पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- . वातकर्मन्-बातचक्र यातकर्मन (सं० -क्लो०) यातस्य कर्म मरुकिया,। यातगामिन् ( स० पु.) पातन घायु धा सह गच्छतोति पईन, पादना। . गम-fणांनी पक्षा। वातकलाकल (सं० पु०) घायुका हिल्लोल। वातगुल्ल (सपु.) १ वातुल, पागल । पातेन जाती याताकन् (.सं०.नि.) वातोऽतिशयितोऽस्त्यस्येति या|| गुल्मः। २एक प्रकारका गुलमरोग जो पातफे प्रकोपस यातातिसाराभ्यां कुकच । पा ॥२२९.) इति इनि कुक्च होता है । चैद्यक अनुसार अधिक भोजन करने, कमा .. वातरोगयुक्त, जिम वातरोग हुभा हो, जो वातरोगसे | 'अन्न खान, बलवानसे लड़ने, मलमूत्र-रोकने या अधिक पोड़ित हो....: . . . . विरेचनादि लेने तथा उपवास करनेसे यह रोग होता है। घातकी (सं० स्त्री०) शेकालिकापृक्ष, नोल ,सिंधुयारफा इसकं लक्षण-यातगुल्म कभी छोटा और कभी-बढ़ा पौधा. .... ...... . होता है, जे.नाभि, यस्ति या पार्धादिमें इधरसे उधर रेंगता. यातकुण्डलिका (सं० स्त्रो०) वातेन कुण्डलिफा | मूत्राघात- साजान पड़ता है। इस रोगमें भल और अपानवायु रूक गेगभेद, एक प्रकारका, मूत्ररोग। इसमें वायुः कुएडला- | जातो हैं जिससे गलदोष और मुखशोष उत्पन्न होता है। कार हो.करपेट में घूमता रहता है,..रोगोको-पेशाय | जिससे यह रोग होता है, उसका शरीर सावला, त्रा करनेमें पीड़ा होतो है और वूद बूद करके पेशाब उतरताः लाल हो जाता है। कभी कभा वही पीड़ा होता है। है।'.. मूत्रच्छका रोग यदि मनुष्य फुपथ्य करकं रूखा। यह पीड़ा प्रायः भोजन पचनेके बाद खाली पेट होने पस्तुए खाता है, तो यह उपद्रव होता है । मूत्राघात देखा। पर घट जाता है । यह रुक्षद्रव्य, कपाय, तिक और कटरस पातकुम्म (संपु०.). यातस्य कुम्भदेवः । गजकुम्मका युक्त द्रव्यका सेवन करनेसे भी साधारणतः परिवर्तित ' अधोभाग : .. .. . . . . होता है। पातफेतु (सं०-पु.).चातस्य फेतुरियाधूल, गर्द। . इसको चिकित्सा:-पातगुल्ममें दस्त लाने के लिये पातलि (सं० सी०.). वात-सुखे भाये घन, घातेन सुखेन । 'एरंडका तेल या 'दूधर्फ -साथ हरोतको पोना अधया. फैलियंत्र । १. कलालाप, सुन्दर भाला १२ पिड गदन्त स्निग्ध स्वेद देना होगा। स्यजिकाक्षार २ माशे, कुट शत; उपपतिके दांतों का क्षत। . . . . २ माशे तथा केतको जराको क्षार ४ माशे इन सोका.. पातकोपन (सं० त्रि.) चातस्य : कोपनः। यातकोपक, रेडी तेल के साथ पीनेसे.यातजन्य गुल्म शोघ्र ही प्रश- घायुयर्द्धक, जिससे वायु कुपित होती है।. . "मित होता है। इस रोगोको तित्ति, मोर, मुर्गा, गुला, यातपय (सं०.पु.) पातकिके गोत्र में उत्पन्न पुरुष। । और वत्तक चिड़ियांक मासका शोरबा- तथा घी मोर ... . .. (पा ११५१). साठो चायलका भात खानेक. लिये देना होगा। यानशोम ( सं०.पु.) वातेन क्षमितः । वायु द्वारा भालो (भायम ) गुमरोग देखा। डितः।. वातगोपा (सं०नि०) वायु द्वारा रक्षित। वातखुट्टाः सं०.१०) रोगविशप । पर्याय-धात्या, पिच्छिल- यातन (सं०नि०) वातं दन्ति इन-दक ।१ पातनाशक, ' स्फोट, यामा, यातशोणित, यातहा। . . पातरोग, उपकारक । (पु०)२ घातज्यरमें.. मधुराम्ल ही पागजांकुश. (सं०.पु.). यातव्याधि-रोगाधिकारमे .एक. लपण-द्रष्य । ( सुश्रुत सूत्र० ४३ म०). प्रकारको रसीपध। .:: .... .. ...। . घातको (स० स्त्री०) १. शालपण । २ अभ्यगन्धा, मस.. घातगएह (सं० पु) मानेत गएडः। -पातज गलगण्डरोग। गंध। ३शिगूडो क्षपा (राजनि.)... . इसमें गलेकी नसें.मालो या लाल और कड़ी हो जाती है बातचक्र (स० क्लो०) १ ज्योतिषका एक योग। हरसं-.. और पहुत दिन में पाती हैं। हितामें लिजा है, कि पादा पूर्णिमा दिन जयं सूर्यदेव। .. यातगएडा (सं०'स्त्रा०) एक नदोका नाम। सास्त होते हैं, तय मांकाशसे पूर्वी पायुपूर्व समुद्रको, .. ...:. . . (राजवर... १६६५) तरंगोको कपात कर घूमतां घूमती चन्द्रसूर्यको किरणको