पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/४६१

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तारकतारकाध ४५७ सिहिका एक भेद । विधिपूर्वक गुरुमुखमे वेदाध्ययन कर तारकना (म. क्लो. ) तारक संसारसागरपारकारक उससे जो मिति लाभ हो, उसका नाम सारमिति है। ब्रह्म कम धा। राम षडक्षरमन्त्र, रामतारक मन्च यह गौणसिधि है । ( तत्त्वकौमु० ) ११ विष्णु । १२ उच्च ॐ रामाय नमः' । पञ्चक्राशी कायोमें मृत्यु होनेसे मना. शब्द, जोरको आबाज । (नि.) १३ उच्चशष्दयुक्त । १४ देव स्वय इन मन्चको मनथ के कनमें पढ़ते हैं तथा वर स्क रितकिरण, जिसमें किरण फटो हो । १५ निर्मल, मृत मनुथ षडक्षरमन्त्र प्रभावसे मोक्ष पाता है। स्वच्छ । (को०) १६ तोर, किनारा। १० उच्च स्वर । १८ तर मन्त्र म मन्त्रास श्रेष्ठ है, इस मन्सहारा नेत्र-कनीनिका, अाँखको पुतलो। १८ प्रणव (प्रो. धों. जो भक्तिपूर्वक उपासना करते हैं, निश्चय हो उनको हौं)। (तन्त्र ) मुक्ति होतो है। इस मन्त्र के प्रभावसे सब दुःख जाते रहते २. पठारह अक्षरांका एक वर्ण वृत्त । २१ है तथा यह मन्त्र पापियों के लिये भी मोक्षप्रद है। धातुओंका सूत, तपो धातुको पोट और खींच कर बनाया प्रतिदिन यह मन्त्र जप करने से समस्त पाप विष्ट हुमा तागा । २२ धातुका वह तार या डोरी जिसके हारा होते हैं। बिजलोको सहायतामे एक स्थानमे दूसरे स्थान पर समा- तारकमानो (हि' स्त्रो ) धनुषके प्राकारका एक चार भेजा जाता है। ताडित-वार्तावह देखो। २३ वह प्रकारका यन्त्र । इममें डोरोको जगह लोहेका तार लगा जो तारसे प्रातो है। खघर । २४ तन्तु:सूत्र, मूत, तागा। रहता है। यह नगोने काटने के काममें पाती है। २५ सुतड़ो। २६ प्रखण्ड परम्परा, मिलमिला। २७ तारकग (हिं० पु.) वह जो धातु का तार खोंचता हो। व्योत, व्यवस्था, सुबोता । २८ कार्य मिक्षिका योग, युक्ति, तारकयो (हिं स्त्रो० ) तार खोंचनेका काम । उपाय, ढव । २८ कपूर, कपूर।। तारका (म० स्त्री० ) १ नमन, तारा,। २ कनोनिका, तारक (म क्लो) तारेण कनोनिकया कायति क-का आँखको पतलो । २ इन्द्रवारुणो लता। ४ नाराच मामक १ चक्षु, अखि । (पु० स्वार्थे कन् । २ नक्षत्र, तारा। छन्दका नाम । ५ जालिको स्त्रो। ६ मुता, मोतो। (मो.) ३ चक्ष की कनीनिका ऑखको पुतलौ । तार- ७ देवताड़ वृक्ष, रामबॉस । यति दैत्यान् त -गिच गवल । ४ द्वादश मन्वन्तरीय तारकाक्ष (म. पु. ) असुरविशेष, एक असुरका नाम । इन्ट्रशन असुरविशेष, बारहवें मन्वन्सरके इन्द्र के शत्र. यह तारकासुर का बड़ा लड़का था। यह देवतापोंसे एक असुरका नाम । इमने जब इन्द्रको बहुत सताया यहमें पराजित हो कर कमलाक्ष पोर विद्यमालो तब नारायणने नपुसकरूप धारण करके इसका नाश नामक अपने दो छोटे भाइयांक साथ अत्यन्त घोर तपस्या किया। ( म्हपु• ८७५१ ) ५ अपर असुरभेद, तारका करने लगा। इसकी तपस्यामे संतष्ट हो कर जब सुर । ६ कर्ण, कान। ७ भेलक, भिलावॉ। ८ इन्दो ब्रह्माजो वर देनेको उद्यत हुए, तब इसने प्रार्थं ना को, भेद, एक वर्ष वृत्त जिसके प्रत्येक चरणमें १८ अक्षर "परमेश ! सभोसे पूज्य हो कर पुरत्रयमें वास करें, मिर्फ यही वर हम चाहते हैं।" बाद ब्रह्माके वरसे तारकजित् ( स० पु.) तारक तारकासुर' जयति जि. इन्होंने तीन पुर पाये । वर देते ममय ब्रह्माने कर दिया था, विप तुगागमन । काति केय, इन्होंने तारकासुरका नाश कि ये लोग तीनों पुर पर भारोहण कर कुमार्गमे त्रिभुव- कर इन्द्रको स्वर्ग के सिंहासन पर स्थापित किया था। नका पर्यटन करते हुए एक हजार वर्ष के अन्त में केवल तारक और कार्तिकेय देखो। तारकटोड़ी-गगविशेष, एक रागका नाम । इसमें ऋषभ एक बार आपसमें मिलेंगे। उस समय यदि कोई एक वाणमे उस पुरत्यको भेद कर सके, सो इन लोगोंको मृत्यु और कोमल स्वर नगते हैं और पञ्चम वर्जित होता है। तारकतोय सलो०) तार तोर्थ कर्मधाम सोय होगी। उम पुरत्रयका निर्माता मयदानव था। उनमें से एक भेद, गया तोथ। यहां पिण्डदान करनेसे पुरखे तर । सोने का, दूसरा चाँदोका और तीसरा लोहेका बना था। जाते। व पुरवय यथाक्रामसे खर्लोक, पनरोक्ष लोक पोर मयं - Vol. I. 115