पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१४३

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डोल • खोक) हिमालयके काँगड़ा, नेपाल, सिकिम पोड़ी ( मो.) फाटक, दरवाजा, चौखट। २ पादि प्रदेशों में होनेवालो हिन्दी रेवद चोनो। इसका दरवाजे में प्रवेश करते समय सबसे पहली बाहरो कमरा. दूसरा नाम पदमचल और करो भो ।। २ पूर्वोय पोरी। बङ्गाल, आसाम भोर भूटानसे ले कर बरमा सकमें पाये पोढ़ीदार (हि.पु.)गोढीवान देखेंगे। जानेवाला एक प्रकारका बॉम। यह चोंगे पौर शते घोड़ीवान (हि.पु.) हारपाल, दरबान । बनानेके काममें विशेषकर पाती है। नाग (40 पु०) सकोगेसे चित्र या पाखति बनानेकी डौंड़ो (हि. स्त्रो०) १ गड गिया, ढिंढोरा । २ घोषणा, विद्या । मुनादी। ड्राइवर ( पु.) वह जो गाड़ी चलाता हो। डॉग (हि. पु०) खेतों में उगनेवाली एक प्रकारको धाम। ड्राई प्रिन्टिङ्ग ( स्त्रो०) बिना भिगोए हुए छपाई। इस डोमा (हि. पु० ) काठका चमचा। प्रकारकी छपाईसे कागजको चमक ज्योंको त्यों रह डौल (हिं. पु०) १ प्रारम्भिक रूप, ढाँचा, ठाट । २ रचना. जातो है और छपाई भो साफ होती है। प्रकार, ढव, शैली । ३ भाँति, प्रकार, किस्म । ४ उपाय, ड्राफ्टसमेन ( पु.) वह जो स्सल मानचित्र प्रस्तुत सदबीर। ५ लक्षण, आयोजन, रंग ढंग, मामान। करता हो, नकशा बनानेवाला। . (स्त्री) ६ खेतोंको मेंड़, डांड़। ड्राम ( अ पु०) तीन माशेके बराबर एक अंगरेजो डोलडाल (हि.पु.) युक्ति, प्रयत्न, उपाय। मान । इससे पानो पादि द्रवपदार्थ नापा जाता है। डोलदार (हिं० वि० ) सुन्दर, ख बम रत। झिल ( स्त्री०) कबायद । डोवर (हिं पु०) एक प्रकारका पक्षो। इमका पर, क-कलकत्ताके एक अगरेज शासनकर्ता। जिस समय छाती और पीठ सफेद, दुम कालो और चोच लाल (१७५६ में ) सिराजने कलकत्ते पर पाक्रमण किया होती है। था उस ममय ये इष्ट इगिडया कम्पनीको पोरसे कर्म- घोढ़ा (हि. वि. १ प्राधा और अधिक. डेढ़गुना । (पु०) कत्ताके शासनकर्ताके पद पर नियुक्त थे। २ सङ्गीण पथ, तंग रास्ता।३ गोतका ऊंचा स्वर । ४ ड्रेस करना (हिं.कि.) मरहम पही करना। डेढगुनी संख्याका पहाड़ा। बेगून (• पु० ) सवार, सिपाही । ४-संस्कृत और हिन्दोवर्णमालाका चौदहवाँ अक्षर, वर्णाभिधानमें उसके वाचक शब्द इस प्रकार लिखे टवर्ग का चोथा वर्ण । रमका उच्चारणस्थान मूर्खा और 1-ढक्का, निर्णय, शूर, यश, धनदेखर, पर्यनारोम्बर, उच्चारणकाल मई मात्रा है। इसके उच्चारण में पाभ्यन्तर तोय, ईखरी, त्रिशिखो, नव, दक्षपादाङ्ग लोमूल, सिधि प्रयत्न है-जिशामध्य हारा मू का स्पर्श, वाघ प्रयत्न दण्ड, विनायक, महास, त्रिवेरा, ऋषि, निगुण, निधन, सवार, नाद, घोष और महाप्राण। ध्वनि, विश, पालिनी, तपधारिणी, झोडपुच्छक, ऐलापुर, माटकान्यासमें इसका दक्षिण पदाङ्गलिके मूलमें न्यास त्वगामा, विशाखा, श्री, मन पोर रति। ( नानातन्त्र) होता है। इस अक्षरकी अधिष्ठात्री देवी परमाराध्या, पराकुण्डली, इसको लिखन-प्रणाली इस प्रकार है-"" एस पञ्चदेवामक, पचप्राणमय, विगुण पोर पामादि वर्थ में ब्रह्मा, विष्णु और महेखर नित्य विराजते ।। सकल तत्वोंसे संयुक्त तथा विद्यु,मताकार है । (कामधेनुत०) (वहारतन्त्र) सका ध्यान कर रस पक्षरके दश बार अपने साधक