पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१६६

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त-मम्बत पोर हिन्दी वण मालाका मोलहवां अक्षर, ७ शठ । ८ मा ८ सुगतदेव, बुद्ध । १० गौरववर्जित, नवर्गका प्रथम वर्ग । अर्थमात्राकालमें एमका उच्चारण वह जिमके अभिमान न हो । ११ कोष्ट पुच्छ, गोदरको होता है । एमके उच्चारणमे पाभ्यन्तरिक प्रयत्न है - टन्त- Jछ । १२ तरण । १३ पुण्य । १४ नौका, नाव । १५ झंठ । मन द्वारा जिल्लाकै अग्रभागका स्पर्श । वायप्रयन- तप्रज्ज ब (प्र. पु०) आश्चर्य, अचम्भा । विवार, खाम और अघोष है । इसके उच्चारणस्थान है- तअम्मल (पु.) १ मोच, फिक्र। २ बिलम्ब, देर. दन्त । माटकान्याममे इमका वामनितम्ब पर न्यास करन! अरसा। ३ धेय, मन। चाहिये। रमको नि: नगालो रम नरम है- 'त'। तपन क (१० पु०) मबन्ध, इलाका। डम प्रसर ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर नित्य विग- तमल कः (प्र. पु. ) वह जमींदारी जिममें बहुतमे जित रहते हैं। मौजे लगते हों, बड़ा इलाका। दमके वाचक शब्द पृतना, हरि शुद्धि, शक्ति शुक्ति तल्ल कःदार ( १० पु.) १ इलाके का मालिक । (स्त्री०) जटो, वजो, वामम्मिच ( वामनितम्ब ', वामकटो, २ इलाकेदारका पद । कामिनी, मध्यकर्ण क, पाषाढ़ी, तण्डतुभ्न, कामिका, पृष्ठ | तबल्ल का ( हि पु० ) तअल्लुक देखो। पुच्छक, रत्नक, श्याममुग्वी, वाराही. मकर, अकणा, तभन्न कादार ( हि पु० ) तअल्लुकदार देग्यो । सुगत, अध्वं मुग्व, अध्वं जानु, क्रोष्ट,पुच्छक, गन्ध, विश्व, । तमन्नु केटार (हि.पु.) तअल्लुकादार देखो । मात्, छत्र, अनुराधा मौरक. जयन्तो, पुलक, भान्ति. तब केदारी (हिं. स्त्रो०) तल कादारोका पद। अनङ्ग, और मदनातुग। (नानान०) यह स्वयं परमकुण्डलो तपस्सुब ( अ० पु० ) पक्षपात, तरफदारी। तथा पञ्चप्राणमय और पञ्चदेवानक है। यह वर्ण वितरक (हिंपु.) मोचो, चमार । शक्तियुक्त तथा प्रामादि तत्त्वोपेत, त्रिविन्दयुक्ता और पोतवि तरनात (हिं. पु. ) तैनात देखो। द्य त्को भौति प्रभाविशिष्ट है। ( कामधेनुत०) तई (प्रत्य० ) १ में। २ प्रति, को, मे। इमका ध्यान कर पम वर्ण का दश बार जप करनेमे तई (हिं. स्त्रो०) कम गहराई को कड़ाहो । यह थालोमें शोघ्र ही अभीष्टको मिडि होती है। ध्यान- मिलती जुलतो है और इसमें कड़े लगे होते हैं। "चतुभुजा महाशान्तां महामोक्षप्रदायिनीम् । त म स्त्रो०) १ नौका, नाव। २ पवित्र, पुण्य । सदा षोडशवर्षीया रक्ताम्बरधरां पराम् ॥ तंग ( फा० पु.) १ घोड़ोंको पेटो, कसन। (वि० ) नानालंकारभूषां वा सर्वसिद्धिप्रदायिनी । २ दृढ़, मजबूत । ३ दुग्यो, दिक , आजिज । ४ सङ्गचित, एवं ध्यात्वा तकारन्तु तम्मन्त्रं दशधा जपेत् ॥" (वर्णोदारत०) सण, पतला, मकरा. सकेत । इन वर्णाधिष्ठात्रोके चार हाथ हैं। ये परम मोक्ष तंगदस्त ( फा० वि० ) १ कपण, कजूम। २ दरिद्रो, प्रदान करतो ये सब दा षोडशवर्षीया रतावखापरिधा गरीब, कङ्गाल। गिनो और नानाभूषणहारा परिशोभिता है तथा माधको तंगदस्ती ( फा० स्त्री० ) १ रुपणता, कजूसो। २ दरि को समम्त मिति प्रदान करती हैं। द्रता, गरीबी। • रमवण का मात्रावृत्तमें प्रथक प्रयोग करनेमे धन संगहाल ( फा- वि०)१ निधन, गरोब। २ विपदग्रस्त, नष्ट होता है। (जन्नर टी. ) जो तकलीफमें पड़ा हो । ३ रोगग्रस्त, मरणामब. बीमार । त (म. पु.) तक-ड । १ चोर, चोर । २ अमृत । ३ पुच्छ, तगा (हि.पु०) १ एक पेड़का नाम । २ आध पाना, दुम। ४ कोड़, गोद | ५ म्लेच्छ। गर्भ, हमल। डबल पैसा। '