पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८१५

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विमर्पयर-विसाग्नि ७३, (जो गेहू' मादिको जल में पाक कर लेह जैसा जो पद विमपि (म. पु०) विसर्ग, विसर्पराग। (राजनि० ) को बनता है, उसका नाम उत्कारिका है ) घृतादि स्नेह-विमाका ( स० स्त्री०) रागभेद, विस।। पोगसे स्निग्ध कर उसके द्वारा या घेशकरादि द्वारा प्रलेप । (वृहत्त हिता ३२१४.) दे। दशमूलक काढ़े और कलकको तेल पाक कर उष्णा- | विसपिणो ( म स्त्री० ) श्वेतयुहालता, शबनी, संस्थामें वह तेल देना होगा। असगंधका- कलक, सूत्री ययतिता। मूलोका कला, वरकरणको छालका कल्क या बहेडे का विसपिन (स० त्रि०) वि.सूप-णिनि विसरण "कलक, इन्हें कुछ गरम करके प्रनिधिसर्ग प्रलेप दे। शोल, फैलनेवाल।। २ विसर्परागयुक्त। . . . दस्तीमूलको छाल, चितामूलको छाल, धूहरका दूध, म | विसम्मन् ( स ० ) विसरणशील, फैलनेवाला। . घनसा दूध, गुड़, भिलावेका रस और होराकसीस, इनके । (ऋक् ५।४२१६) फाधका कुछ उष्ण करके प्रलेप देनेसे उपकार होता है। सिल ( स० क्व०) विसं लातीतिला:क । : पलय, '. पूर्वोक्त औषध द्वारा यदि प्रथियिसर्थ प्रशमित न पृक्षका नया पत्ता। । .. . . .. हो तो क्षार धारा सप्तशर या तप्तलीच द्वारा दाह करे। विसला ( स० पु.) विसर्पक रोग। :... ... भयंका प्रणशोधोक्त प्रणको पकानेवाली गौपधसे उसे . ( अथर्य, १६।१२७११ सायण). उत्गारिन करना होगा। इस वाद वहिर्गमनामुम्न रक्तफा विसलाक (स. पु० ) विसरूप देखो। . . . पमा कर पुन: पुन: मोक्षण करे । रक्तके आपन होने पर विसयमन (संलो०).यमगत नेत्ररोगभेद । लक्षण- पातश्लेष्मनाशक शिरोविरेचन धूमप्रयोग और परिमन जिम नेत्ररोग, त्रिदोषक प्रकोपके कारण .यम के ..करना होगा। इस पर भी यदि दोपका प्रशम न है, तो बाहर (पलको पर). शोध उत्पन्न होता है, भीतरमै बहुत- व्रणशायात पाचन औषधकी व्यवस्था करे। दाइ और सा छोटो छोटो फुसियां होती हैं और उन फुसियांसे पाक द्वारा प्रन्धि प्रक्लिम होनेसे घाद्य और अभ्यन्तर मल की तरह नाय निकलता है उसे विसयत्म कहते हैं। । शोधन तथा रोपण गौषधके प्रयोग द्वारा प्रणशोथवत् | (सुभत उत्तरतन्त्र. ३ म.) चिकित्सा करनी होगी। कालानीबू, विड़ा और | विसवासद (स.पु०.). जावित्री। . दामादाका छिलका, इनके कल्क द्वारा चौगुने जलमे विसशसा (सनी) जावितो। . . . . तेल पाक कर प्रन्थिक्षत पर प्रपोग करे । ममिहित पागों विशालक ( स० पु. ) कमल कन्द, भसोर। , तथा रकमेक्षिणके प्रति विशेष दष्टि रख कर काम करना | विसामग्री (स. स्त्री०) कारणामाव) , . होगा। विशेष विशेष प और उपद्रव दिखाई देने पर | विसार (स.पु.) विशेषेण सरतोति समाती (ल्याधि. जिससे उनकी शान्ति हो, सदा उसकी बेधा करनी मत्स्यवलेविति वक्तव्यं । पा ३२३।१५) इत्यस्य याति कोफ्त्या पाहिये। (चरकसंहिता चिकित्सितस्था० ) धम् । १ मत्स्य, मछली । २. निर्गम, निकलना,। भावप्रकाश लिखा है, कि कुष्ठ और भन्योन्य प्रण । (ऋक ११७६१) ३ विस्तार, फैलाव । ४ प्रयाह, बहाव । गाम जो सब घुत और औषधादि कहे गये है, विसर्प ५ उत्पत्ति, पैदाइश । . . .. ' , रोगमें उनका प्रयोग भी विशेष उपकारी है। विसर्पके - (विसारथि ( स० वि० ) विगता सारीपर्य स्मात् । 'पकने पर शलद्वारा पोपको निकाल कर प्रणकी तरह चिकित्सा करनी होती है। सारपिशून्य, विना सारथिका। । . . . विमर्पज्वर (सं० पू०विसपरागजन्य ज्वर, यह ज्यर | बिसारिणो ( स० खो० ) विसारिन्-डोप् । .१ माषपणी, . जो विसर्परोगकी शंकासे होता है। विसर्प शब्द देखो।। मवयन । २ प्रसरणशीला, फैलानेवाली।. पिसर्पण (स' क्ली) वि-सूप ल्युट । १,प्रसरण, | बिसारित..( स० लि०) वि स णिच् क्त.। प्रसारित, फेलना।२ स्फोटकादिक दिका उत्सक, फोड़े आदिका | फैला हुआ। :.. फूटना। . ३ निक्षेप, फेंकना, डालना। ... विसारिन (स नि०.) विव : णिनि. I प्रसारणशाल, ___ Vol xxI, • 179 ":. ' .