पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७३३

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विश्वामित्र ६४५ विश्वामित्रो होतासोजमदग्निर ध्वय्युर्वसिष्ठो ब्रह्मा- , ल ये विश्वामित्र दशरथसे मांग कर राम लक्ष्मण को ले ऽयास्य उद्गाता तहमा उपाकृताय नियोक्कारन विषिदुः। गये। उन्होंने रामके गुरुका कार्य किया था और रामको मार्कण्डेयपुराण में लिखा है, कि विद्यासिद्धिके लिये ले कर अयोध्या लौटे। जनकालयमें आ कर रामने विश्वामित्रने तपस्या भारम्भ की, विद्यायें ऋषिके योग- सीताका पाणिग्रहण किया। घलसे मावद्ध हो भयङ्कर चीत्कार करने लगी। इसी | महाभारत उद्योगपळ १०५-११८ अध्यायमें विश्वामित्र. समय हरिश्चन्द्र शिकार करनेके लिये वनमें घूम रहे थे। | की प्राह्मणत्वप्राप्तिको बात दूसरी तरहसे लिखी है। अचानक रोझएठ-से रोदनध्वनि सुन कर वे वहां उक्त प्रन्यको पढ़नेसे मालूम होता है, कि धर्मराजने पहुंचे। इससे विश्वामित्रकी तपस्या भङ्ग हो गई। विश्वामित्र के योगवलसे सन्तुष्ट हो कर उनका ब्राह्मणत्व • उघर विद्यायें भो भाग गई । इस पर विश्वामित्रको स्वीकार किया था। राजा पर बड़ा फोध हुआ। फिर युधिष्ठिरके प्रश्न करने पर पितामह भीष्मदेवने • विश्वामित्रने राजा हरिश्चन्द्रसे कहा, "तुमने राजसूय | अनुशासनपर्नमें कहा था, महर्षि चोकने ही विश्वा. यज्ञ किया है। मैं ग्राहाण हूं, मुझ दक्षिणा दो।" मित्रफे अन्तरमें ब्रह्मवीज निषिक्त किया था। उत्तरमें राजाने कहा, "मेरी स्त्री, देह, पुत्र, जीवन, युधिष्ठिरने भीष्मपितामहसे पूछा, "देहान्तरमनासाद्य राज्य, धन, इनमे आप जो चाहे, ले सकते हैं और कय स मझग्योऽभवत्" अर्थात् क्या विश्वामित्रने उसी मैं देने पर तय्यार हूं।" उस समय विश्वामित्रने राजा- देहसे या दूरसे ब्राह्मत्वलाभ किया था? इस पर उन्होंने का राजस्व, धनविभव सभी ले लिया। पे सब लेने | उत्सरमें कहा था- पर इस दानको दक्षिणा विश्वामित्रने राजासे मांगी। "ऋषेः प्रसादात् राजेन्द्र ब्रह्मर्षि ब्रहावादिनम् । उनके पास अय क्या था, ये इस दक्षिणा अपनेको। ततो माझयता यातो विश्वमित्रो महातपाः। येधने पर बाध्य हुए। विश्वामित्रके चक्रमे पड़ कर क्षत्रियः सोऽप्यय तथा ब्रह्मवंशस्य कारकः ।।" नाना कटोको सहते हुए अन्तमें श्मशानमें अपनी | इसी यातको प्रतिध्यनि निम्नोक्त मनुटोकामे कुल कने पत्नी और पुत्र के साथ मिले । राजा हरिश्चन्द्रने अभिव्यक्त किया है। इस तरह भीषण जीवन परीक्षा उत्तीर्ण हो देवों मनुसंहिताफे ७४२ श्लोकमें विश्वामित्रको ब्राह्मण्य और विश्वामित्रके माशोर्यादसे स्वर्ग लाम किया। प्राप्तिका उल्लेख है । उक्त श्लोकके भाष्यमें कुल्लूकने ( माकपडेयपु०७६ और देवीमागवत १२-२७ अ०) लिखा है- ____हरिमन्द्र शब्दमें विस्तृत विवरण देखो। । 'गाधिपुत्रो विश्वामित्रस्य क्षत्रियः सन् ते नैवदेहेन इस यज्ञमें विश्वामित्रने राजा हरिश्चन्द्रको नस्तानायुद ब्राहाण्यं प्राप्तवान् । राज्यलाभावसरे ग्राह्मण्यप्राप्तिर कर दिया था, पुराणोंमें उसका पूरा पुरा उल्लेख है। प्रस्तुताऽपि विनयोत्कर्षाधमुका । ईदृशोऽयं शास्त्रानु- इस प्रसङ्गमे वसिष्ठ और विश्वामिलने परस्परको अभि. छाननिषिद्धवर्जनकविनयोदयेन क्षत्रियोऽपि दुर्लभं ग्रामण्यं शाप प्रदान किया गौर चे उसके अनुसार दोनों ही लेमे॥' (मनु ४२ टीका) पक्षीका गाकार धारण कर घोरतर युद्ध करने में प्रवृत्त क्संहिताके मण्डलके मन्त्र ब्रह्मर्षि वसिष्ठ हुए। ब्रह्माने मध्यस्थ हो कर उनका झगडा मिटाया। द्वारा इष्ट हैं। ये राजा सुदास और उनके घंशधर था और उनका पूर्वाकार प्रदानपूर्वक दोनों में मेल | सौदास या कल्मापपादके पुरोहित थे। ७।१८।२२ २५ करा दिया था। .. मन्त्रों में उन्होंने सुदास राजाफे यशको दान स्तुति की । .. भगवान् रामचन्द्र के साथ विश्वामित्रक सम्बन्धक है। इन्हीं सुदासके यज्ञमें यसिष्ठ और विश्वामित्र ऋषि- पारेमें रामायणमे बहुतेरा वाते लिखी हैं। रायण और का जो विरोध हुआ था, उसका विवरण ३ मण्डलके उनके अधीनस्थ राक्षसों के उत्पातोसे ब्राह्मणों की रक्षाफे ' मन्त्रसे भी कुछ झलकता है। ..... Vol. xxl 162