पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५१३

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निय कालीन गवानका फल। मांकरी सममीको सनः उपवास करनेका विधान है। जन्माष्टमी देखो। बदरीपन पौर साल पर्कपत्र मस्तक पर धारण करके खान टोमा दिन निशोथ सम्बन्ध होने वा न होने पर करे । महानवमी, हादशी, भरणी नक्षत्रयुक्त दिन, पक्षय दूसरे दिन 'ग्रेजो सिमाबसे अमावस्या पादि तिथि वतीया पौर रथास्थ सामो अर्थात् माघ मासको सप्तमी गणनाके नियम ५१०के पृष्ठ में लिखे जाते है। इन दिनों में अध्ययन न करना चाहिये। प्रथम विधि-जिस सालवे जिस महोमेके नोचे जो ___मन्वन्तरा तिथि-पाखिनको एका नवमी, कार्तिक- संख्या दो गई है, वह संख्या उस महोनेको तिथिके लिए की हादयो, चैत्र और भाद्रको शलाहतोया, पोषकी पावश्यक होगी, उस मामकी तारीखको डा संख्याके एकादशी, फाला मको प्रमावस्या, पाषाढ़ की राका• साथ जोड़नसे जो सख्या होगी, वही तिथिको संख्या है। सामो, माधकी शमा सप्तमी, श्रावणको गधाष्टमी, प्रमाण-तालिका में १८७१ सन्के जून मासके स्तम्भको पाषाढको पूर्णिमा एव कार्तिक, फाल्गुन, चैव भोर १३ संख्याको उस मासको दो तारीखसे जोड़ने पर १५ ज्येष्ठको पूर्णिमाको मन्वन्तरा कहते हैं। इन तिथियों में होता है. ३२ तारोखको पूर्णिमा है। यदि ..हो, तो दामादि करनसे महाफलको प्रालि होती है। उसे छोड़ देना पड़ेगा। पष्टमी-गलपक्षको अष्टमो नवमोयुक्त भोर कण अमावस्याके दिननिरूपणकी विधि-अपरको पशु- पक्षकी पष्टमी सप्तमीयुक्त होने पर ही ग्राह्य है। कण क्रमणिकामें सन्के पूर्व भागमें जो संख्या है, उसका पक्षको अष्टमी पौर चतुर्दशी उपवासविधिके अनुसार ३० से वियोग करनेसे जो संख्या बचेगी, उसने सख्यक पूर्व तिथियुक्त हो ग्राह्य है। परन्तु शतपक्षके लिए दिन अमावस्या है। यथा- परयुक्त ग्रहणीय है। १८७१ सन्के जून मासके स्तम्भको १३ सख्याके जपर शनि और मङ्गलवारको यदि सपक्षीय अष्टमी ३० रख कर यदि बाकी निकाली जाय, तो १७ बाको पौर चतुर्दशी पड़े, तो वह अत्यन्त पुण्यजनक तिथि बचते हैं। इस तरह जून मासके १७वें दिन प्रमावसया होती है। वृहस्पतिवारको प्रष्टमो, मोमवारको षमा- हुई। वस्या, रविवारको सल्लमो और मङ्गलवारको चतुर्थी तिथियोंके अधिपति-पक पौर मणपक्षको प्रतिपदा इनमें जो लोग धर्म वा पाप कर्म करते हैं, वह ६. हजार तिथिके अधिपति अग्निदेव, द्वितीयाके प्रजापति, वतीया. वर्ष तक पक्षय रहता है। की गौरो, चतुर्थी के गणेश, पञ्चमोके पहि, षष्ठोके कार्तिक, ___ जन्माष्टमी-भाद्रमासको क्षणाष्टमीके दिन सावर्णि मनमोके रवि, अष्टमोके शिव, नवमीको दुर्गा, दशमौके मन्वन्तरीय प्रथम युगमें देवकीके गर्भ से श्रोतणने अन्न- यम, एकादशोक विश्व, हादशोके हरि, त्रयोदशोके काम, ग्रहण किया था। श्रावणमें हो चाहे भाद्रमें, रोहिणीयुक्त चतुर्दशोके हर, पूर्णिमा और अमावास्याके पधिपति क्षणाष्टमीको जयन्ती कहते हैं, जयन्ती-अष्टमीका ही चन्द्र है। अपर नाम जन्माष्टमी है। विवेचनापूर्वक देखा मामदग्धा तिथि-वैशाख मामको शक्लाषष्ठी, पाषाढ़ जाय तो इस जगह एक सन्देह हो सकता है, कि मासको सलाष्टमी, भाद्रमासको शुक्लादशमो, कार्तिकको एक बार श्रावण मासमें और एक बार भाद्र मासमें एक्काहादशो, पौषको शक्लाहितीया पोर फाला न मासको जन्माष्टमी कही गई, इसका तात्पर्य क्या ? तात्पर्य ___शलाचतुर्थी मासदग्धा होती है। श्रावण की सणाषष्ठी, यह है कि श्रावणके मुख्य चन्द्रमें और भाद्रके गौणचन्द्र- पाखिनको मष्णाष्टमो, अग्रहायणको कणादशमे, माघ में लणजन्माष्टमी होती है। इसी कारण श्रावण और कोलणाहादशी, चैत्रको सणारितोया और पठको भाद्र ये दोनों पद प्रयुक्त हुए हैं। किन्तु व्रतके लिए भाद्र जणाचतुर्थी मासदग्धा होती है। मासका ओख करना पड़ेगा। भाइमासको क्षणपक्षोय उहामासदग्धा तिथियों में जो थक्ति जमा लेता वा यात्रा रोहिदीयुत पष्टमीमें अथाष्टमो व्रत और उसी दिन करता है, वह व्यक्ति इन्द्रतय होने पर भी कालका Vol. IX 128 .