पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७२७

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.. विश्वामित्र ६३६ पोरकुत्सीके गर्भसे जन्मग्रहण किया । इस पुत्रका | वैसा गुणशाली हो। देवीके वाक्य पर प्रसन्न हो कर नाम गाधि हुमा। गाधिके सत्यवती नामको एक परम | ऋपिने कहा मेरे लिये पुत्र और पौनमें कोई विशे. रूपवती कन्या हुई। गाधिने इस सुशीला कन्याको | पता नहीं । अतः जो तुमने कहा है, वही होगा। पीछे भृगुपुत्र ऋचोकको सम्प्रदान किया। समय आने पर उस गर्भसे जमदग्निका जन्म हुआ। ऋचीकने भााके प्रति प्रसन्न हो कर अपने और इन जमदग्निके पुत्र ही क्षत्रियकुलान्तकारी परशुराम है। महाराज गाधिके पुत्रको कामनासे चरु प्रस्तुत किया। इसके बाद सत्ययती महानदी रूपमें परिणत हो कर और अपनी पत्नी सत्यवतीको सम्बोधन कर जगत्में कौशिको नामसे प्रसिद्ध हुई। कहा-कल्याणि ! ये दो भाग चर मैंने तय्यार किये हैं। | | इधर कुशिकनन्दन गाधिके विश्वामित्र नामके एक इसमें यह चर तुम भोजन करो, दूसरा चरु अपनो | पुत्र हुआ । विश्वामित्र तपस्या, विद्या और शमगुण माताको दे देना। इस घरको भोजन करनेसे तुम्हारो | द्वारा ब्रह्मर्षि को समता लाभ कर अन्तमें सप्तर्मियोंमें माताको क्षत्रियप्रधान एक तेजस्वी पुत्र होगा। वह गिने गये। विश्वामित्रका और एक नाम विश्वरथ है। पुत सारे मरिमण्डलको पराभूत करने में समर्थ होगा। महर्षि विश्वामित्र के देवरात, देवधवा, फति, हिरण्याक्ष, तुम्हारे गर्भमें भी विजश्रेष्ठ धैर्यशालों पक महातपाः | सांकृति, गालव, मुद्गल, मधुच्छन्दा, जय, देवल, अष्टक, पुत्र जन्मग्रहण करेगा। कच्छप, हारीत आदि कई पुत्र उत्पन्न हुए । इन पुत्रों द्वारा भृगुनन्दन ऋचीक माऱ्यासे यह बात कह कर नित्य- हो महात्मा कुशिकका वंश विशेषरूपसे विख्यात हुआ। तपस्यार्थ भरपथमें चले गये। इसी समयमें गाधि भी सिवा इनके विश्वामित्रके नारायण और नर नामके तोर्गदर्शन प्रसङ्ग में कन्याको देखने के लिये ऋचीकाश्रममें | दो और पुत्र थे। इस वंशमें बहुतेरे ऋषियोंने जन्मप्रहण उपस्थित हुए। इधर सत्यवतीने पिपदत्त चरुको ले किये थे। पुरुषंशीय महात्माओं के साथ कुशिक वंशीय यत्नपूर्वक माता हायमें दिया। दैवयोगसे माता- ब्रह्मर्षियोका वैवाहिक सम्बन्ध हुआ था। इमलिपे दोनों ने चर भोजन करने में गड़बड़ी कर दी। पुलोका चरु स्वयं वंशसे ब्राह्मणेकेि साथ क्षत्रियोंका सम्बन्ध चिरप्रसिद्ध भोजन कर लिया और अपना वम पुरोको दे दिया। हो रहा है। इसके बाद सत्पयतीने क्षत्रियान्तकर गर्भधारण विश्वामित्र के पुत्रों में शुनाशेफ सबमें पड़े हैं। ये शुना. किया। ऋचीकने योगवलसे यह बात जान लो और शेफ भार्गव होने पर भी कौशिकस्य प्राप्त हुए थे। ये राजा पत्नीसे कहा, भद्रे! चरुका विपर्याय हुमा है। तुम | हरिश्चन्द्रके यक्ष पशुरूपसे नियोजित हुए थे। किन्तु अपनी माता द्वारा वञ्चिता हुई हो। तुम्हारे गमें अति देवताओं ने फिर विश्वामित्रके हाथ अर्पण किया। दुन्ति दिनप्रति एक पुत्र पैदा होगा। और जो इसीलिये इनका नाम देवरात हुआ। (हरि० २७ म०) तुम्हारा भाई तुम्हारी माताके गर्ममें जन्म लेगा, यह कालिकापुराणमें महर्षि विश्वामित्रका उत्पत्ति विवरण ग्रामपरायण तपस्यानुरक होगा। क्योंकि उसमें मैंने समस्त प्रायः ऐसा हो वर्णित हुआ है। कुछ विशेषता है तो यह घेद निहित किया है। सत्यवतीने यह बात सुन कर | है, कि महर्षि भृगुने पुत्र-वधूको वर ग्रहण करने के लिये नितान्त व्यथित हो कर भनेक अनुनय विनय कर स्वामी- कहा। इस पर स्तुपा सत्यवतोने घेदवेदान्तपारग पुनकी से कहा, 'भगवन् ! आप यदि इच्छा करें, तो तिलोकको प्रार्शना की। इस पर महर्षिने निश्वास परित्याग किया। सृष्टि कर सकते हैं, आप ऐसा उपाय करें जिससे मेरे इस निश्वाससे वायुके साथ हो तरहके चर उत्पन्न गर्भसे पैसा दुर्दान्त सन्तान पैदा न हो। इस पर ऋचीक- 'हुए । इन चराओंमे सत्यवतोको एक और दूसरा उसकी ने कहा, कि ऐसा असम्भव है। यह सुन कर सत्ययतो. | माताको ले लेनकी बात कही। पोछे दैवक्रमसे चरक ने कहा, 'यदि भाप अन्यथा न करना चाहे तो इतना | विपर्याय होने से पुत्रोंमे भो विपर्णय हुमा । अवश्य कोजिये, कि मेरा पुन न हो कर मेरा पौत हो' (मालिकापु. ८४०)