पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७२८

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विश्वामित्र महर्षि विश्वामित्रने क्षत्रिय हो कर जिस तरह | नाना प्रकार के उत्तम खाकी सृष्टि की। ये सब वाद्यः । पित्य गौर ब्राह्मणत्व लाभ किया था, उसका विषय | वस्तुएं चांदी के पात्र में सबके सामने रखी गई । ' इससे रामायणमें ऐसा लिखा है,-कुश नामक एक सार्वभौम विश्वामित्र तथा उनके सैनिक परम सन्तुए हुए। राजा थे, उनके पुल कुशनाम हुए। कुशनामके गाधि वसिष्ठके इस राजदुर्लम सत्कारसे प्रसन्न हो कर नामक एक पुत्र उत्पन्न हुए। ये बहुत विख्यात हुए । विश्वामित्रने उनसे कहा,-ब्रह्मण ! मैं आपसे 'अनुरोध विश्वामित्र उन्हीं के पुत्र हैं । वे शीर्य और वोर्टामें सय | करता हूं, भाप मेरे इस अनुरोधकी रक्षा करें। मैं आपको राजमों में अमथे और कई सहस्र वर्ष तक पृथ्वीका पालन | एक लाख गाय देता है, आप उन गायोंके परिवर्तनमें करते रहे। मुझे शवलाको प्रदान करें। शवला रत्नस्वरूपा है, राजा एक बार विश्वामित्र बहुत सैन्य सामन्त ले कर पृथ्वी भी रनके अधिकारी हैं । अतएव न्यायानुसार यह गाय पर्याटन करनेमें प्रवृत्त हुए और घूमते घामते बहुतेरे नगर, | मुझे हो प्राप्त होनी चाहिये । अतः आप मुझे इसे प्रदान - प्राम, राष्ट्र, सरित्, महागिरि आदि भ्रमण कर कालकमसे करें। वसिष्ठाश्रम पहुंचे । यह आश्रम दूसरे ब्रह्मलोकके विश्वामित्रकी बात सुन कर पसिष्ठने कहा, 'राजन् !' समान गौर इस आश्रमके समी लोग समगुणान्यित थे। एक अरब गाय अधया चांयीका पहाड देने पर भी । मानो तपस्या मूर्तिमती हो कर इस माश्रमके चारों मोर | शवलाको मैं दे न सकूगा । क्योंकि यह शवला विराज रही थी । विश्वामित्र इस माशमको देख कर बड़ें। मात्मवान व्यक्तिको कीत्ति की तरह 'मेरी सहचरी है। प्रसन्न हुए और वसिष्ठके समीप जा कर प्रणाम किया। अतः इसका परित्याग करना मेरे लिये उचित नहीं। यसिठने भी उनको यथायोग्य सम्वर्द्धना फर कहा, विशेषतः इथ्य, कव्य, जोधन, अग्निहोत्र, बलि, होम और' 'राजन् ! मैं चाहता है, कि आपका इन सैन्यसामन्तोंके विविध विद्या मेरे जो कुछ है, इस शवलाके अधीन हो साथ यथाविधि अतिथि सत्कार करू'। भाप स्वीकार हैं और तो पया, मैं शपथ खा कर कहता है कि यह प्रायला करें, क्योंकि भाप अतिथिश्रेष्ठ हैं, इसलिये आप पूज- हो मेरी सर्वस्व है और सबैश्वर्याको निदान है। अतएव नोय हैं। राजन् ! मैं किसी तरह तुम्हें शवला प्रदान न वसिष्ठको यात सुन कर विश्वामित्रने कहा,भग. करूंगा।' वन ! आपके सत्कारानुकूल वाफ्यसे हो मैं विशेष सन्तुष्ट विश्वामितने जब देखा, कि यसिष्ठने किसी तरह शवला. हो गया। आप प्रसन्न हों, अब मैं जाऊ। विश्वा. को नहीं दिया, तव यलपूर्वक नौकरोंसे पकड़वाना चाहा । । मित्रके इस प्रकार कहने पर यसिप्ठजोने फिर वारंवार इस समय शवलाने अत्यन्त शोक सन्तप्त हृदयसै घसिष्ठ- निमन्त्रण स्वीकार कर लेनेका अनुरोध किया। अन्तमें | के पास जा कर कहा-भगवन् ! मैंने कौन-सा अपराध विश्वामिलने उनके विशेष याप्रद करने पर 'तथास्तु' कह किया है, कि थाप मुझं त्याग रहे हैं। आप अत्यन्त निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। भक्तिपरायण समझ कर भी परित्याग करने पर उद्यत घसिष्ठने तब राजाके प्रति प्रसन्न हो चित्रवर्णा होम- हुए१ वसिष्ठने शवलाकी यह बात सुन कर दुखितांकन्या- धेनु शवलाको सम्योधन कर कहा,-शंवले ! राजा विश्वा- की तरह शोक सन्तप्तहदया शवलासे कहा,-शयले ! मिल,ससैन्य मेरे अतिथि हुए हैं। तुम आज मेरे लिये तुमने मेरा कुछ भी अपराध नहीं किया और न 'मैं उनके सैन्य छः तरहके रस में जो जिस रसके इच्छुक | तुमको त्याग हो रहा राजा बलवान है, वह बलपूर्वक । हों, उनके लिये उसी रसकी सृष्टि करो। तुमको ले जाना चाहता है।' ' शयलाने पशिष्ठके भाशानुसार सबके इच्छानुरूप शबलाने वसिष्ठको वात सुन कर कहा,-ब्रह्मन् ! कमनीय भोजन सामग्री तय्यार कर दो। उसने बहुतेरे मनीषियों का कहना है, कि ब्राहाणसे क्षत्रियोंकी शक्ति ईख, मधु, लाज, मौरेय मद्य तथा अन्यान्य उत्तम मद्य और कम है। ब्राह्मण ही बलवान हैं। ब्राह्मणोंका दिव्य'