पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४६८

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४६४ तारदिकर-तारा ताशुद्धिकर (म. को० ) तारस्य रजतः पूर्षि करोति नाम-पा, पुथा, धनिष्ठा, शतिभिषा, श्रवणा, जाट । मोमक. मोमा। इसमे चाटो का मन माफ किया रोहिणो, उत्तरफाल्गुनो, उत्तराषाढ़ा पोर उत्तरभाद्रपद जामा है। इनका नाम है जध्वमुख ; तथा मुला, अश्लेषा, कृत्तिका, तारमार (म.प्र.) उपनवों द. एक उपनिषदका विगाखा, भरणो, मघा, पूर्व फालगुना, पूर्वाषाढ़ा पोर पूर्व नाम । भाद्रपद इनका नाम अधमुव : एवं अश्विनी, रेवतो, नारहार (म० ए० ता निर्माता हार: मध्य लो० का धा। हम्ता, चित्रा, स्वाति, पुर्वसु, ज्येष्ठा. मृगशिरा पोर म्य ल मना । अनुराधा इन नक्षत्रांका नाम तिय मुव तारा है। नाग ( म० म्त्र' ) नारगति मारार्ण पात् भक्तान् ट जाति -अखिनो और गतभिषा नक्षत्र अवजानीय गिच अन् टाप । १ बोहाको एक देव । २ वानरज हैं. रेवतो और भरणी छम्तो, कतिका अजा, रोहिणो वागेको पत्तो पार मुद । वामरको कन्या। रम चन्द्रन र मृगगिरा मर्पः भाद्री, हम्ता और स्वाति व्याघ्रः मगतान मेट कर वालो का वध किया था। पानी के मारे पनव स मेष; पुष्या, अश्लेषा और मघा इन्दुर, पूर्व- जाने के उपरान्त श्रीरामचन्द्र प्रादेशमे तारानि मुग्रोचको फाल्गुनो और चित्रा महिषः विशाग्वा और अनुराधा अपमा पति बमा निया। उनके पुत्र का नाम अनन्द था। हरिणः ज्येष्ठा कक्कर; मूला और श्रवणा वानरः पूर्वा (मायण) प्रातःकाल उठ कर इनका नाम स्मरण कर्नसे . षाढ़ा नकुल जातोय तथा धनिष्ठा, पूर्व भाद्रपद और उत्तर वह दिन मङ्गलमय होता है। भाद्रपद मिह जातोय हैं। 'अहला दौपदी कुती तारा मन्दोदरी जथा। __मृगगिरा, हम्ता, म्वति यवणा, पुण्या, रेवतो, अनु- पाकन्या स्मरेन्नित्यं महापात नागनं ॥" राधा अखिना ओर पुनव सु नक्षत्रमें जन्मग्रहण करने पर किन्तु प्रात:काम्नमें इनके नाम म्मरण का नियम रघु. देवगण होता है, उत्तराफाला नी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्र- नन्दन प्राधिकतत्त्वमें नहीं है। पद, पूर्व फाल्गुनो, पूर्वषाढ़ा, पूर्व भाद्रपद, रोरिणो ३ अश्विनी पादि नक्षत्र । जैसे---अश्विनी, भरणो, भरणो और आम नरगण तया ज्येष्ठा, मूला, अनेषा, कत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, पा, पुनव म, पुण्या, त्तिका, शतभिषा, चित्रा, मघा, धनिष्ठा और विशा. अश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुनो, उत्तरफाला नो. हस्ता. ____ खामें जन्म लेनमे गक्षमगण होता है। चित्रा. स्वाति, विशा अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, Tal- किसो शुभकार्य के करने के पहले उमक लिए चन्द्र पाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्र और ताराशक्षिका देखना जरूरी है। विशेषतः शतपस में पद, उत्तरभाद्रपद और ग्वतो, ये २७ प्रध न तारा हैं। चन्द्र शुद्धि और कणयक्षमें ताराशुदिन देख कर कार्य करनेसे नाना प्रकारक अमङ्गल होते हैं। अधिपति-अखिनोके अधिपति अश्विनी । भरोके यम. ताराशुद्धि । यथा-जन्म, मम्पत्. विपत्, क्षेम, प्रत्यरि, कत्तिकाके दहन, रोहिगोके कमलज, मृगशिराक शशि, साधक, वध, मित्र और प्रतिमित्र ये ८ तारा है। इनमें पार्दीक शूनभृत् पुनव सके अदिति, पुथाके जोव. प्रश्ने जन्म, 'वत्, प्रत्यार और वध वन नीय है, इनके सिवा पाक फणि, मघाके पिटगण, पूर्व फाल्गुमोको योनि, उत्तर- अन्य समस्त तारे शुभकर होते हैं। फाल्गुनोको प्रय मा, हस्ताके दिनछत्, चित्राकं त्वष्टा, जम्मनाराम विवाद, थाड, भैषज्य, यात्रा और क्षौर खातिक पवन, विशाखाको अग्नि, अनुराधाक मित्र, कम निषिद्ध हैं। जष्ठाकं शक्र, मूला निमंति, पूर्वाषाढ़ाका तोग, उत्तरा- . निषिद्ध तारमें यात्रा करनेसे बन्धन, अषिकार्य में शस्य. षाढ़ाके विश्वविरिञ्चि, श्रवणाके हरि, धनिष्ठाके वसु, नाश, औषध सेवनमें माण, गृहारम्भमें एदार, चोर- शतभिषा वरुण. पर्व भाद्रपद के अजेकपाट. उत्तरभाष्ट्र कार्य में रोगोत्पनि, थाइम अर्यनाश, विवादमें बुद्धिनष्ट पदके पहिवन और रेवतीका अधिपति पुष्पानक्षत्र है। पौर यहमें भय होता है।