पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विराट 886 पुलिश स्टेगनसे ५ मोल दूर करतोया नदी के पश्चिम, एक मेला लगता है। पहले जिस समय यह स्थान तर पर अवस्थित है। निविद जगलोंसे ढहा था, उस समय यहां प्रति रवि. विराट के पश्चिम-दक्षिणसे होती हुई वगुड़ा जिलेके चारको बहुतसं यातो गो इक होते थे। इस समय क्षेतलाल या क्षेत्रनालाका सोमा भारम्भ होता है। उक | भो रविवार को हो अधिक यानिशका समागम होता है। विराट सरकार घोडाघाट और अलोग्राम परगने के पैशाख मासके रविवारको विराटको पुण्य भूमिमें हथि- भरतर्गत है। विराटसे कुछ दूर सरकार घोड़ाघाटक! पान ग्रहण करने से यक्षा पुण्य होता है, ऐसा हो लोगों प्राचीन जनादका भानावशवविध शुरू हा कर कमरा का विश्वास है। पश्चिम दक्षिण एक बहुत पिस्तुन स्थानमें घरोनान है। गुठा जिलेके शिवगंज पुलिश स्टेशन मास्तर्गत मुगल बादशाहको मालदाराम घाडाघाटमें फोजदारा तथा विराटके दक्षिण कीचक नामसे जा स्थान वर्तमान कचहरो थी। उस समय करतोया नदी विस्तीर्ण प्रवाह है, उसमें प्राचीन कोई यस्तु उल्लेखनाय नहीं है। एक शालिनी थी, इसलिये उसके तोर पर अनेक नगर स, वाई कोचफे नामसे प्रमिद्ध है। दिनाजपुर जिलेके भरत गये थे। मुगलोंके समय वनकोठोफे जमोदार इस गंत रानोशंकल पुलिस स्टेशन उत्तरगीगृह एवं पावना अञ्चल प्रधान जमोदार थे। मुशिंदकुलोके शासनकाल जिले के पुलिस स्टेशन रायगंजके अन्तर्गत नोमगाछी में भो यदनकोठोके जमोदारोंका प्रभाय फेल रहा था। नामक जनपद दक्षिण गोयइके नामसे जनसाधारणमें मुगल राजत्यकालमें भी करतोया गयोके निकटयत्तों प्रसिद्ध है। दिनाजपुर जिले भनेक योद्ध-कीतियां हैं। सभी जनपद समृद्धिशालो थे, ऐसा हो विश्वास होता, जो उत्तर-गोगृहफे नामसे कथित है, यह सम्भवतः परवी है। खटाय १०वीं शताब्दी में ढाका नगरोमें सूत्राको बौद्धराजाओंकी दूसरी कीर्ति है। उक्त नीमगाछो नामक राजधानी स्थापित होने के बाद घोड़ाघाटकी अपनतिका स्थानमें एक बहुत बड़ा जलाशय है । उसका नाम है सूत्रपात हुभा। इसके बाद करतोया नदीको धारा जयसागर । इस स्थानको मिट्टोके नांचे कमी कमी संकीर्ण हो जानेके कारण ये सब समृद्धशाली जनपद धीरे भट्टालिकादिका ध्व'सावशेष दहिगोचर होता है। एक धौर जंगल में परिणत हो गये। इस समय विराट नामक भग्न मन्दिरके द्वार पर कई एक बड़े बड़े पत्थर पड़े स्थानमे एक क्षमताशाली राजा या जमोदारका मासाद है। यह स्थान प्राचीन करतोया नदाफे किनारे था। था | यहाके सभी इष्टकस्तूपोंको देखने से अनायास ही इट इण्डिया कम्पनी प्रथम समयमै नोमगाछीका जगल इसका अनुमान होता है । नगरमें कई छोटे बड़े जलाशय अत्यन्त प्रसिद्ध था | इस स्थानके पास हो कर ही है। घगुड़ाके इतिहास लेखक ने इस स्थान निविड़ राजसाही जिलेका विख्यात चलन-विल आरम्भ होता भरण्यानो कह कर वर्णन किया है। किन्तु आश्चर्यका | है। यहां गो चरानेको सुविधा रहने पर भी महाभारत- विषय है, कि १९०७ ई. में इस विस्तीर्ण भूभाग अन्दर घर्णित विराटका समसामयिक स्थान मालूम नहीं अंगलका चिह भी नहीं रहा । इस समय यहां जलापनका पड़ता । परन्तु आदि मत्स्य या विराट के रिसो राजवंश. मी मभाव हो गया है, ऐसा कहने में भी कोई अत्युक्ति न घरने बहुत समय पदले यहां मा कर आधिपत्य स्थापन होगी। .१२८१ साल के प्रसिद्ध दुर्भिक्षके बाद क्रमशः | तर्धा उसके साथ साथ महाभारतीय आण्णायिका इस प्रदेशमें घुना, संघाल तथा गारी प्रभृति असभ्य | सन्निय करके इस स्थान के माहात्म्यको बढ़ानेको चेटा जातियोंने निवास करके जंगलको निर्मूल कर दिया है। को होगी। यहां मिट्टी खोदनेसे एक व्यक्तिको एक ३० य पहले जिस स्थानमें बाघका शिकार किया जाता पापाणमयी कालीमूर्ति और एक व्यनिको पीतलको दश था, इस समय उस स्थानमें मनुष्योंको घनी मावादो भुजामूत्ति प्राप्त हुई थी। इस स्थानके निकटवत्ती मधाई दूष्टिगोचर होती है। नगर नामक स्थानमें लक्ष्मणसेनका ताम्रशासन पाया यहाँ जंगलादि निम्ल हो जाने के कारण कई वर्षों से गया है। Pol. xxl 125 .