पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६९५

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विशुद्धि-विशेष ६०७ है। लमय, दन्तमय और अस्थिमय पाल सक्षण द्वारा | करने, दुःस्वप्न देखने, कण्ठसे रक निकलने, घमन, रेमन, शुद्ध होता है और दायमय तथा मृन्मय पान परित्यज्य हजामत (क्षौरका) बनाने, शवस्पर्श, रजस्यलाम्पर्श, हैं अर्थात् इनको विशुद्धि नहीं होती। किसी तरहसे चण्डालस्पर्श, धूपोत्सगीय यूपस्पर्श, भशामिग्न दूषित होनेसे पान' फेंक देने चाहिये। सुवर्णमय, पञ्चनम्न शवस्पर्श, घसा और मेधादियुक्त अस्थिस्पर्श रजतमय, शसमय, मणिमय और प्रस्तरमय पान तथा करनेके बाद स्नान करनेसे विशुद्धि प्राप्त होती है। पहने चमस इन सब पालो निलेप होने पर गर्थात् उनमें हुए पत्र के साथ स्नान करने पर विशुद्ध होती है । वस्त्र मल न लगे रहने पर जल द्वारा शुद्र होते है। धाम्प, त्याग कर स्नान करने से विशुद्धि नहीं होती। रजवला चम रस्मी; तन्तुनिर्मित वस्त्र, अनादि. चैदल, सूत्र, नारी चौथे दिन स्नान करनेसे विशुद्ध होती है । कपास और यन-ये सब द्रा अधिक होनेसे प्रोझण द्वारा क्षरण (डोंक), निद्रा, अध्ययनारम्म, भोजनारम्भ, पान शुद्ध होते हैं । शाक, मूर कर और पुष्प, सृण मौर काष्ठ! स्नान, निष्ठोधन, वस्त्रपरिधान, मध्यसश्चरण, मूत्रत्याग, प्रभृति भी इसी नियमसे विशुद्ध होते हैं। ये द्रष्य यदि कम पञ्चनलके अस्नेह अस्पिस्पर्श, चण्डाल यामेच्छोंके साथ हो, तो इनको धो डालनेसे यह शद्ध हो जाते हैं। काष्ठ- सम्भाषण इन सब कामों के करने के वाद आचमन करना निर्मित पात्र' तक्षण द्वारा, पीतल, ताप, रांगे सीसके| वाहिपे। इससे ही लोग विशुद्ध होते हैं। पात खटाई द्वारा साफ होते हैं। कांसे और लोहे के (विष्य ० १२ म०) शौच शब्द देखो। पात्र भस्म द्वारा साफ होते हैं। देवप्रतिमा किमी / विशुद्धिक्षक (सक्लो०) धारणीभेद । कारणवश यदि दूषित हो, तो जिस चीज द्वारा यह विशुद्ध भ्वर (सला० ) तन्त्रभेद । । निर्मित हुई हो, उस द्रष्य की शुद्रिके नियमके अनुसार विशुष्क ( स० वि०) विशंपेण शुरु। १विशेषरूपसे उसे विशुद्धि कर पुनः प्रतिष्ठा करनेसे उसकी शुद्धि शुष्क, बहुस सूखा । २ नीरस । ३ ग्लान । होती है। विभूविका (स' स्त्री०) विसूनिका रोग। विठू चिका देखो। ___ काँधेय वस्त्र, कम्बल या पशमीने कपड़े राख मिट्टीके | यिशून्य (स'० वि ) विशेषरूपसे शून्य । संयोगसे, पहाड़ो करेक रोप से बने कम्वल भरिट द्वारा, | विशूल ( स० वि०) १ शूटनाशक । २ अखपियर्शित । पलालतन्तु निर्मित शाह विल्वफल द्वारा, क्षोमवन विश्ल ( स० त्रि०) चिंगता शृङ्खला यस्य । १ वा. गैरसर ( सफेद सरसों ) द्वारा, मृगलोमजात राष्ट्र- रहित, जिसमें शृङ्खला न हो या न रह गई हो । २ माध्य, यादि यस पायीज द्वारा विशुद्ध होते हैं। जो किसी प्रगर दवाया या रोका न जा सके। ३ __ मृत्याक्ति मानके पान्धयों के साथ मिल कर अधः। दुन्ति । ४ अंबद्ध, शृङ्कलशून्य। पातकारी याति स्नान करनेसे पिशुद्ध होते हैं। हहो । विशृङ्खला (स' स्त्री०) विशार देखो। एकत करनेसे पहले जो वस्त्र पहन कर हड़ी एकत्र को | विश्टङ्ग (स० त्रि०) जिस शृङ्ग न हो, शृङ्गारहित । जाय, उस घनके साथ स्नान करनेसे वह व्यक्ति | विशेष (सपु०) वि.शिप-या। प्रभेद, धैलक्षण्य । २ विशुद्ध होता है। द्विज शूद्रशयके साथ अनुगमन करने प्रकार, किस्म । (जटाधर) ३ नियम, कायदा। ४ धैचित । । पर नदी में जा कर गोता लगा कर तीन चार अघमर्षण व्यक्ति । ६सार। मकार । ८ तारतम्य, न्यूनाधिषय। जप करने के बाद ऊपर उठ कर भयोत्तर सहस्र गायत्री आधिषय । १० अवयव । १९ द्रष्टभ्यद्रव्य । १२ तिलक। जब करनेसे और द्विजके शवके साथ अनुगमन करने पर (हेम) १३ कणादोक्त 'सप्त पदार्थों के अन्तर्गत पदार्थ स्नान कर अष्टोत्तर शत गायत्री जप करनेसे विशुद्ध होते | विशेष। . . . हैं। शूद्र शयानुगमन करे, तो केवल स्नानसं विशुद्ध ! द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और हो सकता है। पिताधूम सेवन करनेसे सबंधों को | मभाव यही सात पदार्य है। विशेष पदार्थों को आलोचना • स्नान करना चाहिये, तभी घे विशुद्ध होंगे। मैथुन रहनेसे ही कणादकृत दर्शनका नाम वैशेषिक है।