पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५६२

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४८२ ' विमानपोत पृथियोके अन्यान्य सभी जीवों में श्रेष्ठ हैं। उसका मूल वैसे ही यन्त्रका आविष्कार किया गया। इस नये , कारण है उनको बुद्धिमत्ता । इसी बुद्धिमत्ता घल आज वे| का नाम हुआ 'बैलून'। यह रबर या कैम्बिसका बनाया अप्रतिहतभावमें पृथिवीके ऊपर आधिपत्यलाभ करने में हुआ एक यद्ध गोलाकार याल जैसा यन्त्र है। इसके मध्य समर्थ हुए हैं। इसो बुद्धिमत्ताके बल पर विज्ञानशास्त्रकी उदजन ( Hydrogen) भरनेसे यह वायुकी अपेक्षा कहीं सष्टि करके उन्होंने प्रकृति के विरुद्ध युद्धघोषणा कर दी हल्का हो जाता है तथा उसमें बैठ कर मनुष्य आसानीसे है। और इसी विज्ञानके चरम उत्कसि विमानपोत वा आकाश भ्रमण कर सकते हैं । 'मान्स देशके Joseph आकाशवानकी सृष्टि हुई है। जब मानवजातिने देखा, Michel Montgolfier और Jagues Etienne lon... कि पक्षीगण स्वच्छन्दतापूर्वक भाकाशमै विचरण करते । tgollier नामक दो भाई इसके भाविका , माने जाते । हैं, तब हम लोग-इस जगत्के श्रेष्ठ जोय, पयों नहीं कर हैं। . पैलून देखो। सकेंगे ? तभीसे चे इस रहस्य के उद्घाटनमे प्रयत्न करने इस प्रकार स्वच्छन्दतापूर्वक गगन पर्यटनमें मक्षम लगे। आखिर उन लोगोंने सफलता प्राप्त कर जगत्को वो सभी देशोंके वैज्ञानिकोंका. मन इधर आकृष्ट हुआ! दिखला दिया, कि मानवजातिके लिये कुछ भी असाध्य उन्होंके गटूट परिश्रम और असाधारण मध्यवसायसे . नहीं है। । . इसकी उत्तरोत्तर उन्नति हो अन्तमें जेपेलिन नामक एक वर्तमान सभ्यताके युगमें विमानपोतकी सृष्टि और वृहत् विमानपोतकी सृष्टि हुई। - उसका क्रमविकाश किस प्रकार हुआ, नीचे उसी पर १८८७८१६०० ई०के मध्य जर्मन सैनाबदल के काउण्ट मालोचना की गई है। फार्दिनाएडभान जेपेलिनने एक • बड़। विमानरोतका सबसे पहले डैने तैयार करके उसीके द्वारा आकाशमें निर्माण किया। इसमें पांच भादमीय वैठने लायक स्थान उड़ना अच्छा समझा गया। सुना जाता है, कि इसी था और उसका समूचा भाग पयामिनियम धातुका वना उपायसे एक अगरेज साधुने ११वीं सदीफे मध्यभागमें हुआ था। १९०६ से १९२१ मध्य विमानपोतके स्पेनदेशकै एक नगरसे प्रायः एक मीलका रास्ता तय सम्बन्ध तरह तरहको कल्पता चलती रही। उसके फल- किया था। इसके बाद १६यी सदीके शुरुमें एक इटालियन् । से इस समय विभिन्न आकृति और शक्तिविशिष्ट विगान• ज्योतिपो स्काटलैण्ड राजा चतुर्थं जेम्सके विशेष अनु-: पोतोको सृष्टि हुई। उनमेसी, न परोप्लेन ( Arroplane) रोध पर टालि प्रासादसे फ्रान्सको ओर शून्यमार्गसे उड़े। और समुद्रपोत ( Seaplatine) का नाम उल्लेखनीय . किन्तु दुर्भाग्यवशातः कुछ समय उड़ने के बाद ही घे हठात्' । है।, विस्तृत विवरण हवाई जहाजे शब्दमें देखा। जमीन पर गिर पड़े जिससे उनकी टांगे टूट गई। ठोक | , ' आजकल संसारके सभी देशों में विशेषता इसी समय ल्युनाहोंदा भिश्चिने इस विषय पर यथेष्ट गये.. इङ्गलैण्ड, फ्रान्स, जर्मनी और अमेरिका मादि स्थानों में पणा की । पोछे आलई ( Allard ) और वेसनि दिनों दिन विमानपोतका बहुल प्राचार देखा जाता है। ( Besnier ) नामक दो फरासियोंने यथाक्रम १६६०। इसके बनाने और चलाने के लिये राज्यों में करोड़ों गौर १६७८ ई०में कुछ दूर उड़ कर सफलता प्राप्त | रुपये खर्च हो रहे.'! इस पोतके धमें बहुनेरों का . की। इसके बाद भी वहुतोंने चेष्टा की, पर इस प्रकार विभ्यास है, कि यह मभी पाश्चात्य वियताको वैज्ञानिक पक्षसंयुक्त हो कर उड़ना विषजनक समझ इस ओरसे, उन्नतिका निदर्शन है। बहुतेरे वीस घ पहले परोप्लेन, ध्यान बिलकुल खींच लिया : अब उन लोगों को विज्ञान, पेलिग मोदि हवाई जहाजोंको कल्पना तक भी नहीं कर द्रष्टि दूसरी गोर दौड़े पड़ो। उन लोगोंने सोचा, कि सकते थे। । अव पफ पेसा यन्त बनाया जाये, जो घायुसे' हलका हो । प्राचीन भारतमें विमानपोतका परिचय

और जिस पर चढ़ कर स्वच्छन्दतापूर्वक गगन विहार हम लोगोंके रामायण गौर महाभारतमें विमानपोतका किया जाये। बहुत चेष्टा और गवेषणाके वादाखिर एक | कई जगह उल्लेख आया है। कुछ दिन पहले बहुतेरे लोग सकतेथेग -.. . '