पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७७५

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विपुष ६७६ से परवत्ती ( सम्मुखयत्ती ) २७ दिन (१ लोसे २७वीं सिर्फा ६ अनुकला होती है। नीचे अयनांश निरूपणका 'पैसाख ) तक अनुलोम गतिसे विषुव मारम्भ होता है। नियम लिखा जाता है। -अर्थात् इन (२७.२७ ) ५४ दिनों से जिस किसी दिन ४२२ शकाग्दसे ले कर जिस किसी शकाग्दका अय- पकादिकमसे ६६ वर्ष ८ मास तक सूर्ण एक पार करके नांश निकालना हो, उस अडूमें ४२१ वियोग करे । विपुगरेखा पर पहुंचते हैं और उस दिन दिनारात्रिका! वियोगफल जो होगा, उसे दो स्थानों में रख पकको १०. माग समान रहता है। इससे यह भी समझा जायेगा । से भाग दे। भागफल जो होगा उसको दूसरेसे घटाये। कि यो आश्विनसे २७यी कार्तिक तक ५४ दिनोंमसे । इसके बाद अपशिष्ट अडको ६०से भाग देने पर भागफल जिस किसी दिन सूर्या एकादिक्रमसे ६६ वर्ष ८ मास तक और भागशेवाङ्क, अयनांश और कला विकलादि रूपमें एक बार करके हिजपुतारेषा पर उपस्थित होते हैं तथा । निरूपित होगा। उसे उस शकाब्दफे प्रारम्भकालका उम दिन दिवारात्रिका मान समान रहेगा। इसीलिये अर्थात् १ली बैसाखक पूर्वक्षणका अयनांश जानना वर्ष में दो दिन करके दिया और रात्रिका.मान समान देखा होगा। जाता है। फिर यह भी जानना होगा, कि ३०वों चैत्रके ____ उहाहरण-१८२६ शकाग्दके प्रारम्भमें अयनांश जो पहले या पीछे जिस तारीखको सूर्य विषुवरेखा पर था, वह इस प्रकार है,-१८२६-४२१-१४०८। आने हैं, ३०वों आश्विनके पहले और पीछे भी ठीक उमो | १४०८+१०-१४०४८। १४०८-१४०४८१२६७। तारोनको एक बार और विपुपरेखा पर मायंगे। १२, (१२६७।१२)+६०-२१।७१२ अर्थात् १८२६ उक्त प्रतिलोम और अनुलोम गतिका कारण यह | लोम गतिका कारण यह | शकसे ४२१ निकाल लेने पर १४०८ दुमा। १४०८ में है,-सृष्टिक भारम्भकालमें जहां अश्विनी नक्षत्रके प्रारम्भ | १० भाग देनेसे भागफल १४०४८ होता है। इस लम्घ से राशिचक्र सग्नियेशित हुआ था, वहाँसे यह राशिचक्र फलसे फिर १४०८ निकाल लेने पर अवशिष्ट १२६७ सम्मुख और पश्चाभाग, अर्थात् उत्तरमें पक पक २७ कला और १२ विकला रहा। उसमें ६० भाग दे कर अयनांश ( Degree ) तथा दक्षिणामें भी उसी प्रकार २७ अंश लानेसे २१ अश भागफल हुआ तथा ७ कला और अंश हट जाता है। यह अयनगति ७२०० वर्ष सम्पूर्ण १२ विकला अवशिष्ट रहा । अतएव जाना गया, कि होती है। क्योंकि प्रथमतः ३०वों चैससे ४थो चैत्र तक १८२६ शक (सन् १३१४ साल )के प्रारम्भमें भयनां- प्रतिलोम गतिसे २७ अंश जाने में (६६८४२७) १८०० शादि २१७।१२ विकला निरूपित हुआ। ४२१शक प्रारम्भमें मेष संक्रांति के दिन हो यिपु. वर्ष लगता है। पीछे ३०वीं चैन तक लीट.मानेमें भी चारम्भण दुगा था। उस शकमें अयनांश शून्य होता १८०० वर्ण । इस प्रकार अनुलोम गतिसे.भी १ली वैशाख है। इसके बाद ४२१ शक पूर्ण हो कर ४२२ शकफ से २७ पैशाख तक २७ अश जा कर लौट आनेमें उतना ही समय अर्थात् (१८०० ४२) ३६०० वर्ण लगता है, मतपय | प्रारम्भमें अर्थात् महाविपुवसंक्रांतिके दिन अयनांश ५४ विकला हुआ था। उक्त ४२२ शकसे प्रति वर्ष अपनांग प्रतिलोम और अनुलोम गतिसे जानेमें (२७-२) ५४मशा ५४ विकला वढा कर १८२६ क (सन् १३१४ साल). अथवा जाने और आनेमें अर्थात् (५४४२) १०८ अंश । के प्रारम्भमें २११७१२ ( इकोस अंश ७ कला और १२ तक जाने और आने (६६४१०८) ७२०० धर्म लगता है। विकला ) भयनाशादि पूर्ण हुआ है, अर्थात् २१यां राशिचक्रकी इस अयनगतिवशतः सूर्णकी गतिके अयनांश उत्तीर्ण हो कर २२यें अयनांशका ७ कला और • अनुसार दिन रात्रिकी कमोवेशी हुमा करती है तथा ६६ १२ विकला हुआ है। आगामी १८८८ शक ( सन् वर्ष ८ मासके बाद अयनांश परिवर्तित होनेसे मेपादि बारह लग्नोंके मानका भी हात वृद्धि हो कर परिवर्तन १३७३ साल) के अप्रहयण मासमे० पाईसयां अयनांश होता है। एक वर्षका अयनांश मास ५४ विकला है। प्रति वर्ष ५४ विकला पदनेसे १२२ विकता बानेमें । एक मासमें ४।३० साढे चार विकला तथा एक दिन । वर्ण जगता है , अतएव (१८२६-८) १८२१ शकमें मतमा