पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७४१

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६५३ स्थायर चिपसे प्रामात रोगीके लिये कै हो । को जपको दुध द्वारा पीस कर पी जानेसे कुत्तेका प्रधान निकित्सा है। मतः इस विषमे पीड़ित रोगोको । विपदर हो जाता है। हरिद्रा (हलदी). बारहरिला. पत्नफे साथ के करा देना चाहिये। विप अत्यन्त ! रक्तचयन, मजीट गौर नागकेशर, पे मय शीतल जलमें तीक्ष्ण भीर उष्ण है, हमसे मम तरहफे विपरोग पीस कर उसका प्रलेप करनेसे शीघ्र लताविष दूर होता शीतल परिपेक दिसकर । उष्णगुण और तीक्ष्ण है। यारोक पीसा हुभा जोरा, घी और सैन्धय नमकमें 'गुणमै विष गत्यधिक गरिमाणमें पित्तको पृद्धि करता है। मिला कर जरा गर्म करे। इसमें मधु कर भच्छी तरह इमलिये के कराने के बाद नीतल जलसे रनान कराना घोंट साले पौर काटे हुए स्थान पर लगाये तो विच्छ्रका उचित है। विपीमित व्यक्तिको गोत्र घृत भीर मधु यिप उतर जायेगा। सूर्यायर्स (शूलटा ) वृक्षका पत्ता द्वारा विषम औषध खिलानी नाहिये। भागना सट्टा मल कर उसको घनेसे छूिका विष दूर हो जाता पदार्थ तथा घर्षणार्थ काली मिर्ज देनी चाहिये । जिम है। नरमूत्रसे इंकस्थानको धेो देनेसे या उसी पर दपिके लक्षण अधिक दिवाई दे, उसी दोपको गोपथ | पेशाय कर मेनेसे पद शीघ्र भाराम होता है। उसको द्वारा विपरीत झिया करनी चाहिपे । यिशक्त रोगोफे । जलन या दर्द दूर हो जाता है। यद वा बहुत फायदा. मोजनके लिये शालि, परिक, कोदो गौर कगनीफे मदद। चायलका मात देना चाहिये तथा के मोर दस्त द्वारा विषविरहितके क्षक्षण। अधि : शोधन करना चाहिये । सिरोपका मूल, छाल, विपपीड़ित व्यक्निके भारोग्यलाभ करने पर वातादि पत, पुष्प और पोजको एकल गोमूत धारा पोस कर लेप दोष नष्ट होता, धातुको सामायिक अवस्था आ जाती, करनेसे विष ज्ञात होता है। दुपोषियसे पीड़ित ! खानेमें चिकर और मलमूत्रका भो यथायथमापसे निक- व्यक्ति यदि स्निग्ध, के और दस्तावर घीज खाये, तो विष | लना जारी हो जाता है। इसके सिया रागोको वर्णप्रस. जाट दूर होता है । पिप्पलो, हिपतृण, जटामांसो, लेोध, | ग्नता ,इन्द्रियपटुता और मनकी प्रफुल्लता होती तथा इलायची स्वर्जिकाक्षार, मिर्ग, पाला, इलायची और यह क्रम क्रमसे चेष्टाक्षम होता है। मुपर्ण गैरिफ इनफे साथ मधु मिला कर पान करने. (भावप्रकाश विषाधिकार ) मे दुपोयिष विनष्ट होता है। सिया इसके चरक, सुश्रत मादि चिकित्सा-प्रथों जगम विषको चिकित्सा। में भी विपचिकित्साको कई प्रणालियां लिपिबद्ध हैं। . घी ४ मेर, कनका ' हरीतको (छोटी हरें) विषय बद जानेके भयते यहां ये नहीं दी गई। गोरोचना, फुट, माफन्दका पत्ता, मीलोत्पल, नलमूल, | पारिभाषिक विष। यतमूल, गरल, तुलमी, इन्द्रयक, मोठ, अनन्तमूल, फर्मपुराण में लिखा है, कि निरायिप हो फेवल गतमूली, सिंघाडा, लजालु और पाकेशर पेसब विप नहीं। परन्तु प्रदास्य गौर देवस्वको भी विप कहते ममभागसे मिला कर , मेर, दूध सोलह सेर हैं। सुतरां ये दो भी सर्वतोभायसे यत्न के साथ परि- यह घृत पाश कर ठंडा होने पर उसमें ४ र गधु| त्याग करने चाहिये। मिला है। माना अनुसार पान, अञ्जन, अभ्यङ्ग या ___ न वि विमित्याहुषास विशमुच्यते । - पस्तिप्रयोग (पिचकारो) से दुर्जय विष, गरदाय, देवसयापि यत्नेन सदा परिहरेत्ततः ॥" पोजयिष, तगाभ्यास, कपर, मांमसाद और अचे. . . (कूर्मपु० उपवि० १५ भ० ) तनता मष्ट होती है । इसके स्पर्शमात्रसे, सारा | नीतिशास्त्रकार चाणपपने भो कई विषयोंको विष विप विनष्ट गोर गरयत विकृतच; प्रकृतस्थ हो जाता कहा है। उनके मतसे दुरधीत विद्या, मजीर्ण अवस्था. है। इसका नाम मृत्युपाशच्छेदिधृत ।.. मे भोजन, दरिद्रकं बहुत परिजन, युद्धको युवती स्त्री, धतूरेको जड़ या गोठ पृक्षको जड़ या यांस रात्रिकालका भ्रमण, राजाको. अनुकूलता, अन्यासका Vol. XxI. 16