पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५३८

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जानलुम हो गया और प्रयन महायानमा मत बहुत देशम पाये। इनसेल मेख दोशित होकर नाम जल्द फैलने लगा । गजा थि-स्रोन-दे-तमान पाकुन्न हो विनयशास्त्र सीखने के लिये नोनयान मतावलम्बो पण्डित कर भारतवर्ष मे पगिडत कमलगोलको लाये । कमन्न प्रेतक निकट पहुंचे। इन्हो के शिव तादुत्व ( उत्तर गोलमे सर्कमें चीन पगिहत परास्त किये जाने पर उनका देशीय विनयवित्) कहकर प्रसिद्ध है। इसक बाद मत धोरे धो लुम होने लगा। कमलगोन तिम्धत पुनः राजा लादक समयमें काश्मोरके पण्डित शास्त्री शिक्षा प्रचार करने लगे। भान्तरक्षित और कमलगोल बुलाये गये। उनसे कई एक शास्त्र अनुवाद कराया गया। दोनों स्वतन्त्र माध्यमिक मतावलम्बो थे । इनके बाद और उन्हों ने जो आचार-विधि प्रचार को, वह 'पञ्छन डोम कई एक योगाचार्य पगिडत यहाँ आये थे. किन्तु वे ग्यण' नामसे मशहर है। पामदो देशोय पछनने स्वतन्त्र-माधामिक मतक विरुद्ध कुछ विशेष नहीं कह दूसरे प्रकारको पाचार विधि निवड को ओ 'लछेन डोम मके । राजा रल-पचनक राजत्वकालमें पण्डित जिन- ग्यण' नामसे मिस है । इस तरह विनयशास्त्र हो मित्रने पाकर भनेक धर्म ग्रन्योका देशोय भाषामें अनुः सिम्बतोय बोडधर्म के प्राचोर रूपमें और डोमम्य वा वाद किया था। पाचार विधि बोधर्म के पानुष्ठानिक पावरगा-रूपमें इसके बाद जब मन दर्म नामके राजा मिहामन प्रतिष्ठित हुई। पर बैठे, तब उनके यात्रमे कुछ समय के लिये बौवधर्म कालकामसे नाना परिहतोंके नाना व्याख्याबलसे तिम्बतसे जाता रहा। इस ममय तोन सन्यांसो पल सिब्बतोय बौद्धधर्म भारतवर्ष के १८ प्रकारके भा छन-छ, बोरिसे भाग कर आमदो देशमै गोन-प-रव-सल विक मतको नाई नाना साम्प्रदायिक मतों में विभक्त हो नामक सामाके शिष्य हए । इनके बाद और भी दश गया। इन लोमों में अनेक मत प्रवर्तयिताके नामसे, मनुथ लामाका शिष्यत्व ग्रहण कर मन्यासी हो गये। अनेक मतप्रचारके प्रथम स्थानके नामसे और भनेक मत लुम छल-थिम इनमें प्रधान थे। लनदम की मृत्य के प्रवत्त कके भारतीय गुरुके नामसे प्रसिद्ध हो गये तथा बाद वे लौट कर अपने अपने महाराममें पहुंचे पोर पुनः बहुतसे मत अपने अपने क्रिया विशेष नामसे भो अभि- बौखधर्म के मस्कारमें प्रवत्स हुए। उन्होंने यमीको हित हुए। संख्याको बढ़ानेके लिये उ और तसन् प्रदेशमें कार्य समस्त साम्प्रदायिक मत पुन: पुरातन पौर पारम्भ किया। इस तरह पुनः प्रामदो पदेशक लामा स्वत (गेलुगप) इन दो भागों में विभक्त हो . गोम परब सल चौर लुमे छुल थिम बारा तिब्बतमें बौद्धधर्म गये हैं। पुरातन सम्प्रदायमें निम-प, कादम्प, कहा प्रतिष्ठित हुपा । लह-लामाके ममयमें लोच वरिण हेन ग्यप, शि-च-प, जोन प और निप ये सात शाखाये है। मसपोभारसम शास्त्रादि सोखनेको पाये । उन्होंने सौट पुरातन मम्प्रदाय माधारणतः दो भागों में विभक्त है नि कर सूत्र और तम्बयास्त्रका अनुबाद किया। म.प और शमप । रस भेदको कथा नाकि सम्बयास्त्रमें लन दम राजाके पूर्ववर्ती कालको 'मदर' और लिखी गई है। जो सब अन्य पण्डित स्मृति के पहले परवर्ती कालको 'हि-दर' कहत। तिब्बतोय भाषामें पम दिन है, वही निसप और जो रिन् रिवहन मसपोने तान्त्रिक मतावलम्बोके अनेक छन सस पोसे पन दित है, वो शर्म कहलाते है। भाचार व्यवहारका भी मस्तार किया। धर्म को मन्त्रीमूल तम्बों के राजा थि सोनके राजस्व कालमें दुहाई देकर बहतोन पोल व्यवहार अवलम्बन पन दिन होने पर भी वे शर्मतन्यमे गिने जात।स किया था। ये प्रमझमाध्यमिक मतावलम्बी थे। सरह औरभो दो एक गोलमान रहने पर भो रिन्छन्- राजाहलामानि भारतवर्ष से धर्मपाल और उनके मापोही शर्म तन्य के प्रतिष्ठाता कहकर सर्वच खी. तोन शियों को बुलाया। पूर्व भारतसे धर्म पाल अपने बत हुए। लोचव रिन्छेन ससपोने प्रज्ञापारमिता, मात्र विष सिधिपाल, गुण पाल और प्रज्ञापालके साथ इस पौर पिता प्रचार विये। सर्वोपरि योगतम्या