगे। प्रक बाणिज्यकेन्द्र हो गया है। यह एक दुर्ग, कई एक बर पपना दुर्ग देखने के लिये पल-पहाडीके अपर गये सराय, मन्दिर पोर ममजिदके भग्नावशेष है। किले में एक और फिर लौट पाये। पाँच दिमके बाद दाउद बाल- सराय है जहाँ नेपालके मन्त्रो कभी कभी पाया करते से उड़ीसा भाग पाये ; वहाँ वे परास्त हो कर सन्धि है। सरायके मध्य एक दोतलाको बौद्यमन्दिर है। इस करनेको बाध्य हुए, किन्तु १५७७१ में उन्होंने विद्रोही सखुए काठको शिल्पकारो तथा अपालिकाको बनाइट हो कर मुगल सेनाको हाजोपुरसे निकाल भगाया। पोहे प्रशमनोय है । मन्दिर ८० वर्ष पहलेका बना हुपा है। मुजफ्फरखाने उन्हें पच्छो तरह परास्त किया । शोनपुरघाटके निवाट जामोमसजिद नामको पत्थरको धनो १५७८ में विद्रोहो परब बहादुरने रम दुर्गम पाश्रय हुई एक मसजिद है। बाजोलियम नामके किसो मुमला लिया। हाजीपुर के दोवान मुना तानिया हारा उनको मानने ५सौ वर्ष पहले यह शहर स्थापन किया था। मम- जागोर कोन स्लो जाने पर वे बागी हो गये। मुना मजदी जिट भी उन्हीं को बनाई हुई है। मौनापुर पोर हाजीपुरके (भमोन), परखोसम (बकयो) भोर समर (खलिसा)ने बाजार और दो मसजिहें हैं। मोनापुरको मसजिदके परब बहादुरका पक्ष लिया। पन्त, परब बहादुरने प्रतिष्ठाताका नाम मामय है। शहर के पश्चिममें राम- परखोत्तमको मार कर सारा विहार प्रदेयम्तगत किया, मन्दिर है। प्रसाद है, कि जनकपुर जाते समय राम- किन्तु पटनेके दुर्ग में पराजित हो कर उन्होंने राजापुरक चन्द्रजो यहां कुछ काम तक ठहरे थे। उनके अवस्थिति- दुर्ग को शरण ली। महाराजखाँने एक माम कोशिश स्थान पर हो यह मन्दिर बना हुआ है। प्रभो सारण करनेके बाद उन्हें यहांसे निकाल दिया। १५८४ में जिलेमें जो जोनपुर का मेला लगता है, पहले वह हानी- मसूमखोंके सेनापति खविता इसी स्थान पर परा- पुरमै ही लगता था। उक्त मेलेमें, नदोमें बकरा फेक जित हुए थे। किसो समय यहो हाजीपुर सरकार देनका जो नियम था, वह अब गण्डकके उत्तरी किनारे हाजीरका प्रधान शहर था, उस समय इस अर्थात् हाजोपुरमें हुमा करता है। पहले जिम दुर्गके में ११ परगने लगते थे। अभी इसके की एक परगने भग्नावशेषका उल्लेख किया जा चुका है, उसे भी हाजो मुगर जिले में मिला दिये गये। इलियसने ३६० बोघा जमीन जपर बनाया है। लालगन-गण्डकके पूर्वी किनारे पर हाजोपुर । १५७२ ई० में अकबर के एक सेनापति मुजफ्फरखान कोस उत्तर-पूर्व में अवस्थित एक प्रधान बाणिज्य केन्द्र अफगान-विद्रोहियों के हाथसे हाजोपुर छोन लिया, किन्तु और विख्यात शहर। इससे कुछ दूर सिलिया नोल. वे नदोके किनारे टहलते समय शत्र से मार डाले गये। कोठो है। पहले बोलन्दाज लोग इस कोठीमें सोरका दो वर्ष के बाद सुलेमान कररानोके छोटे लड़के दाऊदने कारोबार करते थे । तिरहुतमें यूरोपोय कोठियों में केवल पटनेके दुर्गको तहस नहस कर दिया। इस पर दाऊद- दो हो प्रादि और पुरातन है। १७८१ में बोलन्दाज को पकड़ने तथा विहार पर शासन करने के लिये खां इष्टइण्डिया कम्पनीने यह कोठो पोर रसके ससम्म १४ खानानको दिलोसे हुका मिला। दाजदने हाजीपुरके बीघा जमीन जगनाथ सरकार नामक एक व्यक्तिसे एक किले में पात्रय लिया। मुगल सेनाने दुर्ग अवरोध किया। सौ रुपये खरोदो थी। इस विनायक कागजात पब अकबरको यह सबाद मिलने पर वे स्वयं पटनको और भो विद्यमान है। जिन्हें जगबाथ सरकारसे ग्रेज चल पड़े। उनीने तीन हजार सेना साध लेहाजो- गवर्मेण्टने खरीद लिया है। Vol. Ix.:142