पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४९३

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ताललसब-वालिक ताललक्षण (म. पु.) तालो लक्षण ध्वजो यस बहुमो०। जनिवाला वर्ष । हिजाम, य पोरन तालध्वज, बलराम। ये वर्ण ताल से उच्चारण किये जाते है। ताललक्ष्मन् (स'. पु.) साल एव ला चि यस्य । सालयस्य (को०) तालाखिमब्जा, साड़के फलक बलराम। भीतरका गूदा। तालवन (सं० ली.) १ वृन्दावनमें स्थित ताड़ बहुल एक तालसत्व (म लो० ) हरिसालभस्म, हरतालको भस्म । बन । यह तालवन बारह वनों में से एक है। यह मधुवन तालमांस (हि. पु. ) ताड़के फल के भीतरवा मूदा । या के पास पवस्थित है। बलगमने यहां धेनुकका बध खानके काममें पाता है। किया था। धेनुकबधसे पहले यह वम जोवजन्तुओंके तालस्वान्ध (स'• पु०) एक अस्त्र । इसका विवरण वाल्मीकि लिए अगम्य था, उसके बादमे यह पुण्यतीर्थ समझा रामायणमें पाया है। जाने लगा। (वृन्दावनलीलामृत, भकमाल ) साला ( पु०) कपाट अवरुद्ध करनेका यन्त्र, जन्दरा, यह सालवन गोवईन पर्व तसे उत्तरको पोर यमुना कुल्फ । के किनारे पर अवस्थित है। यहांको भूमि म्मतम्ल. ताला कुंजो ( हि स्त्रो.) १ किवाड़, संदूक मादि बंद स्निग्ध, प्रशस्त और कुशसमाकोण तथा ताड़के वृक्षोंमे करनेका यन्त्र । २ लड़कोका एक खेल । भरो हुई है। इस वनमें मनोका जाना नहीं होता, तानाख्या (म० स्त्रो०) साल तत्पवमिव पाख्यायी पाख्या- यह अत्यन्त दुष्प्रवेश्य है। इस वनको मिट्टो कालो है, क वा तालं पाख्या यस्याः । मुग नामक गन्धद्रव्य, कपूर । उमसे कंकड़ पत्थरोंका मम्बन्ध हो नहीं है। इम वनमें कचूगे। नरमामलोलुप गर्द भरूपधारो पति दुर्द मनोय प्रभूत बल तालाइ (सपु०) तालस्तालचिक्रितः पावजो यस्य, शालो धनुक नामका एक दैत्य रहता था। एक दिन बहुव्रो०।१ बलदेव । २ करपत्र । ३ शाकभेद, पत्र कृष्ण और बलदेव कालियदमन करके इस वन में पहुंचे। प्रकारका साग । ४महालक्षणसम्पन पुरुष, शुभ लक्षणवान् धमुक दैत्यन इन पर पाक्रमण किया, इस पर बलदेवने मनुषा। ५ पुस्तक । ६ हर, महादेव । उसके पर पकड कर घुमाना शुरू किया. और अकम तालार (स.ली.)१मालास्थि शस्य, तालुके फल- एक ताड़के वृक्ष पर फेक दिया ; जिमसे उसको मृत्य, के भीतरका गूदा । २ मनःशिला, मनसिल । हो गई। धेनुकक प्रात्मोयवर्ग के साथ निहत होने पर तालादि (सं० पु.) पापिन्य त गग्यविशेष, पाणिनिके तालवन निरुपद्रव हुआ और तभोसे यह तोर्थ में परिणत एक गणका नाम । हो गया । ( हरिवश ६. अ० ) तालाब (हि.पु. ) जलाशय, सरोवर, पोखरा। २ तालकान, वह जङ्गल जिसमें अधिकतर ताडके हो तालावचर (म० पु०) तालेन प्रवचरति नृत्यति पवचर- पेड़ हों। पच. । नट। तालवाहो ( स. त्रि. ) वह बाजा जिससे ताल दिया तालि (स' स्रो०) तालयति प्रतिष्ठत्यनया तल-णिच-नन्। जाता है। सर्वधातुभ्यो इन् । उण् ।११। भूम्यामलको, भुई तालबन्त (स' क्लो० ) ताले करतले हन्त बन्धनमस्य भावला । २ अषणावरोध । ३ प्राघात, चोट। . तालस्य व समस्य वा, बहुव्रो०। १ व्यजन, ताड़के तालिक (सं० पु० ) तलेन करतलेन नितः समय। पत्ते का पंखा।२ एक प्रकारका सोम । तेन नित। पा ५११४९।१ प्रमारितालिपाणि लो तालवेचनक ( स० पु. ) तालस्य वेचन' पृथक करण हुई इथली । इसके पर्याय--चपेट, प्रतल, तम्ल, प्रहस्त संस्थामन नियमन यत्र कप । नट । पोर साल । २ तालपत्र या कामजका पुलिंदा। चपत, तालव्य (मवि०) सालोजर्जात तालु-यत् (शरीगवयव- तमाचा । ४ नत्थी या तागा जिससे भित्र भित्र विषयों के स्वात् यत् । पा ५१॥) तालुजात, तालुसे सच्चारण किया तालपन या कागज बनीं। Vol. IX. 123