पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८४ विमानपोत-विपिश्रमाणित वाष्पके योगसे बनाया था। वह मविच्छेदगतियुक, । ' होता है, कि इतनी ऊंचाईसे विमान पर चढ़ भूतलस्थ घायुवत् कामगामी गौर नाना उपकरणयुक्त था। नाना स्थानोका दर्शन किस प्रकार सम्भव था १ चम केवल पौराणिक कथा हो नहीं, भारतफे ऐतिः । चक्षु द्वारा उतनी दूरसे देखना विलकुल असम्भय है। हासिक युगमे भो हम लोग नाफाशगामी विमानका | आज कल जिस प्रकार टेलीस्कोपकी सहायतासे सुन्दर प्रसङ्ग पाते हैं। बोधिसत्वागदानकल्पलतामें लिखा है, आकाशमण्डल के नाना स्थान दिखाई देते हैं, पूर्वकालमें कि पुराकालमें धावस्ती नगरोके जेतवनविहारमें विमानयात्रियोंके साथ उसो प्रकारका कोई दूरदर्शन- भगवान बुद्ध रहते थे। उनको अनुमतिसे अनाथपिण्डद. | यन्त्र रहता था। की कन्या सुमागधाका विवाह पौएडवर्द्धगयासो सार्धा भारतीय कार्यसमाजमें चेदिराज यसु ही सबसे नायके पुल चुपमदत्तसे हुआ था। एक दिन सास और पहले याकाशयानका व्यवहार करते थे। हम लोगोंका . पतोहमें किसी कारण झगड़ा हुआ। सुमागधाने अति | विश्वास है, कि वर्तमानकालमें जिस प्रकार आचार्य कातर और भक्तिभावसे युद्धदेवका आह्वान किया। जगदीशचन्द्र पसु महाशपने बहुतों आविष्कार द्वारा अन्तर्यामो भगवान उसके आह्वानसे विचलित हो गये, यज्ञानिक जगत्को विमुग्ध कर दिया है, उनके पूर्व पत्ती । और मानन्दको बुला कर कहा, 'कल सवेरे मुझे पोण्ड-1 चेदिराज वसु भो उसी प्रकार कठोर तपस्या या असा. वदन नगर जाना है। सुमगघाने मेरो और सङ्घको | धारण अध्ययसायके वलसे तात्कालिक मानव जगत्के पूजा करने के लिये प्रार्थना को है। पोण्ड पद्धन यहां असाध्य और मनधिगम्य स्फटिकविमानके आविष्कारमें से छः सौ योजनसे भी दूर है, एक हो दिन में यहां जाना समर्थ हुए थे। होगा। जो सब प्रभावशालो भिक्षु आकाशमार्गसे जानेमें | विमानयितव्य ( स०नि०) वि-मानि तव्य । विमानना. सक्षम हैं उन्ही को निमन्त्रणपत देना ।' प्रातःसाल के योग्य, तिरस्कार करने लायक। . होने पर भिक्षुगण देवताओंका रूप धारण कर विमान पर विमानुप ( सं०नि० ) विकृत मनुष्य, कुरूप आदमी । चढ़ आकाशमार्गसे पोण्डवद्धनमें मापे । विमानविहारो विमान्य (सं०नि०) वि-मानि यत् । विमाननाके योग्य, उज्ज्यलमूर्ति भिक्ष को को देख पातु वासी विस्मित हो अपमान करने लायक । गये थे। | विमाय (स' त्रि०) विगता मापा यस्य । मायाहीन, माया नोकी शेष श्रु नफेवली भद्रबाहुका चरित पढ़नेसे शून्य। (ऋक् २०१७३।७) मालूम होता है, कि महादुर्भिक्षसे जिस समय समस्त | विमागं (स: पु०) मृज घम् मार्गः विरुद्धो मार्ग । १ कदा. आर्यावर्त प्रपोहित हो गया था उस समय मौर्यराज चार, चुरो चाल । २ सम्मार्जनी, भाड़ ! ३ कुपथ, घुरा चन्द्रगुप्तको ले कर भद्रवाहुने विमान द्वारा दक्षिणकी और रास्ता। . . यात्रा को धी। | विमित (स.त्रि०) १ परिमित, जिसकी सोमा या इद . हिन्दू, जैन और बौद्ध इन तीनों प्रधान सम्प्रदायके | हो। (पु०) २ वह चौकोर शाला या इमारत जो चार प्रन्धों में विमानपोत या आकाशयानका विवरण आया संमों पर टिकी हो। ३ वड़ा कमरा या इमारत है। विमान पर चढ़ कर भाराहो बहुदूरवत्ती स्थानी-विमिथुन (स त्रि०) विशिष्ट मिथुन, युगल। को देख सकते थे, रामायण और महामारतमें उसका भो । '. (लघुजावक ११२०) ' उल्लेख है। जय राम-लक्ष्मण नागपाशसे आवद्ध हुए, विमिश्च (म०नि०) १ मिश्रित, मिला हुमा। २ जिसमें तष सीताको पुष्पक पर चढ़ा कर माकाशमार्गसे मूपतिन| कई प्रकारको वस्तुओं का मेल हो, मिलाजुला । . रामलक्ष्मणको दिखाया गया था। जब रामचन्द्र लडा. शिमिश्रक ( स० त्रि०) मिश्रणकारी, मिलानेवाला। से पुष्पक द्वारा अयोध्या लौटे, तब वे पुष्पक परसे सोता | चिमिधगणित ( स० स्त्रो०) यह गणित जिससे पदार्थ देयोको अनेक स्थान दिखलाते हुए आये थे। अब प्रश्न | सम्वन्धमें राशिका निरूपण किया जाय। .