पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४९१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तालपूर-तालबहत तलवार पोर कटिबन्धका कुछ अंश स्वर्ण खचित होता, निर्दोष बतलाने पर भी जब तक वह पनि वा जसपरीक्षा था। द्वारा साक्षात् प्रमाण न देता था तब तक वह उसको ___राजकार्य के लिये ये लोग अधीन बलोच सामन्तों को । मुक्ति नहीं होती थो। अभियुक्त व्यक्ति जल के नीचे रक्खा जागोर देते थे। शरीर-रक्षकके सिवा इनके पास दूसरो। जाता था। एक मनुषा धनुष में तोर लगा कर अपनो सेना हर वक्त मौजद नहीं रहतो थो। युद्ध के समय प्रत्येक कूबत भर उसे फेकना था। दूमरा प्रादमो उस तोरको पदातिक मैनिकको.हर रोजाना और अश्वारोही लाने के लिए भेजा जाता था । जब तक वर लोट कर वहां को पाना तनखाह मिलती थो। यद्यपि तालपुरो न पा जाता था, तब तक यदि अभियुक्त व्यक्ति जलके मोरोंके सञ्चित सेना नहीं थी, तो भो युद्धके ममय वे नोदे रह जाता, तो निर्दोष ममझा जाता था। यदि बातको बातमें प्रायः ५०००० सेना जुटा लेते थे। वह तोर लाने के पहले हो जल में मे अपना मिर उठा लेता कर मंग्रहका नियम जमींदागै मरोखा था। राज- तो वह दोषी ठहराया जाता था। अग्निपरोक्षा इससे भो कर विशेषतः फमलसे चुकाया जाता था, जो बटाई कठिन थो। ७ हाथ लम्बा एक गट्टा बना कर उसे लकड़ो- कहती थी। कहीं कहीं जमोनके . अथवा अशा से भर देते थे। पोछ उममें भाग लगा कर पभियुक्त का मून्य स्थानीय प्रथं गजकरबरूप मिर्दिष्ट था। व्यक्ति को केले के पत्तं से हाथ पैर बांध उसो गड़े में छोड इम करको वे मरशूल करते थे। खेतमें जल सोंचन देता था। बाद उमे एक कोरमे लेकर टूमरे छोर तक के लिये एक प्रकारका कर लगता था। इमके सिवा जाना पड़ता था । इममें यदि वह बच जाता तो सभी गृहस्थी पर जिजिया कर भी प्रचलित था । परतो जमोन उसे निर्दोष ममझते थे । इन जन्न भोर पग्नि परोक्षाका का थोड़े करमें बन्दोवस्त कर दिया जाता था। खजूरकं नाम चर प्रोग् टुबो था। कैरिया के लिये उपयुक्त जल नहीं पेड़ पर भी एक प्रकारका कर था। इनके अधीन कितने था। दिनके ममय पहरू लोग उन्हें भोरख मांगने के जमींदार भो थे जिनकी मोरों के यहां खा खातिर होती लिये शहरमें घुमाते थे। राजमरकारसे उन्ह भोजन यो। जमींदार लोग मालकानों, जमोंदारी और राज नहीं मिलता था । रातको उन्हें शृङ्गालावर प्रवस्था में खर्च ये तीन प्रकारके लापो उपज के अनुमार वसूल करते अथवा हथकड़ी पहना कर रखते थे। दोवानो विचार थे । आमदनी और ग्फ तनोके अपर भो कर निर्दिष्ट फौजदाग विचारकोंके हो हाथ था। उस समय दोवानी था। बाजारमें जितनो वस्तु बेची जाती थौं, उनका मामलेमें बहुत रुपये खर्च होते थे, इसो कारण दीवानो तराजू कर देना पड़ता था। विना लाइसेन्सके कोई मुकदमेको संख्या प्रायः नहीं के बराबर थो। मादक द्रव्य तैयार नहीं कर सकता था। धोबी, तातो इतिहासमें तालपूरोंको मुद्राका कलदार नामसे और दूकानदागेको थोड़ा थोड़ा कर लगता था । मोर उल्लेख है। लोग अपने कर्मचारियोंको यथेष्ट इनाम और जागोर सालप्रलम्ब ( स० की.) सालवृक्षे प्रलम्बते प्र-लम्ब-पच । देते थे। ताड़को जटा । तालपूगेके शासनकालमें करदार, कोतवाल भोर तालबन्द (हि. पु० ) वह हिमाच जिममें .प्रामदनीको पन्यान्य कर्मचारिगण फौजदारो विचार करते थे। कभी हर एक मद दिखलाई गई हो। कभो मोरगण स्वय इसका फैसला कर देते थे। भिव तालबहतः युक्त प्रदेशके ललितपुर जिले के अन्तर्गत एक भिव अपराधों में इस्तपदच्छ दन, वेत्राघात, बन्धन और प्राचोन नगर । यह प्रक्षा० २५.३ उ० और देशा० ७८ अर्थदण्ड पादिको सजा थी। मृत्य दगड प्राय: देखने २६ पू०में ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला रेलवे और कान- में न पाता था। त्याकारी उसो हालतमें सब दण्डों- पुर-सागरके पथ पर अवस्थित है। लोकमया प्रायः से छुटकारा पाता था, जब वह मृतव्यक्तिके अट,म्बोको ५६८३ है। यहां एक बहुत बड़ा हुद या ताल है, धन देकर सन्तुष्ट कर देता था। अभियुक्त व्यक्ति अपनेको उसीके नामसे इस नगरका नामकरण हुपा है। एक