पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२३३

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- गुरु गैरिकादि हारा चित्रित मनोहर हमें उप- हारा सम घटका मोवावधान करना चाहिये। !ि वेशन करें। वह एक मनोहर ध्वजा पताका बारा और • शनिमत्रमें रनवस्त्र और विष्णु मवमें शतवन ही फल पन्नवादि हारा सपोभित तथा किडिनो पर्थात् बुद्र प्रशस्त है। इसके उपरान्त 'खो स्वाँ हों बों खिरी.. घण्टिकासमुहको मालासे विभूषित चन्द्रातप हारा वह भव' रस मको पढ़ वर खिरीखत पन्य घट पर , घर पलकत होना चाहिये। इस जगह इस तरह कृत- पञ्चतत्व स्थापन करके नवपावको विन्यास करना , प्रदीप जलाने होंगे कि, जिससे कहीं भी अन्धकारका चाहिये। लेगमात्र न रहे। वह मान कपूरहित शालनिर्यास में शक्तिपात्र रजतनिर्मित गुरुपात सुवर्णनिर्मित ' निर्मित पके हाग सुवामित और पंखा, तालजन्त, श्रीपात्र महाशविरचित और पन्य समस्त पान तान- चामर, मय रपुषण, दर्पणादि हाग समज्जित होना निमित होने चाहिये। महादेवोकी पूजाके समय चाहिये। . पाषाणनिर्मित पात्र, काष्ठनिर्मित पात्र वा लोहनिर्मित · गुरुको चाहिये कि, इस घर के भीतर चार अङ्गलि पात्रको छोड़ कर शक्ति के अनुसार अन्य पदार्थक पात्रोका उच्च और साई हस्त परिमित मृण्मय वेडोकी रचना व्यवहार कर । पात्रसंस्थापन करके गुरुपोंको भगवती करें। पीछे पोत, रक्ता. अण, खेत, ज्यामन, इन पाँच (पोर आनन्दभैरवादि) का तर्पण करें। तत्पश्चात् । वर्णोक अक्षत-चगण बारा सुमनोहर मर्वतोभद्र मगहल जानी व्यक्ति अमृतपूर्ण घटको पूजा करें। फिर धूप, बनावें। फिर स्व स्व कम्योता विधानानुमार मानभपूजा दीप प्रदर्शनपूर्वक पूर्वोक्त मात्र बोल कर सर्वभूत वलि पर्यन्त समस्त कार्य सम्पन्न करके मन हारा पंचतत्त्व प्रदान करें। अनन्तर पीठ देवतापोंको पूजा करके शोधन करें। षडङ्गन्यास करें। पीछे प्राणायाम करके महखरोका पंचतत्व शोधनके बाद पूर्व कल्पित सर्वतोभद्र मण्डन- ध्यान और. पावाहनपूर्वक अपनी शक्तिके पनुसार पभोष्ट के ऊपर सुवर्ण निर्मित, रजतनिर्मित, ताम्रनिर्मित अथवा देवताको पूजा करें, किसी तरह भो विसथाय नहीं मृत्तिकानिर्मित घट ला कर 'फट' इस मन के हारा उम करना चाहिये। शिवे ! सद्गुरुको चाहिये कि होम घटका प्रक्षालन करें। उस पर दधि और अक्षत विलेपन तक समस्त कार्य सम्पन करके पुष्प चन्दन और वस' पूर्वक प्रणव उच्चारण करके उसको उम मगडल में स्थापित हारा कुमारियों पोर शनि- साधकोंको पर्चित करें।" करें पीछे श्री" वह वोजमत्र पढ़ कर मिन्दुर हाग उसको "हे कुलव्रत कौलगण ! पाप लोग मेरे पिच पर प. लिख दें। अनन्तर चन्द्रबिन्दु-विभूषित 'क्ष' से 'अ' ग्रह प्रकट करें । म पूर्णभिषेक संस्कारमें पाप लोग पर्यन्त पञ्चाशत वर्णांक साथ मूलमत्र तोन बार जप अनुमति प्रदान करें।" चक्र खरके ऐसा प्रश्न करने पर करके कारण हारा उस घटको भर दें अथवा तीर्थजन्न कोलगण समादरपूर्वक कहेंगे कि, "महामायाक हारा वा विशुद्ध हो तो मलिल हाग घट पूर्ण करके उस प्रमाद और परमात्माकै प्रभावसे पापके शिष्य परमतव. घटमें नवरत्न व सुवर्ण निक्षेप करें। तत्पश्चात कपा- परायण और श्रेष्ठ हों। निधि गुरु 'एँ' यह बीजमत्र उच्चारण कर कलमके सदनन्तर गुरु शिथके हारा देवी भगवतीको पूजा मुंह पर कटहर, उदुम्बर, अश्वस्थ, वकुल्ल पोर पाम, इन' करा कर अचिंत घट पर 'की हों श्रौं' यह मन्त्र जप पाँच प्रकारके वृक्षों के पत्ते रक्खें। पीछे 'श्रौं हो' कर उस निमल घटको चालना करें। फिर यह मन्च यह मंत्र उच्चारण करके पातप-तण्डल और फलसमः पढं कि, हे ब्रह्म कलस तुम सिविदाता हो और देवता- वित सुवर्णमय, रजतमय, ताम्रमय वा मृण्मय भगव __ स्वरूप उत्थान करते हो । मेरा शिष तुम्हार जल पोर ( मरवा )-को पत्तोककपर रक्खें । वगनने ! वस्त्रयुगल पनवसे सित हो कर प्रमनिरत होवे। बबालंकाराविमिरई वृणे। इस प्रकार संकल्प पाठ करके ___ गुरु इस मवहारा कलस सचालित करके अपायुक्त पुरुको रणरमा पाहिए। .. . पदयसे, सत्तरकी तरफ करके विषको पमिति .. Vol, Ix..58