विश्वकोष नवम भाग) ट- संस्थत और हिन्दी व्यञ्जनवर्णमानाका ग्यारहवां पौरस मन्त्रको ध्यानपूर्वक दमबार जपनेसे अभीष्टसिद्धि र-वर्गका पहला अक्षर। दमका उच्चारण स्थान मूर्खा है। होती है। उच्चारणमें प्राभ्यन्तरप्रयत्न मूर्चस्थानकै हारा जिद्धाका काव्य के प्रारम्भमें इसका विन्यास करनेसे वेद मध्यभाग म्पर्श और वायप्रयत्न विगम, खाम और अघोष होता है। है। माटकान्यासमें दाणस्फितिमें (दक्षिण नितम्बमें ) ट ( म० की.) टस-उ । १ कर, नारियलका खोपड़ा। इमका न्यास किया जाता है। इसका पाकार इस प्रकार (पु०) २ वामन । ३ पाद, चतुर्थी , चौधाई भाग। है-"ट"। इम पक्षरमें कुवेर, यम और वायुका नित्य- नि:स्खम, शब्द। वाम है। , टंकना ( क्रि०) १ कोल पादि जड़ कर जोड़ा सम्बके मनसे इसके पर्याय वा वाचक शब्द २७ हैं- जाना। २ सोया जाना, सिलाईसे जुड़ना। सो कर टकार, कपालो, सोमेश, खेचरो, अनि, मुकुन्द, विनदा, घटकाया जाना। ४ रतोका तेज होना। ५ अहित होगा, पृथ्वो, वैष्णवो, वाणी, दक्षाङ्गक, पर्षचन्द्र, जरा, भूति, लिखा जामा.टलं किया जाना। सिल. चकीपादि एनभव, वृस्पति, धनुः, चित्रा, प्रमोदा, विमला. कटि, रेशाना, कुटना। गजा, गिरि, महाधनः, प्राणात्मा. सुमुख और मरुत्। टका (हि.पु.) १ पुराने समयकी एक तोल जो एका कामधेनुतन्त्रक मतसे टकारका स्वरूप--यह स्वयं परम सोलेके समान मानो जातो थो। २ मविका एक पुराना कुण्डली, कोटिविद्यु सताकार, पञ्चदेवमय, पञ्चप्राणयुक्त, मिका, टका। ३ एक प्रकारका गना। विगुणोपेत, त्रिशक्रिसमन्वित और विविन्दयुक्त है। टंकाई ( पु.) १ टॉकनेको जिया। २ टॉकनेको इसका ध्यान करनेसे पभोष्टको मिचि होतो है। मजदूरी। ध्यान-"मालती पुष्पवर्णाभा पूर्णचन्द्र निर्माणाम् । टैंकामा (हिं.वि.) १ टॉकोंसे मिलवाना। २मिमा दशबाहुममायुक्तां सवालंकारस्युताम् ॥ कर लगवाना। ३ खुरदरा कराना, कुटाना। ४।। परमोक्षप्रदां नित्यां सदास्मेरमुखी पराम् । कर लगवाना। एवं च्याला ब्रह्मरूपां तन्मत्रंबाबत् ॥" टंकाना (हिं शि.) सिजीको जांच कराना। (वर्णोद्धारतन्त्र) टंकारना ( लि. ) पतत्रिका तान कर पनि प्रसव Vol: ix.1.
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