पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३४४

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करना चाहते हैं । म जाँचसे जैसा उत्पार्ष वा अपकर्ष । मुपिंदाबाद और उसके निकटवर्ती बहरमपुर तथा होता है, तमाम ढेरो वैसी हो समझी जाती है। पोछे मालदह पादि स्थानोंमें भी कुछ कुछ तसर पंदा होता एक एक ढेरोको कोमत ठहराई जाती है। करना है। परन्तु इन स्थानों में ससरको अपेक्षा रेशमको अधिक फिजम है, कि इस तरह तसरके छोटे बड़े भादि पाकार, उपज है। पचुम्मता, पुष्टता पादि गुणाकं पनुसार कीमत कमी कोअसे सूत निकालने के लिए पहले उनको चारके वेशी हुआ करती है। बहधा ये परण्यवामी समरविक्रेता पानामें उबाला जाता है। इमसे कोश कोमल हो जाते धूर्त दलाल और पंकारियों के चंगुल में फस कर धोखा और सहज में सूत निकलता है तथा सूतका मैल भो खान हैं। कुछ कुछ निकल जानसे मत साफ हो जाता है। जन- संख्या के अनुमार हो रनका मूल्य निर्घारित होता तर समस्त कोशों के शोतल और परिष्कत होने पर उन्ह है। तौल कर बेचनको रिवाज नहीं है। पैकारो वा पुन: पुन: पी कर उनके डंठल और जपरका अपरिष्कृत टलान्न लोग फुटकर स्वरोदते समय गण्डं आदि के भावसे अंश फेक दिया जाता है। पोछे एक पात्र में थोड़ा पानी खरोदा करते हैं। बड़ो बड़ो हाटॉम जब बहमख्यक रख कर उसमें ४ ५ वा उससे ज्यादे कोश छाड़ देते हैं, कोशोंको खरीदबिक्री होतो है, तब गिनना मुश्किन्न हो घोर उनके छरों को एकत्र कर एक साथ सबका मत जाता है। इस समय कूत वा अनुमानमे एक एक ढेरोको चरखो पर लपेट लेते हैं। यह काम अकसर करके संख्या निर्णीत होती है। किन्तु अधिक मख्या होने पर औरतें ही किया करती हैं। सूत निकालने के लिये इससे भो प्रायः गिन लेना हो पच्छा ममझा जाता है। मख्या उमदा और कोई यन्त्र व्यरत नहीं होता। तमाम स्थिर होने पर उनका मुख्य ठहराया जाता है । तसरको सूत निकलनके बाद कोशक भातरसे कणाम रहावर्ष उपज पच्छो न होने पर उत्कष्ट कोगोंका कोमत फो मांसपिगढवत् मृत तार-कोट निकलता है । मोच जातिक काहन ( काहनको मख्या १२८० १०) १२)से ७' तक, लोग उमका तमरलउड करत भार उपादेय समझ कर मध्यम प्रकारकै कोशीको ७) से ५) तक तथा निकट खा जाते हैं। तर कातनवाले उनको रख देत रे भार प्रकारके कोचोंको कामत लगभग ५) मे ३) रु. तक नोच लोगोको बेच देते हैं। होती है। पोर उपज पच्छो होने पर उत्कृष्ट कोशका कोशीको पुष्टता पर प्राकारके अनुसार उनके सूतम भाव ७) मे ६) रुपया, मध्यमका ७) से ५) रुपया पौर भी कमोब शो होती है। उसष्ट कौशाम १०.१२से मिलष्टका भाव ४) से २) रुपये तक हुआ करते है। होतोला सूत निकलता है। कोश निकष्ट होने पर वर्षा, शरत्, हेमन्त और गौतमतमें हो तसरके कोशों उस अनुसार कोसी संख्या भी बढ़ जातो हे । तस- को उत्पत्ति होती है। वसन्त और ग्रोम मतमें जब मर्य का तेज अत्यन्त प्रखर होता है, तब ये कोश का मत बहुत उमदा होन: रुपये८१० तोला भोसर सोते रहते है। और निलष्ट होने पर १२॥१२ तोला त मिलता है । खरोददार लोग उन कोशो को खरोद खरोद कर कोशोंके डंठल और सू निकल जाने पर बाकीका बांकुड़ा और उसके अन्तर्गत राजग्राम, सोनामुखी, विष्णु. ____जो भोतरी अंश बच रहता है, वह और छिव तसर पुर, जयपुर, तथा वर्षमानमें मानकर और हुगलो जिले में सूत्रादि भी मष्ट नहीं होते। इनसे एक प्रकारका मोटा वदनगन्ज, श्यामबाजार, जगन्न प्रादि स्थानों में भेजा सूत बनता है। औरतें इनको कोमल बना कर पण्डी. करत है। उपयुक्त स्थानों में कोशोंमे तसरका सूत बनता रेशमका भाँति-काईको तरह उतन उतन कर चरखोसें है। यह मृत कुछ तो स्थानीय जुम्लाई लोग खरोद लेते उनका सूत बनाती है। इस सतसे करधनो पौर एक है और सफेद वा नाना रगों में रह कर तस तरहक सका खूब मोटा कपड़ा बनता है। बङ्गालमें इस कपड़े बनाने तथा बाकीका कलकत्ता और पन्यान्य कपड़े को कैटिया, मटका इत्यादि कहते है। बहुत से लोग प्रधान प्रधाननगरौंको रवाना होता। इसको पवित्र और मजपूत समझ कर देवपूजा और प्रतो-