पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२११

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करते है, सुतरी जिहोंने केवल यही व्यवसाय पवलम्बन मर्भस पाठ पुन उत्पए । विधवानि मापा पु. किया है, वे सबके सब नवशाखके अन्तर्गत तन्तवाय को भिव भिव मिसाममि मिचा दी। सकोसे पाठ जातिके नहीं। भिव भिक जातियों के एक व्यवसाय जातिके शिल्पकार उत्पब एए । उन पाठ में तन्तुबाय भी अवलम्बन करनेके कारण यह साधारण वृत्तिवोधक एक। नाम रखा गया है। बहुतोका कहना है कि सम्सुवाय बालके तन्तुवाय निशचिखित सबादाय विभाग शिवदास या घामदासके वंशधर है। किसी समय नाचते । यथा--पाखिना था पासिनतांती, फिर ये भी समय शिवजोके शरीरसे एक बूंद पसीना गिग। उस वईमानो, वर्णकुल, मध्यकुल, मान्दार पोर उत्तर पसौनसे तुरंत ही शिवदास उत्पब एमा। पसौनसे पैदा सून न पाँच ऋषियों में विभक्त , बलरामी. वा, होने के कारण इसका नाम धामदास पड़ा। इसके बाद बड़ाभागिशा या झपानिया, वारन्द्र छोटा भागिया या शिवजीने एक कुश ले कर घामदामके लिये कुशवतो नाम- कायत, ताँतो कातुर, कोरा, बोर, मधुकरो, मगन, की एक कन्या मुष्टि की । यह कुशवतो घामदामको स्त्री मड़ियालो. नोर, पान, पुरन्दरो, पूर्वकुल, गढ़ी हई। शिवदासके चार पुत्र बलराम, उत्सव, पुरन्दर और और उहवी.। मधुकर हुए। इन चारोंसे चार सम्प्रदायके तन्तुवाय विधारक तन्तवाय वैखर, वनौधिया, वामार. जबर, निकले । जातिकौमुदीके मतसे मणिबन्ध पुरुष और मणि कहार. कनौजिया, निहुतिहा और उत्तराषियोंके है। काको स्त्रीसे सन्तुवायकी उत्पत्ति हुई है। परशुरामको उड़ोमा तन्मवाय मातिवश तातो, गाला तांती जातिमालाके मतानुसार- और इसी तातो रन कई एक श्रेणियों में विभा । "तेलकात् मणिकन्यायां तन्त्रवायस्य सम्भवः । बङ्गालके सॉतियोंकी उपाधि बराय, बसाक, भड़, भद्र, सेलोके औरस और मणिकाको लड़कोके गर्भ से सन्तु बौ, बिट, चन्द, दुगरी, दलाल, दास, दत्त, दे, गुं वायका जन्म हुपा है । कद्रयामलोत जातिमालाके मता प्रामाणिक, सो, याचनदार. कर, सु. मण्डल, मेष, ' नुसार- मुखिम, नन्दो, पास, साधु, सर्दार, रक्षित और पौल। "मणिबन्ध्यात् खानिका तन्तुवायश्च अग्मिवान् । ___ विहार में इसको उपाधि दास, महतो, माझी, मरात्त त तुन् दत्वा मुनिश्रेष्ठे तन्त्रवायमवाप्तवान् ॥ और मारिक है। मणिबन्यो तन्त्रवायात् गोपजीवस्य सम्भवः । ____ बङ्गालके ताँती निन्नलिखित गोत्रों में विभाग:- मणिबन्धके औरस पौर खानिकारि-कन्याके गर्भ से अगस्य ऋषि, असदासी, पलम्यान, पविशषि, बड़. सन्तुवायने जन्मग्रहण किया है। दराने किसी मुनिवर- ऋषि, वासा, भरद्वाज, विश्वामित्र, मावि, गगंषि. को सन्तु दिया था इसलिये इसका नाम सन्तुवाय पड़ा गौतम, जनऋषि, काश्यप, कु.ल्यऋषि, माकुला, पराशर, है। तन्तुवायके औरस और मणिबन्ध-कन्याके गर्भ से शाण्डिला, सावध पौर व्यास । विधारने रसके चामर- गोपजीवका जन्म हुआ। तानी, हिन्दुहा. काश्यप प्रभृति गोत्र है। मनुसहिताके मतानुसार- पश्चिम बङ्गालमें पाविना तातो हो सबसे अधिक है। "नृपायां वैश्यसंसर्गादायोगव इति स्मृतः। इनका कहना है कि पाखिम तातो हो मूल जाति है, , तन्तुबायो भवन्त्येव वसुकांस्योपीविनः । इन्होंसे दूमर दूसरे तन्तवाय उत्पबाहुए है। ये भिव भिव सीलकाः केचित्तत्रैव जीवन वस्त्रनिर्मिती॥" स्थानके नामानुसार ५ विभित्र पाखापोंमें विभा। चरियापीके गर्भ पौर वैश्यक पौरससे पायोगवको। पाखिन तातोमें एक विशेष लक्षण या कि इनको उत्पत्ति हुई। तन्तुवाय भी इसी तरह उत्प्रब एषा है। स्त्रियाँ कभी नाकमें नथनी नहीं पहनतीं। इसकी जीविका वननिर्माण करना है। फिर बहुमोका ढाकाके तातो बड़ाभागिया या भान्पनिया और कोटा मत किविसकर्माके चौरस पौर प्रापमा ताचो भामिया या कायतिया इन दो दुलोंमें विभक्त बहा