पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५४

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gs वाणगङ्गा-वागचालना याण मार कर जायके मुखसे भी खून तक निकाल सकता, भृग्येदसंहितामे उसके भूरि भूरि प्रमाण पाये जाते है,

आर्य और असुर ( दस्यु चा राक्षस )के संघर्ष की कथा

इस वाणखेल की तरह मारण, स्तम्भन, घशाकरण, : जो उक्त महाप्रय यर्णन की गई है, उसका हा अधिकृत 'उच्चाटन आदि विषय भी मन्त्र है। भौतिकविद्या देखो। चित्र पौराणिक वर्णनामें भी प्रतिफलित(२) देखा जाता याणगङ्गा (सं० स्त्रो०) एक नदो। लोमशतीर्थ पार कर है। यह नदी यह चलो है। कहते हैं, कि राक्षस राज रावण रामायणीय युगमे राम-रायणफे युद्धके समय' पर्ष भार मे पाणको नोंकसे हिमालय भेद फर इस नदीको निकाला तोय युद्ध कुरु पांडय के मध्य भोपण पाण युम हुआ ' था, लल मानव जगतों को नहीं देवनगम्मे भो पाणका घाणगोचर (सं० पु०) वाणका निर्दिष्ट गतिस्थान (Range

प्यरहार था। स्वयं पशुपति पाशुपत अनसे परिशोभित

। धे)। देवसेनापति कुमार कार्तिफेयने धनुर्वाण धारण of an arrowI | करफे मसुरोंका संहार किया था। पुराणमें अग्नि, वरुण, याणचालना (सं० स्त्री०) वाणप्रयोग। धनुष और तार । विष्णु, ब्रह्मा प्रभृति देवताओं के अपने अपने निदिए मिय योगमे लक्ष्य ग्रन्तु येधनेका कौशल या प्रणाली। घाणोंका उल्लेख पाया जाता है(४) । राम-रायणके युद्धगे पाश्चात्य भाषा में इस तीरशेष प्रथाको Archery .इते । है। वैशम्पायनोन धनुर्वेदमें इसका विषय विस्तार पूर्वक दिया है। धनुष्येद देखो। (१) शुक् ५.५२, ५५ भौर राकमें एवं ६।२, २७, ४६. ४७ ऐतिहामिक युगको प्रारम्माघस्सा, जिस ममय इम | एकमें मृष्टि, वाशी, धनु, पु प्रमृति भोंका उल्लेख है। देशमें छाग्नेयास्त्रका (नालिकादि युद्धयन्त्र Canon ) (२) शृक् १।११, १२, २१, २४, २३, १००, १०३. १०४, विशेष प्रनार नहीं था, यहां तक कि, जिस समय लोग १२१ प्रभृति सूक्त आनोचना करनेसे इन्द्रादि कर्स फ मसुरो के लौह द्वारा फलकादि निर्माण करना नहीं मीखा था, नाशकी जो कथा पाई जाती है, वृषसंहार, तारकापध; मन्धक उस समय भी लोग घंशखंट ले कर धनुप, गरवंशले निधन, मुर-नाश, त्रिपुर-दाइ, मधुकैटभादि विनाश उसका विकाश. पर पु.पघं चामकी द्वारा शरको शलाका नेगार करने मात्र है। मैशम्पस्त थे। हम लोग इतिहास पाठसे एवं प्राचीन (३) शिंगपुराण और महामारत । महादेवने मनकी नगर पा प्रामादिके ध्वंसायशेरम आदिम जातिके इस | थीरतासे प्रसन्न हो कर कर्ण पौर. नियात कवचादि निधनफे अरसके यहुतसे निदर्शन पाते है। इस समय भी कई निमित्त उक्त अन्न दान किया था। एक देगके मादिम सम्य जातिफे मध्य यह प्रथा विध. (४) विभिन्न भेणीफे याण अर्थात् उनकी भेदाकि विभिम मान है। पोडे जय उन सब जातियोंके मध्य सम् ता. रूपको होती है । पर्तमान समयमें भई चन्द्र, कोप्याफार, लोफका विस्तार होने लगा तवमंघे सभ्य समाजको अनु. विफलक पा यशौक भाफारयुक्त याप मो०, संपाशीक मध्य फरण कर इस युद्धानकी उन्नति करके पाणनिर्माणके. एवं प्राचीन राजवंशों के मनागारमें परिक्षक्षित हाते हैं। यिषयमें पयं उसके चलाने के मपूर्व कौशल प्रदर्शन करने पुराप्पमें भी परप्पयाण. द्वारा गम्नियाप्प काटनेको कथा है, मे:समर्थ हुए थे। भषिक संभव यह इस तरहके विभिन्न फाप्लकका गुप ही होगा। प्राचीन वैविक युगमें हम लोग पाणप्रपागके प्रशए उप समयके ये यर्ग स्थिरलमय सया सिद्धास्व एवं निदर्शन पाते है। सुमभ्य भागण यव्यर मगार्य जाति- ये एक वायफा प्रयोग देसवे से उसके विपरीत अर्थात् प्रत्या फे साथ निम्तर युद्धफायम प्यापून थे, 'भारतमासी सान समर्थक मग्न प्रयोग करना मानते थे अपना पे सस उसो मा जातिको सरताग धनुप, पु प्रभृति मल- याण मन्त्रसिदयं या पाया पपं प्रदोष कालमें उसे मन्त्रपुतः योगसे जिम सरद युसकाणं परिपालना करती थी, करके प्रयाग करते थे, ऐसा मोका जा सकता है।