पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२४०

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२३६ तन्त्र काली कपालिनी कुल्ला कलां निरोधिनीम् । है। प्रकृति, कमठ, शेष, पृथ्वी, मुधाबधि, मसिहौल, विप्रचितां महशानि ति: ८ कोणके वु थः॥ चिन्तामणिग्रह, श्मशान, पारिजात, इनको जड़में मणि- स्प्रामुप्रभां दीप्तां न्यसेत् पत्रत्रिकोगके । वेदिका बनावें। उसमें राधकर्ष ठ मणिपीठ न्यस्त करें। मात्रां मुद्रा गिताव पसेच्चान्यत्रिकोणके । चारों ओर मुनि, देवता, शिव, नरमुण्ड, धर्माधर्मादिको सर्वाः मा अमिकरा मुण्डमालाविभूषिता: । 'ॐ हाँ ज्ञानामने नमः' इतना कह कर स्थापन व्यस्त तर्जनी वामहस्तेन धारयन्त्यः शुचिस्मिताः । दिम्रा हसम्मुख्यः स्वम्बवाहनभूषिताः। पीछे साधक कान, कपालिनो, कुल्ला, कुरुकुला, विरा- एवं ध्याला प्रयत्नेन पूजयेदष्टपत्रके ॥ धिनी, विप्रचित्ता, इन सबको वहिषट कोणोंमें न्यस्त ब्राह्मी नारायणीचव तथा माहेश्ररी प्रिये । अपराजितां च कौमार्ग वाहीमचयेद्बुधः ॥ उग्र, उग्रप्रभा ओर दोलाको पत्रविकोणमें तया मात्रा, नार्गमहीं प्रपुज्येव ततो क्षिगतो रजेत । मुद्रा और मिता को अन्य त्रिकोणमें न्यस्त करें। महाकालं जेत् दयि विरीतर तान्तरे ॥ बादमें “अर्वाः श्यामा अमकरा" इत्यादि मन्नदारा दिगम्बर मुक्तकेश चण्डवेशं प्रथमतः । ध्वान करके मष्टपत्रमे भक्तिरर्वक पूजा करें। एवं संपून्य राजेन् मन्त्रमननाधीः ।। तदुपरान्त माधक ब्राह्मो, नारायणी, माहेश्वरी, 4. बिना मद्य विना मांस यदि देवी प्रजयेत् । गजिता, कौमारी और वगहोको पजा करें। पीके देवता शापमाप्नोति मृतो नरकानुते ॥" वोगचार प जाम पहले दोपणे आवश्यक है जिमी नारमिहीको पूज करके फिर याग करें। विपरीत रतान्तर में महाकाल याग करें। माधकको चाहिये, कि जाननमे मनुष्य जीवन्मुक्त होता है इसलिये ममम्त अनन्यचित्त दो र चडवेश, मुक्तकेश और दिगम्बरको देवता न दीपना कहो गई है, इस विद्या के बिना यत्न व क प जा करें। मद्य और मांस के व्यतीत यदि आयत्त एप भो भो मडि प्राप्त नहीं होती। माधक देवीको पूजा # जा, तो देवता शापग्रस्त होते हैं पोर पृजा. ध्यान और प्राचार बिना एकमात्र ज्ञान हाग प. जाकारी व्यक्त अन्तः। नरक जाता है। मना होता है तथा जा मुक्त होता है उसके कुन्नमें कोई "गिन। परकिा देवि पेत् यदि तु साधकः। दरिद्र वा मूर्द नहीं रहता । प्राण, धन, कुन्न और तो क्या म्वो भी दान को जामकता है किन्तु यह मन्त्र हर शतकोट पेनव तस्य सिद्धिर्न आयते ॥ स्त्रियो गति नियो प्राणाः श्रियः सिद्धिन संशयः। एकका न देना चा-िये कानोके वोजदय, उमके नारीणां स्मरणे काली मारिता स्थान संशयः ॥ बाद कुर्च वोजह 1 ओर लज्ज वीजदय, देवो दक्षिणका कण्ट +ण्ठं मुखे वक्त्र वक्षोज चोरसि प्रिये। लिका, पुनः ये ही वोज होगी। इसके ऋषि भैरव, छन्द तस्यं कुलरस देवि पाययित्वा यथोचितम् ॥ उणिक और देवी दक्षिणाकालिका हैं। स्वयं पीत्वा जपेन्मन्त्र सिद्धिर्भवति नान्यथा।"। हम वोज कुच पार लज्जागति है, अङ्गन्याम और करन्याम मायावोज हारा करके देवोका ध्यान करना साधक परस्त्रोंके बिना यदि जप करें तो शत कोटि प.ता है। जप करने पर भी उसको सिद्धि प्राप्त न होगी। बोंकि ___ कालबदना, धोरा, मुक्तपी, दिगम्बरो, चतुर्भुजा इसमें स्त्रोही एकमात्र गति है, स्त्री हो एकमात्र प्राण है, इत्यादि रूपमें कानो का ध्यान करके मद्य, मांस, रक्तपुःप स्त्रो हो एकमात्र सिद्धि है, इसमें जरा भी संशय नहीं। और तापमहाग तथा रत वस्त्रान्वित होकर भति नागैक स्मरणसे कालीका स्मरण करना होता है । कण्ठसे पर्वक प्रजा करना चाहिये। कण्ठ, मुखसे मुख, उरुस्थलमे वक्षोज, इस तरह उसको उसके बाद परिवारप जा, फिर पीठ-प जा को जाती कुलरस पिला कर और द पो कर यथोचित बप करें।