पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३८५

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भारिख 14. यो स्पन्दित होता रहता है। यही स्पन्दन चारों भोर ताड़ितको वहन कर दौड़ते है और पदार्थ विशेष में भावाशमें उमि उत्पन्न करके पाकाश हारा दस गुने प्रतिस्त होने पर विचित्र पालोक उत्पन होता है। विपुल वेगमे प्रवाहित होता है । अपरिचालक भेद कर गेण्टगेनने दिखाया है, कि क क्स मलके भोतरसे एक धक्के पर धक्के और उर्मि पर उमि सन्चारित करता है प्रकारको रश्मि निकलती है, जो पालोकरश्मि वा ताड़ित. परिचालक भेद नहीं सकता, क्योंकि परिचालक धक्का देन रश्मिमे सम्पूर्ण भिव प्रक्षतिकी है। यह रश्मि बिना वाधाके में पक्षम है, धक्का पात ही सरल आकाश हट कर लुढ़क काठ तथा काले कागज आदि अस्वच्छ पदार्थोको भेद कर जाता है। धका उसके ऊपर लग कर लोटता और जा सकती है। धातुओं में भालुमिनियमको महजमें भेद प्रतिफलित होता है। यदि जरामा घुस जाव, तो कुछ सकतो है, मोसेको नहीं भेद मकतो। काँचके भोतरसे दूर जाते जाते हो तरल पदार्थ के घर्षणमे तापरूपमें भी महजमें नहीं जा मकतो । नलके बाहर अदृश्य रश्मियों परिणत हो जाता है। ताडितका प्रवाह चारों ओरक मरलरेखाकै क्रममे चलतो हैं। बाहरमें फोटोग्राफिके पाकाशमें छुद्र छुद्र घूर्णी वा पावर्त उत्पन्न करता है, लिए बना हुमा कागज वा काँच थामनेसे हमारे चिरप. वह प्रदेश चौम्बक प्रदेशमें परिणत होता है। उस प्रदे रिचित पालोककी तरह दाग पड़ता है। विशेष विशेष घमें लोहा रखनेसे, उसके अणुओंको घेर कर प्राकाशका पदार्थ पर पड़नसे उमको उहोप्त और उज्वल करती है। भावतं घूमता रहता है। अणु भी शायद निर्दिष्ट गस्त में यदि जस्ते या काँचको भाँतिको कोई चीज थामो दिशाम पक्षरेखा पर घूमने लगते हैं । मिर्फ लोहा हो नहीं, जाय, तो उमको छाया पड़ती है। मनुथ-शरीरका अन्यान्य जड़-पदार्थ के पापोंमें भी यह प्रावतॊत्पादन प्रस्थिकलाल इस रश्मि के लिए अस्वच्छ है, पर मांसपेशो और घूर्णन भारम्भ होता है । फाराने दिखाया है, कि आदि प्रशस्वच्छ है इसलिए रश्मिक मार्ग में मनुष्य के पदार्थ मात्र ही थोड़ा बहुत चुम्बकत्व पा सकता है। खड़े होने पर उनके कङ्काल भागको छाया पड़ती है साडितको तरङ्ग बड़ो बड़ी हो तो वे साधारण अपरि- और फोटोग्राफि वा. पालोकजनन द्वारा उस कालको चालक पदार्थको भेद करचलो जाती है, साधारण परि- छाया स्पष्ट देखने में पातो है। डोके भीतर किसी चालकके ऊपरसे प्रतिफलित होतो और लौट पाती है। स्थानक टूट जाने पर, कहीं कुछ व्याधि होने वा जस्तको सो लिए अब तक उनका अस्तित्व माल म नहीं हो गोलो घुमने पर, इस नवोन फोटोग्राफसे वा सहजमें मका था । छोटी छोटी तरङ्ग परिचालक धातुपदार्थ के पकड़ा जा सकता है। जपर पड़ कर कुछ प्रतिफलित होती, और कुछ भोतर क्रक्स -नलके सिवा अन्य उपायसे भो इस रश्मिक पस कर उत्साप उत्पब करती हैं। इसो लिए त्वगिन्द्रिय, उत्पादनको चेष्टा कुछ सफल हुई है। इस रश्मिके तापमानयन्त्र पादिक हारा उसका अनुभव होता है। प्राविष्कारसे पृथिवीको वैज्ञानिक मण्डलो चकित हो उन्हीमेंसे छोटो छोटो कुछ सरङ्ग चक्षुके नायविक यन्त्रमें गई थी। प्रति मलाह वा पतिदिन इसके विषय में नवीन गृहीत हो कर दृष्टिविधान करती है। परिचालकके । सथ्य मिकन रहे हैं। वास्तवमें रोण्टगेनने एक नये भीतरसे ताडितको वा पालाकको तरङ्ग महौं जा जगत्का आविष्कार किया है। ताड़ित रहिसके साथ सकती। धातुपदार्थ मात्र इसी लिए पालाक के लिए इसका निर्णीत होने पर शायद पदार्थ विज्ञानमें युगान्तर खच्चताहीन है। उपस्थित होगा। रोण्टगेन द्वारा आविष्कृत रश्मि ।-१८८६ ई.के उपसंहार ।-डेढ़ सो वर्ष से पहले साड़ित कौतुक. प्रारम्भमें पस्त्रिय अध्यापक रोण्टगेन ( Routgen) ने को सामग्री थो। किन्तु पाज मनुष्यको सभ्यता इसी एक नये रुखका पाविष्कार किया है। अपर जिस पर प्रतिष्ठित है। १८८६ में रोण्टीनको रश्मिका कानसकों बात कही गई है, उसका अभ्यन्तर भाग आविष्कार दुपा है। १८८८ में विज्ञानको क्या प्रायः बाबुराबता , वायवीय पदार्थ के कुछ पह- अवस्था होगी, वर कल्पनाके भी भगोचर है। Vol. 14.96