पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७०७

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विश्वत-विश्वदेवता ६५६ भेद । ( कात्यायनी २२०८) ३ विभेद । दाभेद । विश्वतोयोर्या (Ei० नि०) १ स क्षम, सभी विपर्यो- , (शतपथमा०६।३।३।१६) ५ सामभेद । में पारदशों। २ सभी कार्यों मे शक्तिसम्पन्न । विश्वतनु (स.पु०) विश्वं तनुर्यस्य । भगवान् विष्णु, विश्वन (io त्रि०) विश्व सप्तभ्यः । सर्मात्र, समस्त यह विश्व ही जिनका शरीर है। | विश्वौ। (ऋक १०६१।२५) विश्वतश्चक्षस् (स.नि.) सर्वतोप्याप्तवा। जिसके विश्वनास ( पु.) सूर्य की मप्ताश्मिभेद । मेल चारों ओर परिष्यात हे अर्थात् जो सर्वद्रष्टा हो। विश्वया (० अथ०) विश्व प्रकाराय थाल (प्रकारवचने (ऋक ११८९६३) थान् । पा ५।३३२३ ) सर्वथा सब प्रकारसे, समी तरहसे । विश्वतस ( स० अश्य ) विश्व सप्तम्यर्षे तसिल । विश्वदंष्ट्र (सं० पु०) अमुरमेह । ( भारत शान्तिपर्य) • १ सर्वतः, चारों ओर । २ सभी प्रकारका, तरह तरहका विश्वदर्शत (सं०नि०) सीके दर्शनीय। (भृक २२५१८) "सर्वतो भयाच्च कानीयदमनादिना रक्षिता।" विश्वदानि (सं० पु०) जनसाधारणका व्यवहारोपपोगो (खामो) | गृह या स्थान । (तेत्ति० मा० ३।३।६।१०) विश्यतस्पाणि (स' नि.) परमेश्वर, सर्वत्र पाणियुक्त । विश्वदानीम् (सं० अव्य० ) विश्यकाल, सर्वदा, सब भारों ओर जिसके हाए हों। समय। विश्वतस्पाद ( स० वि०) परमेश्वर, चारों ओर पाद | विश्वदाय ( स० नि०) सर्व दहनकारी, विश्वाग्नि । युक। (तैशि०स'०३:३८२) विश्वतस्पृथ (स० लि.) विश्वतस्पाय, परमेश्वर। विश्वदायन (म.लि. ) सफलदाता। (मय १३।६।२२) (अथर्व ४।३२१६ भाष्य) यिश्चतुर् ( स० वि०) सर्वशत्रुहि साकारी । विश्वदाव्य (सनि० ) विश्वदायसम्बन्धी, दावाग्नि । (क ११४८१६) (मपन्य ३२३ भाष्य ) विश्वतुरापत् ( स० वि०) विश्ववर देखो। विश्वदासा (मस्त्री० ) अग्निकी सातों जिद्धाका एक विश्यतुलसी (स० स्रो०) तुलसीक्षभेद, वनतुलमी, | नाम। ' धबुई तुलसी! गुण-वीज शीतल ; फाथ मेह, रक्ता- | विभ्वदश (म0 नि०) विश्व इस दृश्यनेऽसौ । विश्वष्टा, तिमार और उदरामयनाशक ; पत्तेका रस कृमिघ्न और जो सारा संसार देखते हैं। ( मागवत ४१२०३२) सर्पदंशम हितकर । (Ocimum sanctum)| विश्वदृष्ट ( स० त्रि०) जिन्होंने समस्त विश्वका दर्शन विश्वतृप्त ( स० वि०) विश्वन तृप्तः। विष्णु, परमेश्वर। 1 किया है। (१९९५) विश्वतूर्सि (० ली.) ममस्त विषयगतवाफ्य। विश्वदेव (संपु०) विशदीयतीति दिव-अच् । १ गण (ऋक २३८) देवताविशेष। नान्दीमुग्वश्राद्ध और पार्वणश्राद्ध विश्वतोधार (स.नि) विश्वतश्चतुहिक्ष धारा यस्य । | इनकी पूजा करनी होती है। (नि.) २ विश्वका चारों ओर धारायुक्त, जगत्का धारपिता। देवताम्वरूप महापुरुष। ' विश्वतोधी (म०नि०) समस्त जगतका धारक। विश्वदेव-१ मधुसूदन सरस्वतीके परम गुरु। इनका विश्वतीयाहु (सं० पु०) विश्वतोवाहुर्यस्य । परमेश्वर, विष्णु। बनाया हुमा विश्वदेवदीक्षितीय नामक एक अन्य विश्वतोमुख (सं० पु० ) विश्वतो मुखं यस्य । परमेश्वर ।। मिलता है। २ विजयनगरके एक राजा।। विश्वतोय (सं त्रि०) विश्वव्याप्त जलराशि। विद्यानगर देखो। विश्वतोया ( स० स्त्री० ) विश्वप्रियः तोयो जलं यस्याः। विध्यदेवा (स. खो०) १ खगवेधुका, गोपयली । गङ्ग, विश्वानियतोया । इसका जल विश्वके सभी । २ नागवला, गंगरन । ३ लाल दंडोत्पल। (रत्नमाला) लोगोंका प्रिय है, इसीसे इसको विश्वतोया कहते हैं। 'विश्वदेवता ( स० स्त्रो०) विश्वदेवा । विश्वदेवा देसो। 21