पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५५१

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विख्यात भ-नियन छुन-ग्यलतषन जो फग्मो-दु* नामसे धर फगमोदुने भी चीनमें स्वयं जा कर तत्कालीन थो. प्रसिद्ध है उनका जन्म फगमोदु नगरमें हुआ था। उन्होंने गन-थ म नामक प्रसिप चीन-सम्राट को तरह तरहको हो प्रक्षन तिब्बत के १३ जिलों और खम प्रदेशको वशीभूत बहुमुख्य सामग्रो. दुर्लभ धनरत पोर खन सिंचम कर वहां अपना राजत्व स्थापित किया। तीन वर्ष को उपहारमें देकर प्रकत घटना कह सुनाई। सम्राट ने उमरमें उन्होंने लिखना पढ़ना मोख लिया था । छ वर्षको यह रहस्य सुनवार फगमोदुका वालिमे भो पधिक सम्मान उमरमें छो-क्यि-तोनचन लामान इन्हें धर्मशास्त्रादिको किया और न्यायपरमाके पुरस्कार खका वशानुक्रमसे शिक्षा दी। सात वर्ष की उमरमें ये बनव-न लामासे भोग करनेके लिये उ प्रदेश उनके पधिकारमें कर दिया। उपदेश धर्म में दोक्षित हुए। जब ये चौदह वर्ष के हुए. तसन् प्रदेश शाक्यों हाथ रहा। चोनसे लौट कर तब इन्होंने शाक्यसङ्गाराममें जा कर प्रधान लामा दगछेन फगमोदुने राज्यशासनको सुव्यवस्था पौर नियमादि रिनपोछके साथ पालाप किया और उन्हें एक टर उप. स्थिर कर दिये। प्राचीन राजनोति और पाईनका हारमें दिया। कुछ काल तक शाक्यमद्धाराममें रहनेक संस्कार किया गया। शाक्य-शासनकायों ने स्रोन- बाट एक दिन प्रधान लामाने खाते ममय इन्हें अपना तमन गम्पो और थि सोनके पाईनादिका त्याग कर प्रसाट खानेको बलाया। १७ वर्षको उमरमें उनको दिया था। इन्होंने उनका मस्कार कर पनःस'काम या शिक्षा और परीक्षा खतम हुई थी। जब इनको में लाया। इन्होंने नेदेन-समे नामका एक दुर्ग बनवाया उमर सिर्फ १८ वर्ष को थो, तघ चीन सम्राट मे इन्हें था, जहां स्त्रियों का प्रवेश निषेध था । विनय बास्त्रानुसार १० हजार सेनाओं के अधिनायकत्वको मनद मिलो धो। फगमोदु संयमका पाचरण करते थे और मद्य तथा इस सम्मान पर दि-गुन्, तपन, षह तसन और शाक्य रात्रिभोजन इनके लिये हराम था। ये गोनकर, बगकर प्रदेशके मर्दार लोग जल उठे। अन्समें दोनों पक्ष में खूब आदि १३ दुर्गाके तथा तसे-थन मारामक प्रतिष्ठाता घमसान युग चला। प्रथम युद्ध में तो फगमोदु परास्त थे शाक्य सरदार गण दुव लता पोर पक्षमताका तथा हुए. लेकिन हितोय युधमें उन्हींको जीत हुई। यह युद्ध चीन मुगलोय नियमका अवलम्बन करते थे, इस कारण फिर कई वर्षों तक चलता रहा। पन्तमें फग-मोदुई प्रजा उनमे बहत प्रप्रमब रहती थी। उनके साथ प्रजाका विजयो हुए। विपक्ष के मरदारगण पकड़े गये और प्रायः विवाद हुआ करता था। फगमोदुने यह वृत्तान्त कैद कर लिये गये। इसके बाद उन् पौर तसन प्रदेशके चोन-सम्राटको कह सुनाया। उन्हों ने उन्हें थम् और मरदार तथा लामाऑने मिल कर चौन सम्राट से निवे- तिब्बत के अन्यान्य प्रदेशोंको स्वराज्यभुक्त करनेका हुका दन किया, कि फगमोदु बड़े अत्याचारी हो गये हैं। दे दिया। कहते है, कि फगमोदुने समस्त तिब्बतका विशेषत: शाक्य-सरदारोंको उन्होंने कैद कर रखा है। एकाधिपत्य पा कर एक करोड़ धातु प्रतिमा स्थापित को

  • फगमो-दु की व शतालिका-

और अपना नाम 'किसुत' रखा। (१) फग-मो.दु ( तिसरि ) ___ फगमोदुके अधास्तन चतुर्थ पुरुष याक्वरिनछेम चोम- मम्राट थो गनाथम प्रिय मन्त्री थे। चोन सम्राट ने (२) जम व्यन गुभ छेनपो (८) रिछन-दोजेवन इन्हें पहले सम्बाट -पुरोके रक्षक पद पर, पीछे चीन (३) प्रग-प-रिनछेन (१) गलनग-वन साम्राज्यका राजख-वसूलके मर्वाध्यक्ष पद पर नियुक्त (8) सो-नम-ग्रग-पन (१०) नवन् कशि किया। किन्तु शाक्य रिनछन सम्माट को खन खगबो करनेके लिए चीनके प्रधान मन्बोके साथ पड्यन्त्रमें (१) शाक्यरिनछेन (११) मनवन प्रगपो शामिल हो गये। उन्होंने बहुत सी बैल गाड़ियों पर (६) प्रगप ग्यसत् यन (१२)नम्बर गानपो सशस्त्र सेनानीको मुला अपरसे साटनके कपड़ोंसे ढक (७) वन प्रग-न्युनने (१५) सोद नम्वम् फुग्य कर सम्पाटपुरीमें भेज दिया। सम्बाट को इस बातको