पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/६९४

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१०६ विशुद्धिः । कीट आदि द्वारा अशुद्ध हो गये हों. 'तो प्रादेशप्रमाण | तरह मांज लेनेसे शुद्ध हो जाता है। पहले तो कुशपत्र द्वारा हिला देने पर विशुद्ध हो जाते हैं ।.शय्यादि । अदृष्ट अर्थात जिस द्रष्यका उपधात या · संम्पण दोष की तरह सूत संयुक्त संहतद्रव्य जलके छोटेसे और काष्ठ- मालूम नहीं होता, दुसरे जो जल द्वारा प्रज्ञालित हुआ। मय वा अत्यन्त उपहत हो जाने पर ऊपरसे उसको है और तीसरा शिष्ट व्यक्ति जिसे पवित्र कहते हैं, यह । तरास देनेसे शुद्ध हो जाते हैं। यज्ञीय चमस अर्थात् | पिशुद्ध जानना होगा। जलपालग्रह (सोमलताका पात्र ) और अन्यान्य पालो. ___ज्ञान, तपस्या, अग्नि, माहार, मिही, मल, जल, उपा. को पहले हाथसे मांज कर पीछे धेो देने पर विशुद्ध हो अन गर्थात् गोमय आदि अनुलेपन, वायु, कर्म, सूर्य और ' जाते हैं। चरस्थाली, स्त्रक, सब, स्पय, (खड़ गाकार काल पे ही सब देहधारियों की विशुद्धिके कारण है। देह काष्ठ), शूर्प, शकट, मूषल, 'ओखल आदि यक्षीय द्या ! मलादि शुद्धिकर समुदाय पदार्थों के भीतर अर्थशुद्धि गर्थात् घृनतेल आदिसे स्नेहाल कर गर्म जलसे धो डालने पर अर्थार्जन विषयमें अन्याय या स्वधर्म परित्याग न करनेको । शुद्ध हो जाते हैं। शास्त्रकारोंने परम विशुद्धि कह कर निर्देश किया है। धान्य भाण्डार या वन-भाण्डार किसी तरह अशुद्ध जो अर्थार्जन विषय विशुद्ध हैं, घे ही यथार्थ में विशुद्ध हो जाने पर जलका छोटा मारनेसे उनको शुद्धि हो जाती नामसे अभिहित होने योग्य हैं। मिट्टी या जल द्वारा हैं। किन्तु यदि वे मला मात्रा में हों, तो उनको जलसे देह शुद्ध करनेको यथार्थ शुद्धि नहीं कहो जाती। . धे। देनेसे ही शुद्ध होगा। पादुका (जुते ) आदि स्पृश्य | · · विद्वान् व्यक्ति क्षमा द्वारा, अकार्यकारी दान द्वारा, पशुचर्म और येत वांसके बने आसन आदिकी शुद्धि 'प्रच्छन्न पापो जप द्वारा और वेदविद ब्राहाणगण तपस्या वस्खको तरह हो होगो । 'फिर शाक. मूल और फल ये द्वारा विशुद्धि लाभ करते हैं। शोधनाय वाह्य द्रव्य अर्थात् धान्य की तरह शुद्ध करने होंगे। कोषेय अर्थात् रेशमो यह देह मिट्टी और जल आदि द्वारा शुभ होता है । 'मल- कपडे, आयिक अर्थात् पशुलामनिर्मित कम्बल आदि क्षार पहा नदी नातयेगसे शुद्ध होती है ।" मनोदुष्या अर्थात् और मिट्टी द्वारा शुद्ध होते हैं। कुतप गर्थात् नेपाल देशका परपुरुषमें मैथुनसङ्कल्पके दोपमें दूषितमना रमणी कम्पल भादि नीमफलके चूर्णसे, अंशुपट्ट (वल्कलविशेषका रजस्वला होने पर शुद्ध होती है और त्याग द्वारा या वस्त्र ये के गूदेसे और क्षोम अर्थात् अतसो (तोसो) के प्रवज्या द्वारा द्विजोत्तम विशद्ध होते हैं। जलके द्वारा पौधे के छिलफेसे वने वस्त्र सफेद सरमोंके चूर्णसे विशुद्ध देहशु द्धि, सत्यसे मनको वृद्धि, विधा और नपल्याके होता है। तृग, रंधनकी लकड़ी, 'पलाल ये सब जलमे वलसे जीवात्मा शुद्ध होती है तथा ज्ञान द्वारा बुद्धिको छटा मारनेले साफ और विशुद्ध हो जाने हैं। मान | वृद्धि होती है। और गोमयादि लेपन द्वारा गृाशुद्धि और मृण्मयपान ____जातिका या, गैर 'जातिके किसी भी रथोके साथ पुनर पाक द्वारा विशुद्ध होते हैं। सन्मार्जन, गोमय | श्मशानमें जाने पर वस्त्र समेत स्नान करने तथा अग्नि . आदि द्वारा मिलेग्न, गोमूत्रादिसिञ्चन, उल्लेखन (छिछोर स्पश कर घृत भोजन करनेसे शुद्ध होता है। जो चीज कर फै कंगा ) और एक दिन रात गाझीरवास इन पांच बाजारमे ये नेके लिये फैलाई गई है, यह तरह सरहके प्रकारसे भूमिको शुद्धि होती हैं। . | आदमियों के छू जाने पर भी विशुद्ध है। ब्रह्मचारी ओ पक्षी द्वारा उच्छिष्ट, गों द्वारा माघात, साञ्चल मिशा लाभ करते हैं, वह परम पायन है। (मनु ५५०) या पैर द्वारा स्पृष्ट, भवात अर्थात् जिसके ऊपर थूक विष्णु संहितामें द्रव्यादिको शुद्धिका इस तरह। आदि पड़ा हो और जो वाल कीड़े, जू आदि द्वारा विधान है-. . . ... दूषित हुआ हो, ऐसा खाद्य द्रष्य मिट्टोके प्रक्षेपसे शुद्ध अत्यन्तोपहत सव धातुमान ही अग्नि प्रक्षित होने हो जाता है। . . . . . . ! | पर विशुद्ध होता है। मणिमय, प्रस्सरमय और शङ्क 'विष्ठा और मूत्र द्वारा-लित. पमें मिट्टोसे अच्छी | मय पाल ७ दिन भूमिमें निखातं होनेसे विशुद्ध होता ।