पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७६९

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विपविधि-विषहरी विपविधि ( स० खो०) प्राचीन व्यवहारशास्त्र के गनु• लिखा है, "मो हुँ जः" यह मन्त्र पढ़नेसे सभी प्रकारके सार एक प्रकारकी परीक्षा या दिव्य जिससे यह जाना, विच्छूका विष विनष्ट होता है। पीपल, मक्खन, सोंठ जाता था, कि अमुक व्यक्ति अपराधी है या नहीं। या अदरक, सैन्धव, मिर्ग, दधि, कुट इन सब द्रव्योंका ___दिव्य शब्द देखो। चूर्ण एक साथ मिला कर नस्य वा पान करनेसे . विपक्ष ( स० पु० ) उदुम्वरवृक्ष, गूलरका पेड़। विष जाता रहता है। आयला, हरीतकी, यहेडा, "विषवृक्षोऽपि संवयं स्वयं हेच मसाम्प्रतम् ।" सोहागेका लावा, कुट और रक्तचन्दन इनकं चूर्णको (कुमार २ ० ) घोमें मिला कर पान करने तथा विषाक्त स्थानमें लेपने. विपवैद्य ( पु०) विषमन्त्राभिज्ञ चिकित्सक, वह जो | से विष उसी समय उतर माता है। कबूतरकी आंख, मन्त्र तन्त्र आदिको सहायतासे विष उतारता है, ओझा। हरिताल और मैनसिल इनका व्यवहार करनेसे गरुड़के पर्याय-जांगुलिक, जाङ्गलिक, नरेन्द्र, कौशिक, कथा- | सर्पविनाशकी तरह घिप नष्ट होता है । सौंठ, पीपर, प्रसङ्ग, चकाट, व्यालप्राही, जांगुलि, जागलि, हितुण्डिक, | मिर्ग, सैन्धव, दधि, मधु और घृत इन्हें एक साथ व्यालणाह, गाडिक । (शब्दरत्ना० ) मिला कर विच्छूके काटे हुए स्थान पर लगानेसे विष विपवैरिणी ( स० स्त्री० ) निविपी घास, मिपिंपा। उसी समय जाता रहता है। ( गरुडपुराण १८६०) विपशालुक (सपु०) पदाकन्द, भसोंद । गुण-गुरु, (पु.)२ प्रन्थिपर्णभेद, भटे उर, चोरक । ३ घटक विष्टम्मी और शोतल ! ( राजवल्लम) पक पुत्र का नाम । (हरिवंश ) ४ हिमालय पर्वतश्रेणीके विपशक (स० पु. ) विपं शूफे यस्य । भृङ्गरोल, भीम. पश्चिम भागका एक मश। पर्वतभाग प्रधानतः दाने. रोल नामका कीड़ा। दार पत्थरोंस भरा पड़ा है। यमुनोत्तरीफे उच्च शिखर- वियङ्गिन (स० पु०) घिर्ष गमियास्त्यस्येति विप. | देशसे लगायत मातुलके दक्षिण शतद्र, नदी तक प्रायः शृङ्ग इनि । भृङ्गरोल, भीमरोल नामका कीड़ा। ६० मील विस्तृत है। विपहर पर्वतके शिखर १६६८२से विषशोकापह ( स० पु.) तण्डुलोय क्षुप। २०६१६ फीट ऊंचे है। उसकी सर्बोच शिखर ही विषसंयोग ( स० पु०) सिन्दूर, सेंदुर । यमुनोत्तरी है। इस पर्वत पृष्ठमें १४८६१ से १६०३५ विषसूचक ( स० पु० ) विषं सूचयति पिपयुक्तारमादि- | फोटके मध्य वहुनसे गिरिपथ हैं। यहाँक धाशिन्दे हिन्दी दर्शने मृतः सन् छापयतीति सूच-णिच-पल । चकोर | बोलते है। लादक देखो। पक्षी । विपहरा (स० स्रो०) १ देवदाली लता, बंदाल । विपरसृक्कन (स० पु० ) विपं सृकनि यस्य । भृङ्गरोल, २ निविपा। ३ मनसादेवी।। भीमरोल नामका कोड़ा। "जरत्कारुप्रियास्तीकमाता विजारेति च " विपस्फोट (संपु०) स्फोटकभेद । (देवीमाग०६४१५२) विषह ( स० त्रि०) विष-हन-ड । १ विपघ्न, विप. विषहरिवर्कि ( स० स्त्री० ) सान्निपातादि विकारमें ध्यय- नाशक । स्त्रियां टाप। २ देषदालो। ३ निर्विषा। हार्य अजनयति विशेष प्रस्तुतप्रणाली-जयपाल विपहन्त (स० पु०) १ शिरीपल, सिरिसका पेड़। (जमालगोटा ) वोजको मजाको नीयूके रसमें इक्कीसवार २ विषनाशका . अच्छी तरह पीस कर बत्तीको तरह बनाये। पोछे विपहन्ता (स. स्त्रो०) १ अपराजिता । २ निर्चिषा। मनुष्यको रालसं उसको घिस कर अम्जनको तरह लमें ३ श्येत अपराजिता। । व्यवहार करनेसे साग्निपातविकारादिमें उपकार होता है। विषहर ( सं .) हरतीति हु-अच विषस्य हर . . .. . . (रसेन्द्रनिन्ता०) . १ विपन्न औषध मन्त्रादि यह औषध या मन्त्र आदि विषहरी ( स ना.) १. मनसादेवी। विषसहारमें जिससे विषका प्रभाव दूर होता हो। गरुडपुराणमें श्रेष्ठ होने के कारण इनका नाम विपइरी हुआ है। ,